भारत-रूस संबंध: 6 दिसंबर को राष्ट्रपति पुतिन के साथ क्या एक बड़ी चुनौती को साध पाएंगे प्रधानमंत्री मोदी?

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ रही चुनौतियों के बीच रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन 6 दिसंबर को भारत आ रहे हैं। सूचना है कि राष्ट्रपति 6 दिसंबर को ही 21 वीं भारत-रूस वार्षिक समिट होने के बाद लौट जाएंगे। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए भी रूस के साथ रिश्ते को गहराई में ले जाने का एक अवसर है, क्योंकि कोविड-19 संक्रमण काल के बाद पुतिन किसी देश के राष्ट्राध्यक्ष से द्विपक्षीय वार्ता के लिए भारत का दौरा कर रहे हैं। सबसे दिलचस्प है कि पुतिन की यह यात्रा रूस के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार निकोलाई पात्रुशेव की पाकिस्तान यात्रा संपन्न होने के बाद हो रही है। ऐसे में देखना है कि भारत और रूस अपने रिश्ते को और क्षेत्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय संबंधों में एक दूसरे के लिए कितना उपयोगी बना पाते हैं।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची रूस से भारत की विश्वसनीय और पुरानी रणनीतिक और सामरिक साझेदारी को लेकर बहुत आशान्वित हैं। हालांकि अभी वह 21वीं भारत-रूस वार्षिक समिट-2021 की आउटर बाउंड्री ही बता पा रहे हैं। सूचना यही है कि भारत और रूस के बीच में सैन्य तकनीकी समझौते को लेकर कुछ अवरोध बना हुआ है। यह समझौता विश्वसनीयता को नया आयाम देगा, लेकिन अब बचे हुए तीन दिन में इसके हो पाने की संभावना कम नजर आ रही है।

एक दिन की यात्रा और उम्मीदें तमाम
रूस के रक्षा मंत्री 5-6 दिसंबर की रात में आ जाएंगे। विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव भी होंगे। पहले चरण में रूस के रक्षा मंत्री और राजनाथ सिंह तथा रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव और विदेश मंत्री एस जयशंकर की तमाम मुद्दों पर मंत्रणा होगी। यह २+२ संवाद का रिश्ता भारत का कुछ देशों के साथ ही है। दोपहर के बाद प्रधानमंत्री मोदी रूस के राष्ट्राध्यक्ष के साथ भारत-रूस वार्षिक समिट में प्रतिनिधिमंडल स्तरीय वार्ता करेंगे। दोनों नेताओं में क्षेत्रीय, अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर बातचीत होगी। आपसी हितों से जुड़े तमाम मुद्दों पर द्विपक्षीय चर्चा होगी। 

इसमें रक्षा, परमाणु तकनीकी, आपसी व्यापार, विज्ञान और तकनीकी को बढ़ाना प्रमुख होने के आसार हैं। भारत अमेरिका की तमाम अड़चनों को पार करते हुए रूस से उसकी प्रतिरक्षी मिसाइल प्रणाली को ले रहा है। 2022 में इसकी आपूर्ति आरंभ हो जाएगी। इस प्रणाली की डिलीवरी चीन और पाकिस्तान दोनों को अखर रही है। दोनों देश इसे क्षेत्र में सैन्य संतुलन गड़बड़ाने और हथियारों की होड़ को बढ़ावा देने का हवाला दे रहे हैं। इसके अलावा भारत और रूस के बीच में सैन्य मामलों में कुछ संवेदनशील सहमतियों का भी मुद्दा है। देखना है कि दोनों देश सहयोग के रास्ते पर कितना चल पाते हैं।

क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हैं चुनौतियां
रूस और भारत के संबंधों की तासीर क्षेत्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई तथ्यों को प्रभावित करती है। मसलन रूस के चीन, सीरिया, ईरान, तुर्की से अच्छे रिश्ते चल रहे हैं। चीन के साथ सीमा समस्या भी है, लेकिन शी जिनपिंग के साथ रूस के राष्ट्रपति का समीकरण भी है। चीन के जरिए रूस ने पाकिस्तान के साथ संबंधों को ठीक करना शुरू किया है। हाल में पाकिस्तान के एनएसए मो. युसुफ के बुलावे पर रूस के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार वहां थे और तमाम क्षेत्रों में संबंधों को मधुर करने पर चर्चा हुई है। पात्रुशेव की इस यात्रा पर भारत की भी निगाह है।

