महाराष्ट्र में बहुत कम समय में हुए सियासी उथल-पुथल ने राज्य में राजनीति की पूरी तस्वीर ही बदलकर रख दी। हालांकि कहा जा रहा है कि इस बदलाव की भूमिका लंबे समय से तैयार हो रही थी। एक महीने पहले की बात करें तो आराम से उद्धव ठाकरे की सरकार चल रही थी। सरकार के पास 153 विधायकों का समर्थन था। इसके बाद अचानक मानो बगावत का तूफान आ गया। कुछ ही दिनों ने एकनाथ शिंदे के गुट ने उद्धव ठाकरे को घुटने पर ला दिया।
उद्धव को हुआ दोहरा नुकसान
इस बगावत से न केवल उद्धव ठाकरे की मुख्यंत्री की कुर्सी चली गई बल्कि दो तिहाई विधायक भी विरोधी खेमे में चले गए। रविवार को जब विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव हुआ तो सही नंबर भी सामने आ गया। उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे दोनों ही गुटों ने सभी 55 शिवसेना के विधायकों के लिए व्हिप जारी की थी। भाजपा के राहुल नार्वेकर के पक्ष में 164 वोट पड़े वहीं ठाकरे के राजन साल्वी के पक्ष में केवल 16 वोट ही पड़े।
शिंदे सरकार के बहुमत साबित करने पर बोले उद्धव, हमें खत्म करने की साजिश
स्पष्ट हो गया है कि शिंदे गुट जो कि खुद को शिवसेना बालासाहेब कह रहा है, उसके पास 39 विधायक हैं। सोमवार को उद्धव ठाकरे को एक और झटका लगा जब उनके विश्वास पात्र माने जाने वाले संतोष बांगर भी शिंदे गुट में शामिल हो गए। वह कलमनूरी से विधायक हैं। विधानसभा में ट्रस्ट वोट के समय वह शिंदे गुट में थे। अब उद्धव गुट की संख्या केवल 15 रह गई।
15 विधायकों में से आधे मुंबई के विधानसभा क्षेत्रों से आते हैं। उद्धव ठाकरे के पास जो विधायक हैं उनमें आदित्य ठाकरे, अजय विनायक चौधरी, प्रकाश वैकुंठ फाटेरपेकर, रमेश गजानन कोरगांवकर, रमेश लातके, राउत सुनील राजाराम और दत्ताराम वायकर हैं। वहीं शिंदे गुट के पास पूरे महाराष्ट्र से विधायक हैं।
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