जब शोमैन राजकपूर के लिए राष्ट्रपति ने तोड़ा था प्रोटोकॉल, जानें साल 1988 का किस्सा

जब शोमैन राजकपूर के लिए राष्ट्रपति ने तोड़ा था प्रोटोकॉल, जानें साल 1988 का किस्सा

Time Machine on Zee News: ज़ी न्यूज के खास शो टाइम मशीन में हम आपको बताएंगे साल 1988 के उन किस्सों के बारे में जिसके बारे में शायद ही आपने सुना होगा. इसी साल भारत में प्रधानमंत्री की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए लाया गया था SPG यानी The Special Protection Group एक्ट. द्रौपदी’ के चीरहरण पर दुर्योधन को भेजा गया था गैर जमानती वारंट. इसी साल एक्टर आमिर खान और जूही चावला पर फैंस ने बरसाए थे पत्थर. यही वो साल था जब भारत को अपनी पहली महिला लोको पायलट मिली थी. आइये आपको बताते हैं साल 1988 की 10 अनसुनी अनकही कहानियों के बारे में.

प्रधानमंत्री का ‘सुरक्षा कवच’ SPG

1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके ही बॉडीगार्ड ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. इसके बाद प्रधानमंत्री बने राजीव गांधी पर भी 1986 और 1987 में लगातार हमले किए गए. प्रधानमंत्री के लिए सुरक्षा कवच की चिंता महसूस की जाने लगी. फिर 1988 में SPG यानी Special Protection Group बनाया गया. प्रधानमंत्री की सुरक्षा की पूरी ज़िम्मेदारी SPG को सौंपी गई. इसका गठन Special Protection Group Act यानी  SPG Act के तहत हुआ, जिसे लोकसभा ने पारित किया था. SPG प्रधानमंत्री और उनके परिवार को पूरी तरह सुरक्षा प्रदान करती है. SPG देश में और विदेश में हर वक्त प्रधानमंत्री की सुरक्षा करती है. SPG का कोई भी सदस्य छुट्टी नहीं ले सकता, उसे हमेशा ड्यूटी पर माना जाएगा. SPG में रहते हुए कोई भी सदस्य इस्तीफा नहीं दे सकता. SPG का कोई भी सदस्य किसी भी राजनीतिक, श्रम यूनियन, ट्रेड यूनियन या फिर किसी सामाजिक संस्था का सदस्य नहीं बन सकता. SPG में रहने के दौरान वो अपने काम से जुड़ी बातों पर किताब नहीं लिख सकता. SPG पर ऑन ड्यूटी कोई भी कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती. देश के मौजूदा प्रधानमंत्री के अलावा पूर्व पीएम और कई मामलों में उनके परिवार के लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी SPG की होती है. SPG कमांडोज की सुरक्षा 4 स्तर की होती है. पहले स्तर में SPG की टीम के पास सुरक्षा का जिम्मा होता है. SPG के 24 कमांडो प्रधानमंत्री की सुरक्षा में तैनात रहते हैं. SPG के बेड़े में गाड़ियां और हवाई जहाज भी शामिल रहते हैं.

द्रौपदी का चीरहरण, दुर्योधन को वारंट!

रामायण के बाद दूरदर्शन पर महाभारत सीरियल प्रसारित किया गया. 1988 में शुरू हुए इस  सीरियल की लोकप्रियता जल्द ही बढ़ने लगी. इसे देखते हुए सीरियल के एपिसोड भी धीरे-धीरे बढ़ाए जाने लगे. लेकिन क्या आप जानते हैं कि महाभारत सीरियल में दुर्योधन का रोल निभाने की वजह से पुनीत इस्सर को गैर जमानती वारंट भी भेजा गया? ये सच है, वाराणसी में रहने वाले एक शख्स ने द्रौपदी के चीरहरण वाले दृश्य को देखने के बाद महाभारत सीरियल के मेकर्स पर केस कर दिया था. कोर्ट ने उनके खिलाफ गैर जमानती वारंट भी जारी किया था और पुलिस उन्हें जेल भी ले गई थी. पुनित इस्सर ने इस बात का खुलासा अपने एक इंटरव्यू में किया. किसी ने मुझसे आकर कहा कि आप के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी हो गया है. बनारस के किसी व्यक्ति ने कहा है कि आप ने सीरियल में द्रौपदी का जो चीर हरण किया है उससे उसे दुःख हुआ है. लेकिन किसी तरह बीआर चोपड़ा और रवि चोपड़ा ने मामला सुलझा लिया. हर कोई इस मामले से हैरान था. 28 साल बाद ये केस दोबारा खुला और इस केस के लिए पुनीत इस्सर को खुद बनारस जाना पड़ा. वहां जाकर पता चला कि केस दर्ज करवाने वाले शख्स को बस पुनीत इस्सर के साथ फोटो खिंचवानी थी.

