Interview: जेडीयू प्रवक्ता राजीव रंजन बोले- भाजपा बताए ढाई दशक में कितने सहयोगी साथ में, सबको धोखा दिया

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बिहार में नीतीश कुमार जी के नेतृत्व में जब सरकार बनी उसके बाद से भाजपा हमारे दल को कमजोर करने की कोशिश में थी। जिस पर जनता ने भरोसा किया था आप उसको ही हिलाने लगे। आप बिहार में महाराष्ट्र दोहराना चाहते थे। आप हमारे दल में सेंधमारी कर के अपने कारनामे बिहार में दोहराना चाहते थे। अरे हम तो फिर भी गठबंधन का धर्म निभा रहे थे लेकिन यह तो जिस थाली में खा रहे थे वही छेद कर रहे थे। अब 2024 के लिए एक जमीन बिहार की पवित्र धरती पर तैयार हो गई है। जेडीयू के राष्ट्रीय महासचिव और पार्टी के प्रवक्ता राजीव रंजन ने अमर उजाला डॉट कॉम के आशीष तिवारी से बिहार में भाजपा गठबंधन टूटने के बाद विस्तार से बातचीत की। पेश है बातचीत के अंश।

सवाल: भाजपा गठबंधन टूटना और नया गठबंधन बनाना, क्या यह सब अचानक हुआ या पहले से तय था। 
जवाब: देखिए भारतीय जनता पार्टी गठबंधन का धर्म तो निभा ही नहीं पा रही थी। वह तो जिस थाली में खा रहे थे उसी थाली में छेद कर रहे थे। गठबंधन का धर्म तो भाजपा निभा ही नहीं पाती है। अब आप देखिए न…महाराष्ट्र में जिस पार्टी ने भारतीय जनता पार्टी की स्थापना काल से उनका साथ दिया, लेकिन सत्ता के लालच में भाजपा नेतृत्व उसी पार्टी को खत्म करने पर लग गया। भारतीय जनता पार्टी बिहार में महाराष्ट्र वाला कारनामा दोहराना चाहती थी।

सवाल:  तो आपको यह कब लगा कि भारतीय जनता पार्टी बिहार में भी जेडीयू के साथ महाराष्ट्र वाला कारनामा दोहराना चाहती है।
जवाब:  देखिए अंदाजा तो इस बात का चिराग पासवान की पार्टी के साथ लड़ने वाले भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेताओं के नाम के साथ ही हो गया था। इस बात को पार्टी नेतृत्व ने बहुत प्रमुखता से भारतीय जनता पार्टी के सामने उठाया भी था। दरअसल भाजपा ने कुटिलता से जेडीयू को कम सीटों पर लाकर दूसरे दलों पर निर्भरता बढ़ाने की एक कोशिश तो जरूर की थी लेकिन वह उसमें सफल नहीं हो पाए। क्योंकि नीतीश जी के चेहरे पर बिहार में सरकार बनी थी इसलिए गठबंधन के चलते सरकार बनाई गई। जब महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ भारतीय जनता पार्टी ने यह करना शुरू किया तभी हम लोगों को एहसास हो गया कि सत्ता के लालच में भारतीय जनता पार्टी उनके दल में भी सेंधमारी कर सकती है। 

सवाल:  क्या लग रहा था कि आप की पार्टी मैं कैसे और कौन सेंधमारी करने के लिए लगा दिया गया है।
जवाब: देखिए…राजनैतिक परिदृश्य मे इस बात का अंदाजा तो हो ही जाता है कि कौन आपके साथ है और कौन आपके साथ नहीं है। सेंधमारी करने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने आरसीपी सिंह को लगाया था और आरसीपी सिंह बाकायदा उस मिशन पर लग भी गए थे। हम लोगों ने जब इसको समझा तो लग गया कि गठबंधन धर्म भारतीय जनता पार्टी सत्ता के लालच में निभा नहीं पा रही है। इसलिए इनसे दूरी बना लेना बेहतर है।
 
