National Games 2011 Scam: साल 2011 में हुए 34वें नेश्नल गेम्स में हुए भ्रष्टाचार के मामले में CBI ने 16 जगहों पर छापेमारी की. यह छापेमारी वकील आर के आनंद और झारखंड के पूर्व खेल मंत्री बंधु तिर्की समेत 13 आरोपियों पर के दिल्ली, रांची, धनबाद, बोकारो, गोड्डा, दुमका, पटना के ठिकानों पर की गई. इसमें दिल्ली में नेश्नल गेम्स का मुख्यालय भी शामिल है.
नेशनल गेम्स में 28 करोड़ का भ्रष्टाचार
आरोप है कि साल 2011 में राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी रांची को दी गई थी और वकील आर के आनंद झारखंड ओलंपिक संघ के अध्यक्ष थे. यानी इन खेलों के मुख्य आयोजनकर्ता थे और खेलों को करवाने की जिम्मेदारी इन्हीं की थी. आरोप है कि खेलों को करवाने के लिए किए गए इंतजाम और आयोजन में करीब 28 करोड़ का भ्रष्टाचार किया गया. इसे मामले की जांच झारखंड की एंटी करप्शन ब्रांच भी कर रही थी लेकिन बाद में जांच सीबीआई को दे दी गई.
तय दामों से महंगा खरीदा खेलों का सामान
CBI में दर्ज मामले के मुताबिक साल 2011 में रांची में नेश्नल गेम्स का आयोजन किया गया था और इसके लिए राज्य सरकार ने खेलों के आयोजन और तैयारियों के लिए काफी बड़ा फंड आयोजन कमेटी को दिया था. लेकिन आरोप है कि खेलों के आयोजन के नाम पर जो पैसा दिया गया था उसका गलत इस्तेमाल किया गया और तय दामों से महंगे खेलों के सामान को खरीदा गया. ये सब बिना टेंडर निकाले किया गया.
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दामों में इतना बड़ा फर्क
खेल आयोजन के नाम पर जो तैयारियां की गईं थीं वो बिना किसी टेंडर के की गईं थीं. धनबाद में स्कवैश कोर्ट को भी इसी तरह तैयार किया गया. टेनिस खेल के लिए 200 दर्जन डनलप टेनिस बॉल 880 रुपये दर्जन के भाव पर खरीदी गई, जबकि उसका रेट 550 रुपये दर्जन था. टूर्नामेंट में 8 टीमें थी जिसमें 100 खिलाड़ी आने थे और तीन सेट के गेम थे जिसके लिए 200 दर्जन बॉल खरीदी गई, जबकि विंबलडन के लिए भी 128 खिलाडियों के 125 सेट गेम में भी 30 दर्जन से ज्यादा टेनिस बॉल की जरूरत नहीं होती. इसका मतलब बिना वजह 200 दर्जन टेनिस बॉल खरीदी गई जबकि इन टेनिस बॉल की लाइफ 6 महीने से ज्यादा नहीं होती.
इसके अलावा ओमेगा कंपनी की वीडियो स्कीन 10 करोड़ में खरीदी गई, जिसकी कोई जरूरत नहीं थी. ठीक इसी तरह अलग-अलग खेलों के लिए एक ही कंपनी के स्कोर बोर्ड अलग-अलग दामों पर खरीदे गए.
लोन दिखाकर झांसा देने की कोशिश
इतना ही नहीं, आर के आनंद और दूसरे आरोपियों ने खेलों के आयोजन के लिए मिले पैसों से 1,79 करोड़ रुपये खाते से निकाले और ऑडिट में इसे लोन दिखाया गया जबकि ऐसा कोई नियम ही नहीं जिसमें आयोजन के लिये मिले पैसों को लोन के नाम पर दिया जाए. खास बात ये है कि लोन दिए गए ये पैसे वापिस भी नहीं आए.
12 साल पुराने मामले की जांच
करोड़ों के घपले की खबर के बाद झारखंड विजिलेंस ने मामला दर्ज कर इसकी जांच शुरू की थी लेकिन झारखंड के आदेश के बाद CBI ने 22 अप्रैल को इस मामले को दर्ज कर अपनी जांच शुरू की थी. जांच मिलने के बाद ये पहली बार है जब सीबीआई ने छापेमारी कर 12 साल पुराने मामले की जांच में सबूत जुटाने की कोशिश की है.
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