शोमैन के लिए राष्ट्रपति ने तोड़ा प्रोटोकॉल!

साल 1988 में आर वेंकेटरमन देश के राष्ट्रपति थे. उन्हें बेहद सुलझा और सरल इंसान माना जाता था. इसकी एक झलक 1988 में हुए दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड समारोह के दौरान देखने को मिली. राज कपूर को इस पुरस्कार से सम्मानित किया जाना था, बीमार होने के बावजूद वो दिल्ली के सिरी फोर्ट में आयोजित हो रहे कार्यक्रम में  ऑक्सीजन सिलेंडर के साथ पहुंचे. हालांकि उनकी हालत ऐसी नहीं थी कि वो राष्ट्रपति के पास स्टेज तक पहुंच पाएं. ये सब कुछ राष्ट्रपति रामस्वामी वेंकटरमन के सामने हो रहा था. राष्ट्रपति ने राज कपूर की तकलीफ समझ ली. वो प्रोटोकॉल को तोड़ते हुए राज कपूर को अवॉर्ड देने के लिए स्टेज से नीचे पहुंच गए. हालांकि इस दौरान राज कपूर की हालत और बिगड़ने लगी जिसके बाद राष्ट्रपति वेंकटरमन ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि वो उनकी एंबुलेंस में राज कपूर को अस्पताल ले जाएं. राज कपूर को दिल्ली के एम्स ले जाया गया. जहां कुछ दिनों बाद उनका निधन हो गया.

अयोध्या में रामलीला का मंचन

1987 में एक तरफ जहां चलो अयोध्या के नाम से रथ यात्रा निकाली गई तो वहीं 1988 में अयोध्या में अनवरत रामलीला का मंचन शुरू किया गया. प्रत्येक मंगलवार को जानकी महल के मोहन सदन में रामलीला शुरू की गई, करीब एक साल तक ये सिलसिला चला. लेकिन फिर आगे चलकर रामलीला के मंचन को त्योहारों पर किया जाने लगा. यहां तक कि मध्यप्रदेश के सुसनेर में शुक्रवारिया बाजार में स्टेट बैंक चौराहे पर स्थित श्रीराम जानकी मंदिर में जन्माष्टमी के मौके पर शहर के राम भक्तों और मंदिर के पुजारियों ने झांकी सजाकर प्रस्तावित दो मंजिल श्रीराम मंदिर की झांकी बनाई थी. जिस पर लिखा था – सौंगध राम की खाते हैं मंदिर वहीं बनाएंगे और बच्चा-बच्चा राम का, जन्मभूमि के काम का. झांकी में तैयार किया गया ये मंदिर उस वक्त देश में चर्चा का कारण बना. यहां तक की विश्वहिन्दू परिषद ने भी इस झांकी की काफी तारीफ की थी.

‘मिले सुर मेरा तुम्हारा..’

साल 1988 में राष्ट्रीय एकता और विविधता में एकता को बढ़ावा देने के लिए दूरदर्शन पर एक गीत प्रसारित किया गया. ये गीत था- मिले सुर मेरा तुम्हारा. ये गीत जल्द ही देश के हर कोने में हर किसी की ज़ुबान पर चढ़ गया. हर भारतीय ने इसे अपने दिल में बिठा लिया. मिले सुर मेरा तुम्हारा गीत को 1988 में लोक सेवा संचार परिषद ने तैयार किया और सूचना मंत्रालय ने इसे प्रचारित किया. इस गीत को मशहूर संगीतकार भीमसेन जोशी ने संगीतबद्ध किया. इस गीत में हिंदी, असमिया, बंगाली, गुजराती, कन्नड़, कश्मीरी, मराठी, उड़िया, पंजाबी,, तेलुगु, और उर्दू जैसी भाषाओं का इस्तेमाल किया गया. दूरदर्शन पर प्रसारित हुए इस गीत में अलग-अलग क्षेत्रों के कलाकार और मशहूर हस्तियां नजर आईं. 1988 में लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री के भाषण के प्रसारण के बाद पहली बार स्वतंत्रता दिवस के दिन मिले सुर मेरा तुम्हारा गीत को प्रसारित किया गया.