सवाल:  ऐसे कौन से मुद्दे थे जिस पर आपको लगता रहा कि भारतीय जनता पार्टी गठबंधन का धर्म नहीं निभा पा रही है।
जवाब: देखिए… बहुत सारे ऐसे मुद्दे थे जिस पर बार-बार लगता था कि भारतीय जनता पार्टी गठबंधन नहीं निभा पा रही है। खासतौर से असहमति को तो भारतीय जनता पार्टी स्वीकार ही नहीं कर पाती है। मतलब आप इस तरीके से समझिए अगर आप भारतीय जनता पार्टी के विचारों के साथ नहीं खड़े हैं तो आप राष्ट्रद्रोही हो जाएंगे। हमारी पार्टी ने भारतीय जनता पार्टी की आर्थिक नीतियों का खुलकर विरोध किया। हमने कई मंचों से कई जगहों पर इस बात का जिक्र किया था। सांप्रदायिकता के माहौल में होने वाले विघटन पर भी हमारी पार्टी का रुख बिल्कुल स्पष्ट था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी ने इस पूरे मुद्दे पर पहले भी चिंता व्यक्त की थी और कई मंचों पर और गठबंधन के नेताओं से इस पर अपने विचार भी रखे थे।

सवाल: इन सब के बीच ऐसी कौन सी और बड़ी बात आपको चुभ गई कि आपने चंद मिनट में भाजपा के साथ इतना पुराना गठबंधन तोड़ दिया। 
जवाब: भारतीय जनता पार्टी के कैरेक्टर में है कि वह जनादेश के मूल्यों का सम्मान नहीं करती है। आप एक नहीं कई ऐसे राज्यों को उठाकर देख लीजिए जहां पर जनादेश कुछ और था लेकिन सत्ता के लालच में भारतीय जनता पार्टी ने वहां पर क्या-क्या नहीं किया। जेडीयू ना तो इस तरीके की पार्टी है और ना ही इस तरीके की विचारधारा वाले लोगों के साथ रह सकती है। कई मुद्दों पर हम लोग खुलकर अपनी बात भी रखते थे लेकिन बड़ी घुटन सी महसूस होती थी। 

सवाल: भारतीय जनता पार्टी के साथ बहुत सी क्षेत्रीय दलों की जो बड़ी राजनैतिक पार्टियां थी, वह अब उनके साथ नहीं रहे अब तो जेडीयू का भी नाम उसमें जुड़ गया। क्या वजह पाते हैं आप इसकी।
जवाब : गठबंधन के साथ एक बड़ी क्षेत्रीय पार्टी जेडीयू ही भारतीय जनता पार्टी के साथ बची थी। उनकी कारगुजारियों के चलते भारतीय जनता पार्टी के साथ अब जेडीयू भी नहीं है। अब उनके साथ कोई भी विश्वस्त सहयोगी दल बचा ही नहीं है। यह सवाल तो जेडीयू के साथ है ही नहीं सवाल तो भारतीय जनता पार्टी से पूछा जाना चाहिए कि बीते ढाई दशक में वह यह बताएं कि उनका किसके साथ गठबंधन वाला धर्म अब तक चल रहा है। दरअसल जब नियत में खोट होता है तो लंबे समय तक राजनैतिक गठबंधन धर्म नहीं निभाया जा सकता है। 

सवाल: तमाम विरोधाभास रहे हो लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने नीतीश कुमार को गठबंधन का बड़ा चेहरा माना और मुख्यमंत्री भी बनाया। जबकि भारतीय जनता पार्टी की सीटें तो जेडीयू से ज्यादा थीं।
जवाब: भारतीय जनता पार्टी ने गठबंधन का बड़ा चेहरा तो नीतीश जी को बना दिया लेकिन ऐसी रणनीति बनाई की जेडीयू कम सीटें जीत करके आए। ताकि आपकी निर्भरता बढ़ती चली जाए। अब देखिए चुनाव के समय चिराग पासवान को भारतीय जनता पार्टी ने शह दे दी। भारतीय जनता पार्टी के बड़े-बड़े चेहरे चिराग पासवान की पार्टी से चुनाव लड़ रहे थे। क्या यह बात हम लोग नहीं समझ रहे थे।

