न्यूज डेस्क, अमर उजाला, लखनऊ
Published by: ishwar ashish
Updated Mon, 23 Aug 2021 11:01 PM IST
सार
कोर्ट ने कहा कि पुलिस फोर्स को एक अनुशासित फोर्स होना चाहिए और लॉ इंफोर्समेंट एजेंसी होने के कारण इसकी छवि भी सेक्युलर होनी चाहिए। न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान ने यह अहम नजीर वाला फैसला अयोध्या के खंडासा थाने में तैनात रहे सिपाही मोहम्मद फरमान की दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनाया।
प्रतीकात्मक तस्वीर
– फोटो : सोशल मीडिया
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कोर्ट ने कहा कि पुलिस फोर्स को एक अनुशासित फोर्स होना चाहिए और लॉ इंफोर्समेंट एजेंसी होने के कारण इसकी छवि भी सेक्युलर होनी चाहिए। न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान ने यह अहम नजीर वाला फैसला अयोध्या के खंडासा थाने में तैनात रहे सिपाही मोहम्मद फरमान की दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनाया।
पहली याचिका में पुलिस महानिदेशक द्वारा 26 अक्टूबर 2020 को जारी सर्कुलर के साथ-साथ याची ने अपने खिलाफ डीआइजी/एसएसपी अयोध्या द्वारा पारित निलंबन आदेश को चुनौती दी थी जबकि दूसरी याचिका में विभागीय अनुशासनात्मक कार्रवाई में याची के खिलाफ जारी आरोप पत्र को चुनौती दी गई थी।
याची का कहना था कि संविधान में दिए गए धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के तहत उसने मुस्लिम सिद्धांतों के आधार पर दाढ़ी रखी हुई है। याचिका का सरकारी वकील ने विरोध करते हुए याचिकाओं की ग्राह्यता के बिन्दु पर सवाल उठाए।
कोर्ट ने कहा कि अपने एसएचओ की चेतावनी के बावजूद दाढ़ी न कटवा कर याची ने कदाचरण किया है। अदालत ने कई सम्बंधित विधिक व्यवस्थाओं का हवाला देकर उक्त आदेश देकर याचिका खारिज कर दी।
विस्तार
कोर्ट ने कहा कि पुलिस फोर्स को एक अनुशासित फोर्स होना चाहिए और लॉ इंफोर्समेंट एजेंसी होने के कारण इसकी छवि भी सेक्युलर होनी चाहिए। न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान ने यह अहम नजीर वाला फैसला अयोध्या के खंडासा थाने में तैनात रहे सिपाही मोहम्मद फरमान की दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनाया।
पहली याचिका में पुलिस महानिदेशक द्वारा 26 अक्टूबर 2020 को जारी सर्कुलर के साथ-साथ याची ने अपने खिलाफ डीआइजी/एसएसपी अयोध्या द्वारा पारित निलंबन आदेश को चुनौती दी थी जबकि दूसरी याचिका में विभागीय अनुशासनात्मक कार्रवाई में याची के खिलाफ जारी आरोप पत्र को चुनौती दी गई थी।
याची का कहना था कि संविधान में दिए गए धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के तहत उसने मुस्लिम सिद्धांतों के आधार पर दाढ़ी रखी हुई है। याचिका का सरकारी वकील ने विरोध करते हुए याचिकाओं की ग्राह्यता के बिन्दु पर सवाल उठाए।
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