धोनी घुटने के दर्द से परेशान, ले रहे जड़ी-बूटी: गाय के दूध संग पीते हैं, पढ़िए-40 रुपए में इलाज करने वाले वैद्य का इंटरव्यू

धोनी घुटने के दर्द से परेशान, ले रहे जड़ी-बूटी: गाय के दूध संग पीते हैं, पढ़िए-40 रुपए में इलाज करने वाले वैद्य का इंटरव्यू

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एक घंटा पहलेलेखक: संजय सिन्हा

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रांची से 70 किमी दूर जंगल से घिरा लापुंग का इलाका। यहां कटिंगकेला के गलगली धाम में घने पेड़ के नीचे नीले और लाल रंग की प्लास्टिक का तंबू लगा है। इसके अंदर कुर्सी पर वैद्य वंदन सिंह खेरवार बैठे हैं। उनके बायें, दायें और सामने कुछ मरीज कुर्सियों पर बैठे हैं तो कुछ जमीन पर। वैद्य वंदन सिंह जहां बैठे हैं वहां जमीन पर कुछ बर्तन रखे हैं। किसी में जड़ी-बूटी है तो किसी में दूध। दवा बनाने के लिए भी उनके कुछ असिस्टेंट हैं। वैद्य वंदन सिंह चर्चा में इसलिए हैं कि वे भारतीय किक्रेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के घुटनों का इलाज कर रहे हैं। इलाज कैसे करते हैं, कहां से सीखी यह विद्या, जड़ी-बूटी कहां से लाते हैं, कहां-कहां से लोग आते हैं इन सब पर दैनिक भास्कर ने उनसे बातचीत की।

भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी प्रशंसकों के साथ।

भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी प्रशंसकों के साथ।

धोनी कब से इलाज करवा रहे हैं?

वैद्य: करीब 20-22 दिनों से धोनी इलाज को आ रहे। चार-पांच दिनों के अंतराल पर दवा लेते हैं। अब तक पांच खुराक दवा ले चुके हैं। चार महीने से धोनी के माता-पिता भी यहां इलाज के आ रहे हैं। उन्हें भी घुटने में दर्द रहता है। दवा खाने के बाद उनके माता-पिता को आराम है। उसके बाद से धोनी इलाज के लिए आ रहे हैं।

धोनी किसी बड़े डॉक्टर के पास इलाज करवा सकते थे, लेकिन वह आपके पास आए। उन्होंने क्या कहा?

वैद्य: मैं उन्हें नहीं पहचानता था। टीवी पर देखा था, अखबारों में भी फोटो देखा था, लेकिन प्रत्यक्ष रूप से नहीं। जब वह इलाज के लिए आए तो मैं नहीं जानता था कि वे धोनी हैं। जब लोगों ने उनके साथ फोटो लेना शुरू किया तब मुझे पता चला। चूंकि यहां मरीज अधिक आते हैं इसलिए धोनी से अधिक बात नहीं हो पाई। उन्होंने गाय के दूध में मिली हुई जड़ी-बूटी पी और चले गए।

कटिंगकेला गलगली धाम पहुंचे एमएस धोनी।

कटिंगकेला गलगली धाम पहुंचे एमएस धोनी।

एक खुराक के कितने पैसे लेते हैं?

वैद्य: एक खुराक के 40 रुपए लेता हूं। वैसे जड़ी-बूटी का पैसा नहीं लेता। दूध में मिलाकर जड़ी-बूटी पिलाई जाती है। दूध का ही पैसा लिया जाता है। धोनी से भी दूसरे मरीजों की तरह एक खुराक के 40 रुपए लिए।

कौन-कौन से सेलिब्रेटी, राजनेता यहां आ चुके हैं? कहां-कहां से मरीज आपके पास आते हैं?

वैद्य: सेलिब्रेटी तो नहीं जानता, लेकिन कई नेता, बिजनेसमैन इलाज के लिए आ चुके हैं। झारखंड विधानसभा के पूर्व स्पीकर दिनेश उरांव के भाई विजय उरांव का इलाज किया था। उनकी कमर टूट गई थी। इलाज के बाद वह ठीक हो गए थे। इसी तरह पूर्व शिक्षा मंत्री बैद्यनाथ राम का इलाज भी तीन महीने तक चला था। उनके पैरों में दर्द रहता था। पूर्व विधायक बंदी उरांव के घुटनों का इलाज भी किया है। आज ही झारखंड के डीजीपी भी इलाज कराने पहुंचे थे। उन्हें भी दवा दी है।

झारखंड के अलग-अलग जिलों से लोग इलाज को तो आते ही हैं दूसरे प्रदेशों से भी आते हैं। छत्तीसगढ़, ओडिशा, बंगाल से मरीज आते हैं। दिल्ली, कोलकाता, वेल्लोर से भी मरीज आए हैं।

गांव की बच्ची के साथ एमएस धोनी।

गांव की बच्ची के साथ एमएस धोनी।

किस तरह इलाज करते है? जड़ी-बूटी कहां से लाते हैं?

