Freebies Issue: आप ने सुप्रीम कोर्ट से कहा- चुनावी भाषणों को विनियमित करना ‘असंभव की तलाश’ के अलावा कुछ नहीं

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आम आदमी पार्टी (आप) ने चुनाव के दौरान मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए राजनीतिक दलों द्वारा  रेवड़ियों (मुफ्त उपहारों) के वादों के मुद्दे का परीक्षण के लिए एक विशेषज्ञ निकाय के गठन के प्रस्ताव का सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विरोध किया है। आप का कहना हैं कि चुनावी भाषण को टारगेट करना और विनियमित करना जंगली हंस का पीछा (असंभव की तलाश) करने से ज्यादा कुछ नहीं है।

आप ने कहा है, ‘विशेषज्ञ निकाय के द्वारा चुनावी भाषणों पर प्रतिबंध लगाना या विनियमन भी नहीं किया जाना चाहिए। विधायी मंजूरी के बिना इस तरह के प्रतिबंध या निषेध, चाहे कार्यकारी या न्यायिक रूप से लगाए जाएं, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाम लगाने के समान होगा।

पूर्व भाजपा प्रवक्ता व वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने तीन अगस्त को केंद्र, नीति आयोग, वित्त आयोग और आरबीआई जैसे हितधारकों से इस गंभीर मुद्दे पर मंथन करने और इससे निपटने के लिए रचनात्मक सुझाव देने के लिए कहा था। शीर्ष अदालत ने चुनावी रेवड़ियों के नफा-नुकसान का परीक्षण करने के लिए कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा रेवड़ियों की घोषणा का अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। 

एक लिखित जवाब में आम आदमी पार्टी, जो मुफ्त बिजली और ऐसे अन्य उपायों के वादों पर दिल्ली और पंजाब में सत्ता में आई, ने तर्क दिया है कि नीतियों के दायरे पर किसी भी विधायी मार्गदर्शन के अभाव में ‘मुफ्त उपहार’ या चुनावी अभियानों में ऐसी नीतियों का वादा करने के परिणाम पर संभावित विशेषज्ञ निकाय द्वारा लिया गया कोई भी निर्णय संवैधानिक रूप से अधिकार के बिना होगा।” 

आप का यह भी कहना है कि महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक कार्य का निर्वहन करते हुए चुनावी वादे, वास्तविक वित्तीय व्यय को विनियमित करने के लिए पूरी तरह से अनुपयुक्त प्रॉक्सी हैं। 

आप का कहना है, ‘चुनावी भाषण पर ‘हमला’ करके राजकोषीय घाटे के मुद्दों को संबोधित करने की कोशिश, पार्टियों को कल्याण पर अपने वैचारिक रुख को संप्रेषित करने से रोकना चुनावों की लोकतांत्रिक गुणवत्ता को नुकसान पहुंचेगा। साथ ही राजकोषीय जिम्मेदारी हासिल करने को भी प्रभावित करेगा।

पार्टी ने कहा कि राजकोषीय जिम्मेदारी के हित में इस अदालत को हस्तक्षेप,(यदि कोई हो)की बजाय सार्वजनिक खजाने से धन के वास्तविक खर्च के बिंदु पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

आप का कहना है यदि विशेषज्ञ निकाय का गठन किया जाता है तो उसे वास्तविक राजकोषीय व्यय को नियंत्रित करने के उपाय सुझाने  का काम दिया जाना चाहिए लेकिन यह सब विकास के व्यापक समाजवादी-कल्याणवादी मॉडल को ध्यान में रखते हुए होना चाहिए।

आप ने उन गैर सरकारी संगठनों को शामिल करने का सुझाव दिया जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, ईडब्ल्यूएस, अल्पसंख्यक जैसे वंचित समूहों के लिए जमीनी स्तर पर काम करते हैं।

पार्टी ने इससे पहले अदालत के समक्ष दावा किया था कि राजनीतिक दलों को मुफ्त शिक्षा, पेयजल और स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने का वादा करने या कोई दावा करने से रोकने की याचिका न केवल अक्षम्य है बल्कि दुर्भावनापूर्ण भी है।

