12 MPs Suspension: 11 अगस्त को राज्यसभा में क्या हुआ था, सांसदों के निलंबन के नियम क्या हैं

सार

संसदीय काय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि यदि निलंबित सांसद सभापति से माफी मांग लेते हैं तो मामला खत्म करने पर विचार हो सकता है। वहीं कांग्रेस नेता व राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का कहना है कि सरकार विपक्ष की आवाज को दबाना चाहती है। लेकिन माफी मांगने का कोई सवाल ही नहीं उठता है। 
 

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संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन सोमवार को राज्यसभा के 12 सांसदों को इस सत्र की कार्यवाही से निलंबित कर दिया गया। इन सांसदों को मानसून सत्र के दौरान 11 अगस्त को राज्यसभा में हंगामा करने के कारण निलंबित किया गया है। बताया जा रहा है कि इन सांसदों का निलंबन वापस हो सकता है लेकिन इसके लिए उन्हें माफी मांगनी होगी। जिन सांसदों को निलंबित किया गया है उसमें कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और शिवसेना के सांसद शामिल हैं। इनमें पांच महिला सांसद हैं।

राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसी मुद्दे पर विपक्षी पार्टियों की बैठक बुलाई और सांसदों के निलंबन और आगे की रणनीति पर चर्चा हुई। बैठक में कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी शामिल हुए। बाद में खड़गे ने राज्यसभा में सासंदों के निलंबन का मामला उठाया। हालांकि राज्यसभा के सभापति वैंकेया नायडु ने इस निलंबन को सही ठहराया।

निलंबित होने वाले सांसदों के नाम 
जिन सांसदों को निलंबित किया गया है उनमें छाया वर्मा (कांग्रेस), रिपुन बोरा (कांग्रेस), राजामणि पटेल (कांग्रेस),  सैयद नासिर हुसैन (कांग्रेस),  अखिलेश प्रसाद सिंह (कांग्रेस), डोला सेन (टीएमसी), शांता छेत्री (टीएमसी),  प्रियंका चतुर्वेदी (शिवसेना), अनिल देसाई (शिवसेना),  बिनय विश्वम (सीपीआई) और एलामरम करीम (सीपीएम) शामिल हैं।

सांसदों को क्यों निलबंति किया गया? 
सरकार ने सांसदों के निलंबन का कारण बताया है। सांसदों के निलंबन का कारण मानसून सत्र के आखिरी दिन “सदन की अवमानना करने, अनियंत्रित और हिंसक व्यवहार करने और सुरक्षा कर्मियों पर जानबूझकर हमले को बताया गया है।” इनमें से किसी सांसद पर कागज फाड़ने तो किसी पर टीवी स्क्रीन तोड़ने के आरोप हैं।  
मानसून सत्र के दौरान राज्यसभा में क्या हुआ था?
2020 के मानसून सत्र में कृषि कानूनों के पारित होने के बाद से संसद के दोनों सदनों में लगातार व्यवधान देखा जा रहा था। जब राज्यसभा में यह विधेयक चर्चा के लिए आया, तो विपक्षी सांसदों ने विधेयक को प्रवर समिति के पास भेजने की मांग की। नारेबाजी के बीच सांसदों ने उपसभापति हरिवंश पर कागज फेंके। इसके चलते छह विपक्षी सांसदों को निलंबित कर दिया गया था। संसद ने समिति के पास भेजे बिना विधेयक पारित कर दिया। 

फिर, इस साल के मानसून सत्र में, विपक्षी दल कथित पेगासस जासूसी कांड और कृषि कानूनों के मुद्दे पर चर्चा की मांग कर रहे थे। जब 22 जुलाई को सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव राज्यसभा में पेगासस पर बयान दे रहे थे, तो तृणमूल कांग्रेस के सांसद शांतनु सेन ने उनसे कागजात छीन लिए। इसके बाद केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी और सेन के बीच तीखी नोकझोंक हुई। जिसके बाद सेन ने आरोप लगाया कि मंत्री ने उन्हें कथित तौर पर धमकाया और गाली दी।

