‘सरकार के फैसले नहीं मानना बन गया है फैशन, क्या यह देश में संकट जैसी स्थिति नहीं है?’

नई दिल्ली: केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री किरण रिजिजू (Kiren Rijiju) ने ‘उपद्रवी तत्वों’ को लेकर चिंता व्यक्त की है और कहा है कि सरकार के निर्णयों को नहीं मानना फैशन बन गया है. उन्होंने कहा कि आजकल कुछ लोग कानूनी, वैध और संवैधानिक चीजों का ‘ऐड़ी-चोटी का जोर लगाकर’ विरोध करते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि कुछ लोगों के लिए यह दावा करना एक ‘फैशन’ बन गया है कि वे संविधान को स्वीकार नहीं करते. क्या यह देश में संकट जैसी स्थिति नहीं है?

कानून का विरोध करने वालों पर किरण रिजिजू का निशाना

कानून मंत्रालय के एक कार्यक्रम में किरण रिजिजू (Kiren Rijiju) ने कहा, ‘जब संसद कोई विधेयक पारित करती है या जब विधान सभा कुछ कानूनों को मंजूरी देती है, तो तब तक यह कहने का कोई कारण नहीं है कि हम इस अधिनियम का पालन नहीं करते हैं, या हम इस कानून का पालन नहीं करेंगे, जब तक कि यह असंवैधानिक न हो.’

शीतकालीन सत्र से पहले आया किरण रिजिजू का बयान

किरण रिजिजू (Kiren Rijiju) ने यह टिप्पणी सोमवार से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र (Parliament Winter Session) से पहले की है, जहां सरकार ने तीन कृषि कानूनों (New Agriculture Laws) को निरस्त करने के लिए एक विधेयक सूचीबद्ध किया है. 40 किसान संघ पिछले एक साल से इन कानूनों को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं.

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संविधान का सम्मान करना चाहिए: किरण रिजिजू

किरण रिजिजू (Kiren Rijiju) ने कहा, ‘भारत एक बेहद लोकतांत्रिक देश है, इसलिए हमें विरोध करने का अधिकार है, वैचारिक मतभेद का अधिकार है. हमें असहमति का अधिकार है, लेकिन संवैधानिक रूप से जो कुछ भी किया गया है उसका सभी को सम्मान करना चाहिए.’ उन्होंने कहा, ‘(कोई) अधिनियम संवैधानिक है या असंवैधानिक इसपर न्यायपालिका को निर्णय लेने दें.’

मौलिक कर्तव्य ज्यादा महत्वपूर्ण: रिजिजू

किरण रिजिजू ने कहा, ‘किसी ने मुझसे पूछा कि आप तो मंत्री है, कानून पास हो गया तो आप कानून को लागू क्यों नहीं कर पाते हैं. मेरे पास कोई जवाब नहीं था. मेरे लिए बहुत मुश्किल था. इस सीधे और आसान से सवाल का जवाब देना. हमें इस पर सोचना चाहिए, हम अपने कुर्सी पर बैठ कर क्यों योगदान दिया, ये सोचता हूं. हम संवैधानिक अधिकार के बारे में बात करते हैं, लेकिन अगर सबने संवैधानिक ड्यूटी के बारे में सोच लिया तो सब हल हो जाएगा. राइट्स अपने लिए है, ड्यूटी देश के लिए हैं. मौलिक अधिकार महत्वपूर्ण हैं, लेकिन मौलिक कर्तव्य उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है.’
(इनपुट- न्यूज एजेंसी भाषा)

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