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तिरुपुर23 मिनट पहलेलेखक: तिरुपुर से सुनील सिंह बघेल
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करीब डेढ़ माह पहले तिरुपुर की एक चाय की दुकान में सिगरेट के धुएं से उठे विवाद को अफवाहें इतना बड़ा बवंडर बना देंगी, किसी ने सोचा नहीं था। इसके बाद तमिलनाडु में बाहरी कामगारों की प्रताड़ना की ऐसी झूठी कहानियां निकलीं कि लोगों का पलायन शुरू हो गया। इसके चलते देश के टेक्सटाइल निर्यात में 50% से ज्यादा हिस्सेदारी रखने वाले तिरुपुर में 70% फैक्ट्रियां बंद होने की कगार पर पहुंच गई हैं।
बिहार में यहां से चली हवाओं की प्रतिक्रिया है, तो दूसरी ओर, तमिलनाडु में स्थानीयता की उग्र पक्षधर तमिलर कच्छी (एनटीके) जैसी पार्टी इस विवाद को तमिल-गैर तमिल का रंग देकर अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने में लग गई है। नतीजा आज 70% तक उत्तर भारतीय मजदूर जा चुके हैं। हालांकि इनमें बड़ी संख्या होली, शादियों के चलते घर जाने वालों की भी है।
तिरुपुर रेलवे स्टेशन पर भी दिख रही घबराहट
तिरुपुर से यूपी-बिहार जाने वाली ट्रेन शाम 4:00 बजे के बाद हैं, पर दोपहर से ही लोगों की भीड़ है। स्टेशन आने वाले लोग वापसी का कारण होली या शादी बताते हैं। हालांकि उनके चेहरों पर घबराहट साफ दिखती है। जमुई के विक्रम कुमार 4 बहनों को लेने बिहार से आए हैं।
ट्रेन छूट गई तो स्टेशन के कोने को ठिकाना बना लिया। इस बीच, गुरुवार रात पटरी पर उत्तर भारतीय का शव मिला। स्थानीय प्रशासन के लिए ये हादसा है तो बाहरी के लिए दहशत का एक और सबब।
ज्यादातर के साथ हुआ नहीं, पर सुना सबने है
सीतामढ़ी के अभिषेक कहते हैं स्थानीय लोगों द्वारा डरा-धमकाकर शराब के लिए पैसे मांगना सामान्य बात है। मुझे भी देने पड़े। शरद लाल कहते हैं जो मजदूर बचे हैं वह घरों में हैं। मैं डरा हुआ हूं। होली के बाद माहौल ठीक हुआ तो लौटूंगा, नहीं तो दिल्ली जाऊंगा। हम चले गए तो शहर भुतहा हो जाएगा।
मुजफ्फरपुर के विवेक कहते हैं सोशल मीडिया पर अफवाह ज्यादा है। हुआ किसी के साथ कुछ नहीं, देखा भी किसी ने नहीं। अफवाहों के चलते शहर से लोग निकल रहे हैं।
बिहार और तमिलनाडु सरकार भी सक्रिय
बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने इस मामले की जांच के लिए एक दल तमिलनाडु भेजा है। इस दल ने चेन्नई के कलेक्टर और श्रम आयुक्त से चर्चा की। वहीं, तिरूपुर कलेक्टर विनीत कुमार पुलिस के साथ कामगारों के यहां और फैक्ट्रियों में जाकर सुरक्षा का भरोसा दिला रहे हैं। कुमार कहते हैं हम दो मोर्चों पर लड़ रहे। एक तरफ सोशल मीडिया पर अफवाहों से युद्ध, दूसरा प्रवासियों में विश्वास पैदा करना। हिंदी भाषी डीसीपी अभिषेक गुप्ता कहते हैं, हेल्पलाइन जारी की है। शिकायतों पर तत्काल कार्रवाई कर रहे हैं।
यूपी के बरौनी के सत्य प्रकाश कहते हैं कि भाषा के नाम पर नहीं, पर हमारी मेहनत स्थानीय लोगों की चिढ़ का कारण है। पुष्टि तिरुपुर एक्सपोर्ट एसोसिएशन के सेक्रेटरी एस. शक्तिवेल भी कहते हैं कि स्थानीय मजदूर हैं नहीं। जो हैं वह काम नहीं करना चाहते। उत्तर भारतीय 12 से 14 घंटे काम करते हैं। जबकि स्थानीय पैसा पूरा चाहते हैं पर 8 घंटे से ज्यादा काम नहीं करते।
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