9 मिनट पहले
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हिमाचल चुनाव में बड़े नेताओं की सक्रियता जितनी थी, उससे कई गुना ज़्यादा सक्रियता गुजरात में देखी जा रही है। क्यों? क्योंकि भाजपा के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साख का सवाल है। कांग्रेस ने हालाँकि यहाँ के शहरी इलाक़ों से मैदान लगभग छोड़ ही दिया है। लेकिन आप को लगता है कि यहाँ भी पंजाब की तरह कोई चमत्कार हो सकता है।
चूँकि मुफ़्त का चलन गुजरात में कुछ ज़्यादा ही है इसलिए आप ने वहाँ 300 यूनिट तक मुफ़्त बिजली, महिलाओं को हर महीने हज़ार रुपए और बेरोज़गारी भत्ते जैसे प्रलोभन सबसे पहले दिए हैं। सब जानते हैं गुजरात में मुफ़्त के बीस रुपए का सामान लेने के लिए लोग बड़ी- लम्बी गाड़ियों में आते हैं, क़तार में खड़े रहते हैं और वो फ़्री का सामान लेकर जाते हैं। अगर पूछो कि ये जितने का सामान है उससे ज़्यादा का तो आपने गाड़ी में तेल जला दिया! फ़ायदा क्या हुआ? जवाब में कहा जाता है – आपकी बात ठीक है लेकिन हक़ तो छोड़ा नहीं जा सकता ना!
शहरों में तो आप की मुफ़्त की रेवड़ी का क्रेज़ दिखाई नहीं दे रहा है। आप वाले ज़रूर कहते फिर रहे हैं कि अंडर करंट है।
फिर भी कुछ पिछड़े इलाक़ों को छोड़ दिया जाए तो शहरों में तो आप की मुफ़्त की रेवड़ी का क्रेज़ दिखाई नहीं दे रहा है। आप वाले ज़रूर कहते फिर रहे हैं कि अंडर करंट है और सरकार हमारी ही बनेगी लेकिन ये अंडर करंट क्या है? किसका है? इसका जवाब उनके पास भी नहीं है।
ख़ैर कांग्रेस का जहां तक सवाल है उसकी लगभग चालीस- पचास सीटें यहाँ पक्की मानी जाती हैं, और वे इस बार भी उसके पास ही रहेंगी, यह लगभग तय माना जा रहा है। भारतीय जनता पार्टी का शहरों में हमेशा दबदबा रहता है जो इस बार भी दिखाई दे रहा है। लेकिन 127 सीटों से ऊपर जाना उसके लिए भी मुश्किल का मैदान है।
कांग्रेस का जहां तक सवाल है उसकी लगभग चालीस- पचास सीटें यहाँ पक्की मानी जाती हैं, और वे इस बार भी उसके पास ही रहेंगी, यह लगभग तय माना जा रहा है।
इसके पहले 2002 में भाजपा को 123 सीटें मिली थीं और चार बाद में जुड़ने से उसका आँकड़ा 127 पर पहुँचा था। उस रिकॉर्ड को इस बार तोड़ पाना बड़ा मुश्किल का मैदान नज़र आता है। जहां तक मुस्लिम मतदाताओं का सवाल है, आप की उपस्थिति के बावजूद उनके वोटों का बंटना मुश्किल लग रहा है। क्योंकि वे भी अब इतने चतुर तो हो ही गए हैं कि वे वोट का बँटवारा करके भाजपा को जीतने का अवसर नहीं देना चाहते।
2002 में भाजपा को 123 सीटें मिली थीं और चार बाद में जुड़ने से उसका आँकड़ा 127 पर पहुँचा था। उस रिकॉर्ड को इस बार तोड़ पाना बड़ा मुश्किल का मैदान नज़र आता है।
गाँवों की जिन सीटों पर वर्षों से कांग्रेस का दबदबा नज़र आता है, वहाँ ज़रूर आप की सेंधमारी काम कर रही है। ऐसी सीटों में से ज़्यादातर पर कांग्रेस और कुछ सीटों पर भाजपा को नुक़सान होने की तीव्र संभावना है।
आप की गुजरात में जितनी भी सीटें आएँ, उसके लिए मुनाफ़ा ही है क्योंकि उसकी यहाँ ज़मीन तैयार हो रही है। एक- दो चुनाव बाद हो सकता है उसे गुजरात में तगड़ा फ़ायदा मिल सके। फ़िलहाल तो वह राज्य में तीसरे नंबर पर ही रहेगी, ऐसा लगता है।
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