सवाल: लेकिन अब तो हर और चर्चा यह हो रही है कि नीतीश कुमार को सत्ता से बहुत प्यार है। वो सत्ता में बने रहना चाहते हैं। यही वजह है कि आठवीं बार मुख्यमंत्री के तौर वो फिर शपथ लेंगे।
जवाब: नहीं.. नहीं बिल्कुल नहीं। यहां पर बात सत्ता की तो है ही नहीं। यहां पर बात बिहार की जनता की है। अगर नीतीश कुमार जी ने बिहार की जनता से वायदे किए हैं तो उनको जमीन पर उतारने के लिए एक मजबूत सरकार की जरूरत है।

सवाल :  बिहार में बनने वाली नई सरकार जो आरजेडी के साथ मिलकर बन रही है यह कोई मजबूरी की सरकार तो नहीं कही जाएगी।
जवाब: बिल्कुल नहीं। यह मजबूरी की सरकार बिल्कुल नहीं है। दरसल भारतीय जनता पार्टी के एजेंडे में अब हिजाब बाइबल आ गयी है। राजनीति यह नहीं होती है। समान विचारधारा के साथ न सिर्फ गठबंधन होता है बल्कि मजबूत सरकार भी दी जाती है। बिहार में अब नई सरकार इसी समान विचारधारा के साथ न सिर्फ प्रदेश का विकास करने वाली है बल्कि राजनीति के दूरगामी परिणाम भी देने वाली है।

सवाल: बिहार के पूरे घटनाक्रम को लेकर के क्या यह माना जाए कि 2024 के चुनावों में सियासी जमीन पटना में तैयार कर दी गई है। 
जवाब: क्षेत्रीय दलों को तो भारतीय जनता पार्टी हमेशा से किनारे लगाती आई है। इस वक्त जेडीयू के साथ बिहार के छोटे छोटे दल मिलकर के बड़ी ताकत बन गए हैं। तो एक जो ध्रुवीकरण है देश में राजनीतक दलों का उसकी पृष्ठभूमि बिहार ने रच दी है। और निश्चित तौर पर इसके दूरगामी नतीजे भी होंगे।

विस्तार

बिहार में नीतीश कुमार जी के नेतृत्व में जब सरकार बनी उसके बाद से भाजपा हमारे दल को कमजोर करने की कोशिश में थी। जिस पर जनता ने भरोसा किया था आप उसको ही हिलाने लगे। आप बिहार में महाराष्ट्र दोहराना चाहते थे। आप हमारे दल में सेंधमारी कर के अपने कारनामे बिहार में दोहराना चाहते थे। अरे हम तो फिर भी गठबंधन का धर्म निभा रहे थे लेकिन यह तो जिस थाली में खा रहे थे वही छेद कर रहे थे। अब 2024 के लिए एक जमीन बिहार की पवित्र धरती पर तैयार हो गई है। जेडीयू के राष्ट्रीय महासचिव और पार्टी के प्रवक्ता राजीव रंजन ने अमर उजाला डॉट कॉम के आशीष तिवारी से बिहार में भाजपा गठबंधन टूटने के बाद विस्तार से बातचीत की। पेश है बातचीत के अंश।

सवाल: भाजपा गठबंधन टूटना और नया गठबंधन बनाना, क्या यह सब अचानक हुआ या पहले से तय था। 

जवाब: देखिए भारतीय जनता पार्टी गठबंधन का धर्म तो निभा ही नहीं पा रही थी। वह तो जिस थाली में खा रहे थे उसी थाली में छेद कर रहे थे। गठबंधन का धर्म तो भाजपा निभा ही नहीं पाती है। अब आप देखिए न…महाराष्ट्र में जिस पार्टी ने भारतीय जनता पार्टी की स्थापना काल से उनका साथ दिया, लेकिन सत्ता के लालच में भाजपा नेतृत्व उसी पार्टी को खत्म करने पर लग गया। भारतीय जनता पार्टी बिहार में महाराष्ट्र वाला कारनामा दोहराना चाहती थी।