सेन मानसून सत्र के लिए हुए थे निलंबित
उनके इस आचरण के लिए राज्यसभा ने सेन को शेष मानसून सत्र के लिए निलंबित कर दिया। संसद के मानसून सत्र के आखिरी दिन राज्यसभा में विपक्षी दलों के सदस्यों ने बीमा संबंधी विधेयक को पारित कराने का विरोध किया। इसके बाद जमकर हंगामा हुआ था। विपक्ष के सदस्य जमकर नारेबाजी कर रहे थे, काले झंडे दिखा रहे थे और कुछ सदय कागजो को फाड़ते दिखे।

विपक्ष ने राज्यसभा के सभापति से मुलाकात कर एक ज्ञापन सौंपा जिसमें कहा गया कि राज्यसभा में इंश्योरेंस बिल जब पेश किया गया, उस समय सदन में बाहरी सुरक्षाकर्मियों को बुलाया गया था जो सुरक्षा विभाग के कर्मचारी नहीं थे। ज्ञापन के मुताबिक विपक्ष के सदस्यों और खास तौर पर महिला सदस्यों के साथ बदसलूकी भी की गई।
विपक्षी सांसदों ने सुरक्षा कर्मचारियों पर उनके साथ हाथापाई करने का आरोप लगाया और बदले में सदन के नेता पीयूष गोयल ने विपक्षी सांसदों पर सुरक्षा कर्मचारियों पर हमला करने का आरोप लगाया। गोयल ने घटना की जांच के लिए एक विशेष समिति बनाने की मांग की। इस घटना से राज्यसभा के सभापति वैंकेया नायडू भावुक हो गए थे और उन्होंने अफसोस जताया था।  इससे पहले 10 अगस्त को भी ऐसे ही कुछ विपक्षी सांसदों पर नियमों की अवहेलना के आरोप लगे।

पीठासीन अधिकारियों के क्या अधिकार हैं?
सांसदों को संसदीय शिष्टाचार के कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक है। उदाहरण के लिए लोकसभा की नियम पुस्तिका में यह कहा गया है कि सांसद दूसरों के भाषण में बाधा नहीं डालेंगे, शांति बनाए रखेंगे और बहस के दौरान टिप्पणी करके कार्यवाही में बाधा नहीं डालेंगे। लेकिन सांसदों ने जब विरोध करने के नए-नए तरीके निकाले तो 1989 में इन नियमों में बदलाव किया गया। अब, सांसदों का सदन में नारे लगाने, तख्तियां दिखाने, विरोध में दस्तावेजों को फाड़ने और सदन में टेप रिकॉर्डर बजाने की इजाजत नहीं है।

राज्यसभा में भी ऐसे ही नियम हैं। राज्यसभा को संबोधित करते समय सांसदों को अपनी सीट पर ही रहने की इजाजत है, वहां से उठने की नहीं। जब सांसद बोल नहीं रहे हों या उनसे शांत रहने की अपेक्षा की जाती है। अगर सांसद इन नियमों का उल्लंघन करते हैं तो रूल बुक के मुताबिक सांसदों पर कार्रवाई हो सकती है। सदन की कार्यवाही को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए नियम पुस्तिका के आधार पर दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारियों के पास कुछ समान शक्तियां हैं।
दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारी को यह अधिकार है कि यदि किसी सांसद का आचरण सदन के नियमों के अनुकूल नहीं है तो उन्हें सदन से बाहर जाने के लिए कहा जा सकता है। इसके बाद सांसद को उस दिन सदन की शेष कार्यवाही में भी भाग नहीं लेने दिया जा सकता है। ऐसे मामले में आमतौर पर संसदीय कार्य मंत्री सदन के आचरण के अनुकूल व्यव्हार नहीं करने वाले  सांसद को सदन से निलंबित करने का प्रस्ताव पेश रख सकते हैं। निलंबन पूरे एक सत्र के लिए भी हो सकता है। बात ज्यादा बढ़ जाए तो मामला समिति को भेजा किया जा सकता है। राज्यसभा में इसके ले एथिक्स और प्रिविलेज कमेटी होती है। 

