बरेली के 200 साल पुराने सुरमे की कहानी: ​​​​​​मिस्र-अरब से आता है पत्थर-साल भर गुलाबजल में डुबोते हैं, तब तैयार होता है, लालू-अखिलेश-कोहली भी फैन

बरेली के 200 साल पुराने सुरमे की कहानी: ​​​​​​मिस्र-अरब से आता है पत्थर-साल भर गुलाबजल में डुबोते हैं, तब तैयार होता है, लालू-अखिलेश-कोहली भी फैन

  • Hindi News
  • Women
  • The Stone Comes From Egypt Arabic Immersed In Rose Water Throughout The Year, Then It Is Ready, Kohli Lalu Akhilesh Also A Fan

बरेली4 मिनट पहले

  • कॉपी लिंक

देश और दुनिया में बरेली के सुरमे का जिक्र आता है। कई गाने तो बरेली के सुरमे की वजह से हिट रहे। बरेली का सुरमा अगर मशहूर है, तो उसकी कई वजहें हैं। पहला है, उसको बनाने का तरीका और दूसरा है, उसकी क्वालिटी। सुरमा कारोबारी मो.शावेज का दावा है कि बरेली जैसा सुरमा भारत में कहीं और नहीं बनता। इसलिए बरेली के सुरमे की पहचान दुनिया के हर कोने में है। वुमन भास्कर की टीम बरेली के सुरमा बाजार पहुंची और यह भी देखा कि इसे कैसे तैयार किया जाता है।

काजल से कैसे अलग है सुरमा और कैसे बनता है

सुरमा आंखों पर काजल की तरह इस्तेमाल किया जाने वाला पाउडर है। यह कोहितूर नाम के पत्थर से तैयार किया जाता है। सुरमा को सुरमेदानी में रखा जाता है और इसे सलाई से आंखों में लगाया जाता है। अधिकतर सुरमा काले रंग का ही होता है, लेकिन दवा के तौर पर लगाया जाने वाला सुरमा सफेद भी होता है।

मिस्र और सऊदी के कोहितूर पत्थर से बनता है सुरमा

सुरमा कोहितूर पत्थर से बनता है। जिसे मिस्र और सऊदी अरब से मंगाया जाता है। इस पत्थर को गुलाब जल या नीम के पानी में एक साल तक ठंडा किया जाता है। गुलाब जल सूखने के बाद इसे मूसा नामक विशेष पत्थर की बनी सिल पर पीसा जाता है। इसकी खासियत है कि पिसाई के दौरान कोहितूर पत्थर का पाउडर बनता है, पर मूसा पत्थर नहीं घिसता। इस पाउडर में असली मोती, सोने और चांदी के वरक, मूंगा, गोमेद, पुखराज, तांबा और जाफरान मिलाया जाता है। इन खास पत्थरों को मिलाकर कुछ खास बीमारियों का इलाज करने वाला सुरमा बनाया जाता है। इसमें गुलाबजल, कपूर, ममीरा, पीपल, सौंफ आदि यूनानी एवं आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां भी शामिल की जाती हैं। बरेली में अलग अलग बीमारियों के हिसाब से सुरमा तैयार किया जाता है।

करीब 250 सालों से चले आ रहे अपने पुरखों के कारोबार संभालने वाले ताज मार्का सुरमा के निर्माता शावेज हाशमी दावे के साथ कहते हैं कि सुरमा बनाने का सबसे बेहतरीन तरीका बरेली में अपनाया जाता है। बरेली जैसा सुरमा कहीं नहीं बनता। क्योंकि यहां सुरमा बनाने में किसी तरह का समझौता नहीं किया जाता। सुरमा बनाते वक्त उसकी सामग्री की गुणवत्ता का भी पूरा ख्याल रखा जाता है। इसीलिए बरेली का सुरमा पूरी दुनिया में पहचान बनाए हुए है।

अब हर मजहब की आंखों में नजर आता है सुरमा

शावेज हाशमी बताते हैं कि पहले लोग शौक में सुरमा लगाते थे, लेकिन जब इसके फायदे नजर आए, तब से इसकी मांग बढ़ गई। पहले ज्यादातर मुस्लिम परिवारों में ही इसका इस्तेमाल होता रहा है। लेकिन अब हर मजहब में सुरमे की मांग बढ़ी है।

विराट कोहली, लालू, जावेद अख्तर, अखिलेश यादव ने भी की है इसकी तारीफ

बरेली के सुरमा व्यापारी के साथ बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव।

बरेली के सुरमा व्यापारी के साथ बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव।