सवाल:  तो आपको यह कब लगा कि भारतीय जनता पार्टी बिहार में भी जेडीयू के साथ महाराष्ट्र वाला कारनामा दोहराना चाहती है।

जवाब:  देखिए अंदाजा तो इस बात का चिराग पासवान की पार्टी के साथ लड़ने वाले भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेताओं के नाम के साथ ही हो गया था। इस बात को पार्टी नेतृत्व ने बहुत प्रमुखता से भारतीय जनता पार्टी के सामने उठाया भी था। दरअसल भाजपा ने कुटिलता से जेडीयू को कम सीटों पर लाकर दूसरे दलों पर निर्भरता बढ़ाने की एक कोशिश तो जरूर की थी लेकिन वह उसमें सफल नहीं हो पाए। क्योंकि नीतीश जी के चेहरे पर बिहार में सरकार बनी थी इसलिए गठबंधन के चलते सरकार बनाई गई। जब महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ भारतीय जनता पार्टी ने यह करना शुरू किया तभी हम लोगों को एहसास हो गया कि सत्ता के लालच में भारतीय जनता पार्टी उनके दल में भी सेंधमारी कर सकती है। 

सवाल:  क्या लग रहा था कि आप की पार्टी मैं कैसे और कौन सेंधमारी करने के लिए लगा दिया गया है।

जवाब: देखिए…राजनैतिक परिदृश्य मे इस बात का अंदाजा तो हो ही जाता है कि कौन आपके साथ है और कौन आपके साथ नहीं है। सेंधमारी करने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने आरसीपी सिंह को लगाया था और आरसीपी सिंह बाकायदा उस मिशन पर लग भी गए थे। हम लोगों ने जब इसको समझा तो लग गया कि गठबंधन धर्म भारतीय जनता पार्टी सत्ता के लालच में निभा नहीं पा रही है। इसलिए इनसे दूरी बना लेना बेहतर है।

 

सवाल:  ऐसे कौन से मुद्दे थे जिस पर आपको लगता रहा कि भारतीय जनता पार्टी गठबंधन का धर्म नहीं निभा पा रही है।

जवाब: देखिए… बहुत सारे ऐसे मुद्दे थे जिस पर बार-बार लगता था कि भारतीय जनता पार्टी गठबंधन नहीं निभा पा रही है। खासतौर से असहमति को तो भारतीय जनता पार्टी स्वीकार ही नहीं कर पाती है। मतलब आप इस तरीके से समझिए अगर आप भारतीय जनता पार्टी के विचारों के साथ नहीं खड़े हैं तो आप राष्ट्रद्रोही हो जाएंगे। हमारी पार्टी ने भारतीय जनता पार्टी की आर्थिक नीतियों का खुलकर विरोध किया। हमने कई मंचों से कई जगहों पर इस बात का जिक्र किया था। सांप्रदायिकता के माहौल में होने वाले विघटन पर भी हमारी पार्टी का रुख बिल्कुल स्पष्ट था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी ने इस पूरे मुद्दे पर पहले भी चिंता व्यक्त की थी और कई मंचों पर और गठबंधन के नेताओं से इस पर अपने विचार भी रखे थे।

सवाल: इन सब के बीच ऐसी कौन सी और बड़ी बात आपको चुभ गई कि आपने चंद मिनट में भाजपा के साथ इतना पुराना गठबंधन तोड़ दिया। 

जवाब: भारतीय जनता पार्टी के कैरेक्टर में है कि वह जनादेश के मूल्यों का सम्मान नहीं करती है। आप एक नहीं कई ऐसे राज्यों को उठाकर देख लीजिए जहां पर जनादेश कुछ और था लेकिन सत्ता के लालच में भारतीय जनता पार्टी ने वहां पर क्या-क्या नहीं किया। जेडीयू ना तो इस तरीके की पार्टी है और ना ही इस तरीके की विचारधारा वाले लोगों के साथ रह सकती है। कई मुद्दों पर हम लोग खुलकर अपनी बात भी रखते थे लेकिन बड़ी घुटन सी महसूस होती थी। 

