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मुंबई2 घंटे पहलेलेखक: विनोद यादव
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आदित पलिचा और कैवल्य वोहरा।
दो दोस्त, उम्र महज 19 साल…पर बिजनेस शुरू करने की धुन में अमेरिका की प्रतिष्ठित स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में कम्प्यूटर साइंस की पढ़ाई तक छोड़ दी। आत्मविश्वास इतना कि सालभर से भी कम समय में स्टार्टअप को स्थापित कर दिया, बड़े व बेहतर फंडिंग वाले स्टार्टअप को भी कई साल लग जाते हैं। हाल में इनके स्टार्टअप जेप्टो ने 450 करोड़ की फंडिंग जुटाई है। बात कर रहे हैं युवा उद्यमियों आदित पलीचा और कैवल्य वोहरा की। जानिए इनकी सफलता की कहानी इन्हीं के शब्दों में…
‘स्टैनफोर्ड में एडमिशन सपना सच होने जैसा था। पर लक्ष्य तो बिजनेस शुरू करना ही था। इसलिए कम्प्यूटर साइंस की पढ़ाई छोड़ दी। परिवार वालों ने बहुत मना किया। आगाह किया कि हम ऐसा फैसला न लें। वे कहते रहे कि भविष्य से खिलवाड़ मत करो। पर जब उन्होंने कारोबार बढ़ता देखा, तो उन्हें भी लगा कि ये जिंदगी में एक बार मिलने वाला मौका है। इसकी शुरुआत के पीछे की कहानी भी अद्भुत है। कोरोना की पहली लहर में हमने अनुभव किया कि घर की जरूरी चीजों के लिए भी काफी संघर्ष करना पड़ा। ज्यादातर ग्रॉसरी डिलीवरी एप सामान पहुंचाने में 3-4 दिन ले रहे थे।
हम जैसे बैचलर्स के लिए इतना इंतजार मुश्किल था, तब लगा कि बाकी लोगों पर क्या बीत रही होगी। बस तभी आइडिया क्लिक किया। इस दौरान समझ आ चुका था कि देश में क्यू कॉमर्स (क्विक कॉमर्स) का भविष्य सुनहरा है। वाई कॉम्बिनेटर और ग्लैड ब्रुक कैपिटल जैसे निवेशकों ने हमारी उम्र को तवज्जो न दे कारोबार की बुनियादी बातों पर भरोसा किया। हाल की फंडिंग राउंड में कंपनी की मार्केट वैल्यू 2,250 करोड़ रु. आंकी गई है। साप्ताहिक यूजर रिटेंशन दर 50% है।
ऑर्डर 10 मिनट से कम वक्त में डिलीवर हो जाते हैं, कुछ ही में 15 से 16 मिनट लगते हैं। अभी हम सिर्फ मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरू व एनसीआर में हैं। ग्राहक जेप्टो एप से चेकआउट करते हैं, इतनी देर में तो सामान पैक व डिस्पैच हो जाता है। पूरी प्रकिया में एक मिनट से कम लगता है।
हमने 2,000 ऐसे आइटम चुने हैं, जिनकी जरूरत सबसे ज्यादा होती है। हमारे स्टोर्स में 100 से ज्यादा सामान एंट्रेंस पर हैं ताकि पैकिंग-डिलीवरी में वक्त न लगे। ग्रॉसरी डिलीवरी बाजार सालाना 200% की दर से बढ़ रहा है। 10 मिनट ग्रॉसरी डिलीवरी सेगमेंट में 75 हजार करोड़ वाले कई स्टार्टअप पैदा करने क्षमता है…लगता है कि स्टैनफोर्ड छोड़ने का हमारा फैसला गलत नहीं था।’ -आदित, कैवल्य
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