Modi Govt: सरकार ने अचानक क्यों वापस लिया निजी डेटा सुरक्षा विधेयक, चार साल की तैयारी में कहां रह गई कमी?

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केंद्र सरकार ने संसद से निजी डेटा सुरक्षा विधेयक को वापस ले लिया है। केंद्रीय सूचना एवं प्रोद्योगिकी मंत्री (आईटी मंत्री) अश्विनी वैष्णव ने लोकसभा में बुधवार को इसकी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि देश को अब ऑनलाइन क्षेत्र के लिए एक ‘वृहद कानूनी ढांचा’ चाहिए। इसके तहत डेटा निजता से लेकर पूरे इंटरनेट इकोसिस्टम, साइबरसिक्योरिटी, दूरसंचार नियामक और गैर निजी डेटा की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भी अलग-अलग कानून बनाने जरूरी होंगे। ताकि देश में नवाचार (इनोवेशन) को बढ़ावा दिया जा सके। 
सरकार के इस फैसले के क्या मायने?
गौरतलब है कि सरकार ने भारत में उपभोक्ताओं के निजी डेटा को सुरक्षित करने के मकसद से 2018 में ही इस विधेयक को लाने की तैयारी शुरू कर दी थी। इसके नियम तय कर के ड्राफ्टिंग करने तक सरकार ने चार साल का समय लिया। इतना ही नहीं कई कमेटियों ने इस विधेयक को परखा। यहां तक कि संसद की संयुक्त समिति (जेसीपी) ने भी इस विधेयक की समीक्षा की। हालांकि, गूगल, फेसबुक जैसे बड़ी टेक कंपनियों, निजता और सिविल सोसाइटी के एक्टिविस्ट्स ने इस विधेयक का पुरजोर विरोध किया। 

टेक कंपनियों ने तो इस विधेयक का विरोध करते हुए सरकार के डेटा लोकलाइजेशन के प्रस्तावित नियम का भी विरोध किया था। दरअसल, इस नियम के तहत गूगल, फेसबुक, ट्विटर जैसी विदेशी कंपनियों को भी भारतीय उपभोक्ताओं का संवेदनशील डेटा की एक कॉपी भारत में स्टोर करनी होती। इसके अलावा भारत से अहम निजी डेटा ले जाने पर पूरी तरह रोक लगाने का भी प्रावधान था। कार्यकर्ताओं को भी इस विधेयक के एक नियम से शिकायत थी, जिससे सरकार और केंद्रीय एजेंसियों को इसके प्रावधान का पालन करने से छिपे तौर पर छूट मिल सकती थी। 
भारत में डेटा सुरक्षा के लिए कानून तक नहीं
सरकार की तरफ से यह विधेयक लाने में काफी देरी भी की जा रही थी। इसकी वजह से बिल के कई समर्थकों ने सरकार की आलोचना भी की। इन लोगों का कहना था कि भारत जो कि मौजूदा समय में सबसे बड़े इंटरनेट बाजारों में से एक है, उसके पास भी लोगों की निजता की सुरक्षा के लिए कोई आधारभूत ढांचा नहीं है। 

चौंकाने वाली बात यह है कि इंटरनेट के बढ़ते दायरे के बीच डेटा सुरक्षा के लिए जस्टिस एपी शाह की कमेटी की रिपोर्ट को 10 साल, जबकि निजता के अधिकार को लेकर बनाई गई जस्टिस बीएन श्रीकृष्ण कमेटी की रिपोर्ट को आए चार साल हो गए हैं। इसके बावजूद डेटा सुरक्षा के लिए सरकार कानून नहीं ला पाई है। 
विधेयक को वापस लेने पर सरकार ने क्या जवाब दिया?
भारत के लिए एक डेटा सुरक्षा कानून को लेकर तैयारी 2018 में ही शुरू कर दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस श्रीकृष्ण कमेटी ने इस विधेयक का ड्राफ्ट पेश किया था। इस ड्राफ्ट की समीक्षा संसदीय कमेटी ने भी की और नवंबर 2021 में इसमें बदलाव के प्रस्ताव सौंपे गए। 

हालांकि, अब केंद्रीय आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने विधेयक को वापस लेने के सरकार के फैसले की वजह भी बताई है। उन्होंने कहा है कि निजी डेटा सुरक्षा विधेयक, 2019 पर संसद की संयुक्त समिति (जेसीपी) ने काफी विचार किया। इसमें 81 संशोधन प्रस्तावित किए गए। इसके अलावा भारत के डिजिटल इकोसिस्टम के लिए एक समग्र कानूनी ढांचा बनाने के लिए भी 12 प्रस्ताव सौंपे गए थे। ऐसी स्थिति में सरकार इस विधेयक को वापस ले रही है। हम एक वृहद कानूनी ढांचे के लायक नए विधेयक को जल्द पेश करेंगे।  
संसद की संयुक्त समिति ने क्या प्रस्ताव दिए थे?
संसद की संयुक्त समिति ने इस विधेयक पर समीक्षा के लिए 78 बैठकें कीं। इन बैठकों की अवधि 184 घंटे और 20 मिनट तक रही। समिति को करीब छह बार एक्सटेंशन दिया गया था। आखिरकार 2021 में जेसीपी ने श्रीकृष्ण पैनल की तरफ से तैयार किए विधेयक को 81 संसोधनों के साथ आगे बढ़ाया। इतना ही नहीं समिति ने इस कानून के दायरे को और वृहद करने की जरूरत बताई, जिससे उस डेटा की सुरक्षा भी सुनिश्चित हो, जो निजी न हो या जिसमें पहचान लायक जानकारी भी न हो।

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केंद्र सरकार ने संसद से निजी डेटा सुरक्षा विधेयक को वापस ले लिया है। केंद्रीय सूचना एवं प्रोद्योगिकी मंत्री (आईटी मंत्री) अश्विनी वैष्णव ने लोकसभा में बुधवार को इसकी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि देश को अब ऑनलाइन क्षेत्र के लिए एक ‘वृहद कानूनी ढांचा’ चाहिए। इसके तहत डेटा निजता से लेकर पूरे इंटरनेट इकोसिस्टम, साइबरसिक्योरिटी, दूरसंचार नियामक और गैर निजी डेटा की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भी अलग-अलग कानून बनाने जरूरी होंगे। ताकि देश में नवाचार (इनोवेशन) को बढ़ावा दिया जा सके। 

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