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आम आदमी पार्टी (आप) ने चुनाव के दौरान मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए राजनीतिक दलों द्वारा  रेवड़ियों (मुफ्त उपहारों) के वादों के मुद्दे का परीक्षण के लिए एक विशेषज्ञ निकाय के गठन के प्रस्ताव का सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विरोध किया है। आप का कहना हैं कि चुनावी भाषण को टारगेट करना और विनियमित करना जंगली हंस का पीछा (असंभव की तलाश) करने से ज्यादा कुछ नहीं है।

आप ने कहा है, ‘विशेषज्ञ निकाय के द्वारा चुनावी भाषणों पर प्रतिबंध लगाना या विनियमन भी नहीं किया जाना चाहिए। विधायी मंजूरी के बिना इस तरह के प्रतिबंध या निषेध, चाहे कार्यकारी या न्यायिक रूप से लगाए जाएं, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाम लगाने के समान होगा।

पूर्व भाजपा प्रवक्ता व वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने तीन अगस्त को केंद्र, नीति आयोग, वित्त आयोग और आरबीआई जैसे हितधारकों से इस गंभीर मुद्दे पर मंथन करने और इससे निपटने के लिए रचनात्मक सुझाव देने के लिए कहा था। शीर्ष अदालत ने चुनावी रेवड़ियों के नफा-नुकसान का परीक्षण करने के लिए कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा रेवड़ियों की घोषणा का अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। 

एक लिखित जवाब में आम आदमी पार्टी, जो मुफ्त बिजली और ऐसे अन्य उपायों के वादों पर दिल्ली और पंजाब में सत्ता में आई, ने तर्क दिया है कि नीतियों के दायरे पर किसी भी विधायी मार्गदर्शन के अभाव में ‘मुफ्त उपहार’ या चुनावी अभियानों में ऐसी नीतियों का वादा करने के परिणाम पर संभावित विशेषज्ञ निकाय द्वारा लिया गया कोई भी निर्णय संवैधानिक रूप से अधिकार के बिना होगा।” 

आप का यह भी कहना है कि महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक कार्य का निर्वहन करते हुए चुनावी वादे, वास्तविक वित्तीय व्यय को विनियमित करने के लिए पूरी तरह से अनुपयुक्त प्रॉक्सी हैं। 

आप का कहना है, ‘चुनावी भाषण पर ‘हमला’ करके राजकोषीय घाटे के मुद्दों को संबोधित करने की कोशिश, पार्टियों को कल्याण पर अपने वैचारिक रुख को संप्रेषित करने से रोकना चुनावों की लोकतांत्रिक गुणवत्ता को नुकसान पहुंचेगा। साथ ही राजकोषीय जिम्मेदारी हासिल करने को भी प्रभावित करेगा।

पार्टी ने कहा कि राजकोषीय जिम्मेदारी के हित में इस अदालत को हस्तक्षेप,(यदि कोई हो)की बजाय सार्वजनिक खजाने से धन के वास्तविक खर्च के बिंदु पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

आप का कहना है यदि विशेषज्ञ निकाय का गठन किया जाता है तो उसे वास्तविक राजकोषीय व्यय को नियंत्रित करने के उपाय सुझाने  का काम दिया जाना चाहिए लेकिन यह सब विकास के व्यापक समाजवादी-कल्याणवादी मॉडल को ध्यान में रखते हुए होना चाहिए।

आप ने उन गैर सरकारी संगठनों को शामिल करने का सुझाव दिया जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, ईडब्ल्यूएस, अल्पसंख्यक जैसे वंचित समूहों के लिए जमीनी स्तर पर काम करते हैं।

पार्टी ने इससे पहले अदालत के समक्ष दावा किया था कि राजनीतिक दलों को मुफ्त शिक्षा, पेयजल और स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने का वादा करने या कोई दावा करने से रोकने की याचिका न केवल अक्षम्य है बल्कि दुर्भावनापूर्ण भी है।

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