सवाल: भारतीय जनता पार्टी के साथ बहुत सी क्षेत्रीय दलों की जो बड़ी राजनैतिक पार्टियां थी, वह अब उनके साथ नहीं रहे अब तो जेडीयू का भी नाम उसमें जुड़ गया। क्या वजह पाते हैं आप इसकी।

जवाब : गठबंधन के साथ एक बड़ी क्षेत्रीय पार्टी जेडीयू ही भारतीय जनता पार्टी के साथ बची थी। उनकी कारगुजारियों के चलते भारतीय जनता पार्टी के साथ अब जेडीयू भी नहीं है। अब उनके साथ कोई भी विश्वस्त सहयोगी दल बचा ही नहीं है। यह सवाल तो जेडीयू के साथ है ही नहीं सवाल तो भारतीय जनता पार्टी से पूछा जाना चाहिए कि बीते ढाई दशक में वह यह बताएं कि उनका किसके साथ गठबंधन वाला धर्म अब तक चल रहा है। दरअसल जब नियत में खोट होता है तो लंबे समय तक राजनैतिक गठबंधन धर्म नहीं निभाया जा सकता है। 

सवाल: तमाम विरोधाभास रहे हो लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने नीतीश कुमार को गठबंधन का बड़ा चेहरा माना और मुख्यमंत्री भी बनाया। जबकि भारतीय जनता पार्टी की सीटें तो जेडीयू से ज्यादा थीं।

जवाब: भारतीय जनता पार्टी ने गठबंधन का बड़ा चेहरा तो नीतीश जी को बना दिया लेकिन ऐसी रणनीति बनाई की जेडीयू कम सीटें जीत करके आए। ताकि आपकी निर्भरता बढ़ती चली जाए। अब देखिए चुनाव के समय चिराग पासवान को भारतीय जनता पार्टी ने शह दे दी। भारतीय जनता पार्टी के बड़े-बड़े चेहरे चिराग पासवान की पार्टी से चुनाव लड़ रहे थे। क्या यह बात हम लोग नहीं समझ रहे थे।

सवाल: लेकिन अब तो हर और चर्चा यह हो रही है कि नीतीश कुमार को सत्ता से बहुत प्यार है। वो सत्ता में बने रहना चाहते हैं। यही वजह है कि आठवीं बार मुख्यमंत्री के तौर वो फिर शपथ लेंगे।

जवाब: नहीं.. नहीं बिल्कुल नहीं। यहां पर बात सत्ता की तो है ही नहीं। यहां पर बात बिहार की जनता की है। अगर नीतीश कुमार जी ने बिहार की जनता से वायदे किए हैं तो उनको जमीन पर उतारने के लिए एक मजबूत सरकार की जरूरत है।

सवाल :  बिहार में बनने वाली नई सरकार जो आरजेडी के साथ मिलकर बन रही है यह कोई मजबूरी की सरकार तो नहीं कही जाएगी।

जवाब: बिल्कुल नहीं। यह मजबूरी की सरकार बिल्कुल नहीं है। दरसल भारतीय जनता पार्टी के एजेंडे में अब हिजाब बाइबल आ गयी है। राजनीति यह नहीं होती है। समान विचारधारा के साथ न सिर्फ गठबंधन होता है बल्कि मजबूत सरकार भी दी जाती है। बिहार में अब नई सरकार इसी समान विचारधारा के साथ न सिर्फ प्रदेश का विकास करने वाली है बल्कि राजनीति के दूरगामी परिणाम भी देने वाली है।

सवाल: बिहार के पूरे घटनाक्रम को लेकर के क्या यह माना जाए कि 2024 के चुनावों में सियासी जमीन पटना में तैयार कर दी गई है। 

जवाब: क्षेत्रीय दलों को तो भारतीय जनता पार्टी हमेशा से किनारे लगाती आई है। इस वक्त जेडीयू के साथ बिहार के छोटे छोटे दल मिलकर के बड़ी ताकत बन गए हैं। तो एक जो ध्रुवीकरण है देश में राजनीतक दलों का उसकी पृष्ठभूमि बिहार ने रच दी है। और निश्चित तौर पर इसके दूरगामी नतीजे भी होंगे।

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