शावेज हाशमी बताते हैं कि शीला दीक्षित के अलावा कई मशहूर हस्तियों के बीच बरेली का सुरमा लोकप्रिय रहा है और उन्होंने इसका इस्तेमाल भी किया है। लालू से लेकर अखिलेश यादव तक को बरेली का सुरमा पसंद है, क्योंकि ये आंखों को दुरुस्त रखता है। रात में सोते समय आंखों में सुरमा डालने से आंखें दुरुस्त रहती हैं। क्रिकेटर विराट कोहली को भी बरेली का सुरमा पसंद है।

विदेशों तक जाता है बरेली में बनने वाला सुरमा

मो. हाशम ने 1794 में बरेली में सुरमे के कारोबार की शुरुआत की थी, जो शावेज हाशमी के परदादा थे। यहां के सुरमे की सऊदी अरब, अमेरिका, ब्रिटेन सहित 150 से अधिक देशों में सप्लाई होती है।

यहां रंगीन आंसू टपकाने वाला सुरमा भी मिलता है

कुतुबखाने पर सुरमा दुकानदार फरीद ने बताया कि बाजार में एक अलग तरह का सुरमा भी मिलता है। जो बरेली में नहीं बनता। इसे चाइनीज सुरमा कहते हैं। इसको बनाने में कैमिकल और रंगों का इस्तेमाल होता है। इसे लगाने के बाद आंख से जब पानी निकलता है, तो वह कलरफुल हो जाता है। यह सुरमा लाल, नीला या अन्य रंग के आंसू टपकते हैं।

पाकिस्तान तक पहुंच चुका है बरेली के सुरमे का हुनर

मोहम्मद शाहवेज ने बताया कि 1956 में जब सुरमे के कारोबार को बढ़ाने की बात हुई थी। तब तय किया गया कि एक भाई हिंदुस्तान में कारोबार करे और दूसरा पाकिस्तान में। इसके बाद मोहम्मद उमर कराची चले गए। आज उनके भाई कराची में बंदरगाह रोड पर ‘बरेली वालों का सुरमा’ ब्रांड से कारोबार कर रहे हैं। जबकि बरेली में मोहम्मद यासीन ने सुरमे को ताज ब्रांड नाम दे दिया है। दोनों भाइयों के सुरमे दुनिया के हर कोने में पहुंच रहे हैं। बरेली का ताज ब्रांड सुरमा ताज मार्का ट्रेड मार्क मिला है। यह सुरमा लखनऊ के यूनानी और आयुर्वेद निदेशालय में पंजीकृत भी है।

ढाई सौ सालों से हो रहा है सुरमे का कारोबार

मोहम्मद हसीन हाशमी ने बताया कि सुरमे का करोबार हमें विरासत में मिला है, जिन्होंने सुरमे का व्यापार शुरू किया था। हम उनके 6वीं पीढ़ी के है। हमारे पिता कहा करते थे कि परदादा हीरे जवाहरात का व्यापार करते थे। इस सिलसिले में वो बरेली से जयपुर जाना होता। इस दौरान रास्ते में कई बार डाकुओं ने लूट लिया। एक बार जब वो जयपुर जा रहे थे, तो रास्ते में एक फकीर मिला, उन्होंने बताया डाकुओं ने लूटने के लिए जगह जगह खाई खोद रखी है। जिसे पर करना मुश्किल है। इसलिए यह काम बंद कर दो। परदादा ने फकीर से पूछा अगर ये काम मैं बंद कर दूंगा, तो मेरा घर कैसे चलेगा। तभी फकीर ने उन्हें सुरमे का व्यापार करने सुझाव दिया। तब से बरेली में सुरमे का कारोबार हो रहा है।

कब सुरमा नहीं लगाना?

दुखती आंख और मोतियाबिंद ऑपरेशन की आंख में किसी भी तरीके का सुरमा नहीं लगाना चाहिए। सुरमा खरीदते समय सलाई अच्छे से चैक कर लें। सलाई कहीं से कटी या खुरदरी न हो।

कोरोना की मार सुरमे के बाजार पर भी पड़ी

सुरमा व्यापारी शाहवेज ने बताया है कि कोरोना से पहले देश में बरेली के सुरमा की इतनी मांग थी कि उसे पूरा करना मुश्किल होता था। बरेली से एक दिन में करीब 25 किलो सुरमा देशभर में सप्लाई किया जाता था। लेकिन अब यह कम हो गया है, इस समय लगभग 15 से 20 किलो सुरमा प्रतिदिन सप्लाई हो पा रहा है।

कल पढ़ें बरेली से एक और कहानी

खूनी मांझा, असली कहानी:लहुलुहान हाथों से बनता मांझा; भारत में ही बनते हैं और कहलाते हैं ’गर्दन काट’ चाइनीज मांझे

खबरें और भी हैं…

Source link