पाकिस्तान, चीन और रूस के बीच में अफगानिस्तान को लेकर एक केमिस्ट्री बन रही है। भारत भी इसकी तासीर का अंदाजा लगा रहा है। यही स्थिति पूर्वी लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक चीन के साथ भारत के बने हुए तनाव की स्थिति है। भारत और रूस के बीच में द्विपक्षीय सामरिक, रणनीतिक साझेदारी का संबंध है। दोनों देश चीन के साथ मिलकर त्रिपक्षीय फोरम (रूस-भारत-चीन) बनाते हैं। अभी हाल में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इसमें हिस्सा लिया है। ब्रिक्स फोरम भी है और भारत शंघाई सहयोग संगठन का सदस्य है। 

कूटनीति और विदेश नीति के जानकारों का कहना है कि लंबे समय तक भारत और रूस के बीच में बनी केमिस्ट्री के कारण पाकिस्तान और चीन के मोर्चे पर आ रही चुनौतियों का सम्मानजनक समाधान होता रहा है। इधर कुछ सालों से इस समीकरण में भी एक बदलाव देखा जा रहा है। ऐसे में देखना होगा कि इस संबंध संतुलन में भारत और रूस दोनों कितना आगे बढ़ पाते हैं। इस संतुलन के बनने से भारत की अफगानिस्तान को लेकर कुछ चिंताओं का भी समाधान हो सकता है। अंतरराष्ट्रीय मुद्दे, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थिति से लेकर तमाम अहम मुद्दे हैं। माना जा रहा है कि इसी कड़ी में आतंकवाद का भी मुद्दा महत्वपूर्ण है और इन सभी मुद्दों पर पुतिन से वार्ता होगी।

अमेरिका, इस्राइल, यूरोप, रूस और भारत
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय में अमेरिका से रिश्ता मधुर रखने की शुरुआत हुई थी। इस्राइल के साथ पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने संबंधों की शुरुआत पर जोर दिया था। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अमेरिका और इस्राइल के साथ संबंधों को आगे बढ़ाया। अपने कार्यकाल में अमेरिका के साथ रिश्ते को नए आयाम पर ले गए। यूरोप के साथ संबंध के समीकरण को संतुलित रखा और इन सबके बीच में रूस के साथ रक्षा समेत अन्य क्षेत्र में रिश्ते कुछ डगमगाने लगे थे। अब भारत के पास अमेरिका, इस्राइल, यूरोप को साधकर रूस से रिश्ते का संतुलन बनाने की चुनौती है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन की विदेश नीति, द्विपक्षीय संबंधों की पृष्ठभूमि को देखते हुए देखना है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस कठिन चुनौती को कितना आसान बना पाते हैं।

कुछ समझौते और सहमतियां होंगी
दोनों देशों के अधिकारी पिछले कुछ महीने से 21 वीं भारत-रूस वार्षिक संवाद समिट को लेकर चर्चा कर रहे हैं। रक्षा, विदेश, राजनीतिक तमाम मुद्दों पर चर्चा हो रही है। इस बीच में कुछ समझौतों और सहमतियों का आधार तैयार किया गया है। रूस रक्षा, विज्ञान और तकनीकी, परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष समेत तमाम क्षेत्रों में विश्वसनीय सहयोगी रहा है। इसको लेकर कई समझौतों पर सहमति बनने के आसार है। माना जा रहा है कि दोनों शिखर नेताओं की मौजूदगी में कुछ समझौते और सहमति पत्र पर दस्तखत होंगे। दोनों नेता आपस में बनी सहमति और दृष्टिकोण को लेकर एक संयुक्त वक्तव्य भी जारी कर सकते हैं।

बड़ा सवाल बस एक है
भारत का पुराना विश्वसनीय साझीदार दोस्त केवल एक दिन की यात्रा पर आ रहा है। सूत्रों से प्राप्त यह जानकारी काफी चौंकाती है। इसे कूटनीतिक और राजनयिक संबंधों के जानकार भी सुनकर कोई जवाब नहीं देना चाहते। उनका बस इतना कहना है कि रूस के साथ चल रही रिश्तों की परंपरा बरकरार है। यह 21 वीं वार्षिक समिट है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए। इसके पीछे एक तर्क और है कि  ब्लादिमीर पुतिन पिछले काफी लंबे समय से रूस के राष्ट्रपति हैं। वह पिछले कार्यकाल में कई बार भारत की यात्रा कर चुके हैं। दूसरी तरफ भारत, रूस संबंधों को समझने वाले पूर्व विदेश सेवा के एक अधिकारी का कहना है कि वार्षिक समिट में राष्ट्राध्यक्षों का होना जरूरी है। पिछले साल यह कोविड-19 संक्रमण के कारण नहीं हो सकी थी। राष्ट्रपति इसकी औपचारिकता के साथ संबंधों की गहराई को बनाए रखने के उद्देश्य से आ रहे हैं। इस दौरान किसी बड़े समझौते की संभावना कम है।

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