वैद्य: दो तरीके से इलाज होता है। एक, गाय के दूध में जड़ी-बूटी मिला कर पिलाई जाती है। दूसरा, जहां दर्द है वहां जड़ी-बूटी लगाई जाती है। जिस मरीज को जैसा इलाज की जरूरत होती है वैसा ट्रीटमेंट होता है। कुछ समय पहले कोलकाता की रहनेवाली सीमा नाम की लड़की इलाज को आई थी। उसका हाथ टूट गया था। कई जगहों पर इलाज कराया, लेकिन ठीक नहीं हुआ। पहले टूटी हुई हड्‌डी को सीधा किया, उसे कपड़े से बांधा और फिर जड़ी-बूटी मिली दवा पिलाई। पूरी खुराक लेने के बाद उसका टूटा हुआ हाथ जुड़ गया।

झारखंड में जंगल ही जंगल है। यहां आसपास के इलाके में हर जगह जड़ी बूटी मिल जाती है। जंगल में इसकी वेराइटी अधिक मिलती है। जड़ी-बूटी रोज लाते हैं। पहले से स्टोर करके नहीं रखते। अगर इनका इस्तेमाल तुरंत नहीं किया जाए तो ये कुछ घंटों में खराब हो जाते हैं। इसलिए हर 10 मिनट पर दवा बनती है, मरीजों को पिलाई जाती है। इन जड़ी-बूटी को पीने से शरीर में कैल्शियम की मात्रा बढ़ जाती है। टूटी हुई हड्‌डी जुड़ जाती है। हडि्डयों में दर्द कैल्शियम की कमी से होता है। जड़ी-बूटी पीने से दर्द खत्म हो जाता है।

कहां तक पढ़ाई की है? कब से इलाज कर रहे और कहां से विद्या सीखी?

वैद्य: तीसरी कक्षा तक मैंने पढ़ाई की है। 27 साल हो चुके हैं इलाज करते हुए। ये 28वां साल चल रहा है। मैं खेरवार जनजाति का हूं। जब मैं युवा था, तब एक बार एक खेरवार लड़की का पैर टूट गया। उसे लेकर गुमला गया। वहां सदर अस्पताल में इलाज नहीं हो सका। तब वहां मेरे ससुराल के लोगों ने कहा कि यहां गांव में ही इलाज हो जाएगा। वहां उस बच्ची रेणु का इलाज हुआ। उसका पैर जुड़ गया।

वहां मेरी मुलाकात रेवतिया जनजाति के घासी सिंह से हुआ। उनसे मैंने जड़ी-बूटी को पहचानना, उनसे इलाज करना सीखा। तब से वे मेरे गुरु बन गए। मेरे गुरु ने कहा था कि केवल दूध के पैसे लेना, जड़ी-बूटी की नहीं। इसलिए मैं जड़ी-बूटी के पैसे नहीं लेता। मां से भी मैंने जड़ी-बूटी की पहचान करना सीखा है।

धोनी इलाज के लिए पहुंचे तो एक प्रशंसक को इस तरह पोज देने से खुद को रोक नहीं सके।

धोनी इलाज के लिए पहुंचे तो एक प्रशंसक को इस तरह पोज देने से खुद को रोक नहीं सके।

हर दिन कितने मरीज आते हैं? कभी कोई ऐसा मरीज आया, इलाज के बाद जिसकी तबीयत बिगड़ गई हो? कभी कोई परेशानी झेलनी पड़ी?

हर दिन सौ से अधिक मरीज आते हैं। कोई टूटा हाथ, टूटा पैर, टूटी हुई कमर लेकर आता है। किसी की पीठ में दर्द, पैरों-हाथों में दर्द से कराहता है। मेरी दवा से उन्हें आराम मिलता है। इतने वर्षों में कभी कोई शिकायत नहीं सुनी।

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