लोकसभा सचिवालय से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक 2001 में लोकसभा के नियम में संशोधन कर अध्यक्ष को एक अतिरिक्त शक्ति प्रदान की गई। एक नया नियम 374A लाया गया जिसके तहत लोकसभा अध्यक्ष को सदन के कामकाज को बाधित करने वाले सांसद को अधिकतम पांच दिनों के लिए निलंबित करने का अधिकार है। 2015 में, तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने 25 कांग्रेस सांसदों को निलंबित करने के लिए इस नियम का इस्तेमाल किया।
इस समस्या का हल निकालना कितना कठिन रहा है?
वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं इसे लेकर पीठासीन अधिकारियों के कई सम्मेलनों में, चर्चा हो चुकी है। इस मुद्दे का हल निकालने के लिए कई तरीकों पर विचार-विमर्श किया गया है। पूर्व राष्ट्रपति केआर नारायणन, जो 1992-97 तक उच्च सदन के सभापति भी रहे,  वे मानते थे कि “ज्यादातर मामलों में सदन में व्यव्धान तभी पैदा होता है जब किसी सांसद का अपनी बात रखने का अवसर नहीं मिलता है और वे निराशा के भाव में ऐसा करते हैं। माना गया कि ऐसे मामलों से निपटना तो शायद आसान होता है, लेकिन जिस चीज से निपटना ज्यादा मुश्किल है, वह है योजना के तहत प्रचार और राजनीतिक उद्देश्यों के लिए जानबूझकर की गई गड़बड़ी को संभालना।  

2001 में, संसद के सेंट्रल हॉल में इसी मुद्दे पर आयोजित हुए एक राष्ट्रीय सम्मेलन में तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा कि बहुमत दल शासन के लिए जिम्मेदार है और अन्य दलों को विश्वास में लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि विपक्ष को संसद में रचनात्मक भूमिका निभानी चाहिए और उसे अपने विचार रखने और खुद को सम्मानजनक तरीके से व्यक्त करने की अनुमति दी जानी चाहिए।
 

विस्तार

संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन सोमवार को राज्यसभा के 12 सांसदों को इस सत्र की कार्यवाही से निलंबित कर दिया गया। इन सांसदों को मानसून सत्र के दौरान 11 अगस्त को राज्यसभा में हंगामा करने के कारण निलंबित किया गया है। बताया जा रहा है कि इन सांसदों का निलंबन वापस हो सकता है लेकिन इसके लिए उन्हें माफी मांगनी होगी। जिन सांसदों को निलंबित किया गया है उसमें कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और शिवसेना के सांसद शामिल हैं। इनमें पांच महिला सांसद हैं।

राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसी मुद्दे पर विपक्षी पार्टियों की बैठक बुलाई और सांसदों के निलंबन और आगे की रणनीति पर चर्चा हुई। बैठक में कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी शामिल हुए। बाद में खड़गे ने राज्यसभा में सासंदों के निलंबन का मामला उठाया। हालांकि राज्यसभा के सभापति वैंकेया नायडु ने इस निलंबन को सही ठहराया।

निलंबित होने वाले सांसदों के नाम 

जिन सांसदों को निलंबित किया गया है उनमें छाया वर्मा (कांग्रेस), रिपुन बोरा (कांग्रेस), राजामणि पटेल (कांग्रेस),  सैयद नासिर हुसैन (कांग्रेस),  अखिलेश प्रसाद सिंह (कांग्रेस), डोला सेन (टीएमसी), शांता छेत्री (टीएमसी),  प्रियंका चतुर्वेदी (शिवसेना), अनिल देसाई (शिवसेना),  बिनय विश्वम (सीपीआई) और एलामरम करीम (सीपीएम) शामिल हैं।

सांसदों को क्यों निलबंति किया गया? 

सरकार ने सांसदों के निलंबन का कारण बताया है। सांसदों के निलंबन का कारण मानसून सत्र के आखिरी दिन “सदन की अवमानना करने, अनियंत्रित और हिंसक व्यवहार करने और सुरक्षा कर्मियों पर जानबूझकर हमले को बताया गया है।” इनमें से किसी सांसद पर कागज फाड़ने तो किसी पर टीवी स्क्रीन तोड़ने के आरोप हैं।  

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