आमिर-जूही पर फैंस ने बरसाए पत्थर

आमिर खान ने अपने फिल्मी करियर की शुरूआत साल 1988 में रिलीज हुई फिल्म ‘कयामत से कयामत तक’ से की थी. आमिर की पहली ही फिल्म सुपरहिट साबित हुई. उनकी और जूही चावला की जोड़ी को बेहद पसंद किया गया. लेकिन क्या आप जानते है कि इस फिल्म की वजह से आमिर और जूही पर लोगों ने पत्थर फेंके थे? ये वो दौर था जब फिल्म की स्क्रीनिंग के वक्त टीम प्रमोशन के लिए तमाम थियेटर्स में भी जाया करती थी. आमिर खान और जूही चावला बेंगलुरु में फिल्म प्रमोशन के लिए पहुंचे. इसी दौरान आयोजक उन्हें याद दिलाने के लिए मंच पर आए कि उन्हें अगले थिएटर के लिए निकलना है. लेकिन वहां मौजूद लोग नहीं चाहते थे कि आमिर और जूही जाएं. लोगों की भीड़ देखते हुए थियेटर के लोगों ने उन्हें पिछले दरवाजे से कार तक पहुंचाया लेकिन तब तक लोगों ने उन्हें कार में बैठे देख लिया और भड़क गए. लोगों ने आमिर और जूही की कार पर ईंट-पत्थर फेंकने शुरू कर दिए. इससे कार का शीशा टूट गया और टूटे हुए टुकड़े भी उनके ऊपर जाकर गिरे. इसके बाद ड्राइवर ने कार की स्पीड बढ़ाई और तब जाकर आमिर और जूही वहां से सुरक्षित निकल पाए.

एशिया की पहली महिला लोको पायलट

कहते हैं हौसले और मेहनत के बल पर दुनिया जीती जा सकती है. महाराष्ट्र के सतारा जिले की सुरेखा यादव ने भी दुनिया जीती. ऐसी दुनिया जिसमें पटरियों पर रेल दौड़ाने का जिम्मा सिर्फ पुरुषों का था, 1988 में उस दुनिया में कमद रखते हुए एशिया की पहली महिला लोको पायलेट बनी थी सुरेखा यादव. सुरेखा ने 1986 में रेलवे की परीक्षा दी. परीक्षा पास कर ली और भारतीय रेलवे बोर्ड ने उन्हें इंटरव्यू के लिए बुलाया. सुरेखा ने इंटरव्यू भी पास कर लिया और उन्हें कल्याण ट्रेनिंग स्कूल में बतौर ट्रेनी असिस्टेंट ड्राइवर भेजा गया. तब सुरेखा यादव ने कहा था कि मुझे नहीं लगा था कि मेरा चयन होगा. वो नौकरी के लिए मेरा पहला आवेदन था. मैंने 1986 में सेन्ट्रल रेलवे में बतौर ट्रेनी असिस्टेंट ड्राइवर जॉइन किया और उसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. किसी को पहला कदम उठाना था और समानता लानी थी. मुझे पता था कि देश के लिए अपने परिवार के लिए और अपने लिए कुछ करने का यही मौका था. आगे चलकर 1998 में सुरेखा को गुड्स ट्रेन चलाने की पूरी जिम्मेदारी दी गई. 2000 तक सुरेखा को रेलरोड इंजीनियर बना दिया गया. रेलरोड इंजीनियर को ही लोको पायलट, ट्रेनड्राइवर, मोटरवुमन कहते हैं. सुरेखा की ये उपलब्धि आग की तरह फैली और हर कोई उनके चर्चे करने लगा.

ऑपरेशन केक्टस ने बढ़ाया भारत का मान

1988 में जब मालदीव में तख्तापलट की योजना बनाई गई थी, जिसमें तत्कालीन राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गय्यूम संकट में घिर गए थे. तब भारतीय सेना ने “ऑपरेशन कैक्टस” के जरिए अपना दम दिखाया था. मालदीव में साल 1988 में पीपल्स लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ तमिल ईलम यानी PLOTE के आतंकियों ने विदेशी सैलानियों के रूप में मालदीव में हमला कर दिया था. पूरे शहर में प्लोटे के हथियार बंद आतंकी फैल गए थे और उन्होंने मालदीव के प्रमुख सरकारी भवन, एयरपोर्ट, बंदरगाह और टेलिविजन स्टेशन पर कब्जा जमा लिया था. इस भारी संकट के बीच मालदीव की सरकार ने पाकिस्तान, यूएस, ब्रिटेन, श्रीलंका जैसे कई देशों से मदद मांगी लेकिन अंत समय में भारत सरकार ने उनकी मदद करने की ठानी. यह भारतीय सेना का पहला विदेशी मिशन था. 3 नवंबर 1988 की रात भारतीय वायुसेना और थल सेना ने ‘ऑपरेशन कैक्टस’ लांच किया. नौ घंटे की लगातार उड़ान के बाद करीब तीन सौ जवान हुलहुले एयरपोर्ट जा पहुंचे, यह हवाई अड्डा माले की सेना के कंट्रोल में था. इसके बाद बड़ी ही चतुराई से भारतीय टुकड़ी राजधानी माले में दाखिल हुई. फिर माले एयरपोर्ट को कब्जे में लेकर राष्ट्रपति अब्दुल गय्यूम को सुरक्षित जगह पहुंचाया था.

कलाम ने किया पृथ्वी का परीक्षण

25 फरवरी 1988 ऐसा दिन था जब भारत के बारे में दुनिया का हर देश चर्चा कर रहा था. सुबह 11.23 मिनट पर जब काउंटडाउन ख़त्म हुआ तो भयानक आवाज के साथ ‘पृथ्वी’ आकाश की ओर उड़ चली और भारतीय वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष में नई इबारत लिखी. इस मिसाइल का विकास केवल एक शुरूआत थी और एक छोटा लेकिन बहुत ही अहम कदम था जिसके बाद भारतीय सुरक्षा तकनीकी वैज्ञानिकों ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. लेकिन इस पृथ्वी मिसाइल जिसे बाद में पृथ्वी-1 मिसाइल कहा जाने लगा था, रातों रात विकिसित नहीं हुई. 1983 में इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम की शुरुआत हुई थी. 1988 में पृथ्वी मिसाइल का श्रीहरिकोट से सफल परिक्षण किया गया. जिसका श्रेय भारत के मिसाइल मैन एपीजे अब्दुल कमाल और इंदिरा गांधी को जाता है. यह भारत की पहली स्वदेशी बैलिस्टिक मिसाइल थी. इसकी रेंज 150-300 किमी है. भारत द्वारा किए गए पृथ्वी के सफर परीक्षण बाद दुनिया भर में हो-हल्ला मच गया. नाटो के देश हैरान रह गए. परमाणु संपन्न सात देशों ने हिंदुस्तान को तकनीक के हस्तांतरण पर रोक लगा दी. जिसका भारत पर कुछ खास फर्क नहीं पड़ा.

21 से 18 की गई वोट डालने की उम्र

देश के प्रजातंत्र में साल 1988 में एक बड़ा बदलाव आया. देश में चुनाव के समय वोट डालने के लिए उम्र को 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया. यानी कि अब चुनाव में वोट डालने के लिए 18 वर्ष का बालिग होना ही काफी था. भारतीय संविधान के 61वां संशोधन के तरह लोकसभा में 15 दिसंबर 1988 को एक बिल पास किया गया था जिसमें वोट डालने की उम्र 18 साल की गई थी. इस बिल को  28 मार्च 1989 के दिन राष्ट्रपति रामास्वामी वेंकटरमन  ने मंजूरी दी थी.

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