अडानी के बाद एक और कारोबारी पर संकट: भारी कर्ज में कंपनी, घट सकती है रेटिंग, 8 दिन से टूट रहे शेयर

अडानी के बाद एक और कारोबारी पर संकट: भारी कर्ज में कंपनी, घट सकती है रेटिंग, 8 दिन से टूट रहे शेयर

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Vedanta Ltd Share: हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद मुश्किलों का सामना कर रहे अरबपति गौतम अडानी की तरह एक और भारतीय कारोबारी संकट में हैं। ये कारोबारी वेदांता के चेयरमैन अनिल अग्रवाल हैं। अनिल अग्रवाल के स्वामित्व वाली कंपनी वेदांता रिसोर्सेज के कर्ज को लेकर सवाल उठ रहे हैं। इस वजह से शेयर बाजार में वेदांता लिमिटेड (Vedanta Ltd) के निवेशकों में भी डर का माहौल आ गया है और वह शेयर बेचकर निकल रहे हैं।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक वेदांता रिसोर्सेज फ्यूचर रि-फाइनेंसिंग के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पर निर्भर है। मतलब ये कि कंपनी भविष्य की किसी भी योजना के लिए बैंकों द्वारा दिए जाने वाले कर्ज पर निर्भर रहेगी। वेदांता समूह का नेट कर्ज करीब 11.8 अरब डॉलर है। यह कर्ज 3.5 अरब डॉलर के कैश कंपोनेंट को समायोजित करने के बाद है। इस बीच, एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वेदांता रिसोर्सेज 2 अरब डॉलर जुटाने की योजना पर भी काम कर रही है लेकिन इसमें नाकाम रहती हैं तो कंपनी की क्रेडिट रेटिंग घट सकती है।

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5 महीने के निचले स्तर पर शेयर

वेदांता लिमिटेड के शेयर (Vedanta Ltd) लगातार 8 कारोबारी सेशंस से टूट रहे हैं। कंपनी के शेयर आज 268.10 रुपये पर बंद हुए हैं। कंपनी के शेयर पांच महीने के निचले स्तर पर पहुंच गए हैं।

खबर ये भी है कि वेदांता समूह की सब्सिडयरी हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड (एचजेडएल) प्रवर्तक कंपनी वेदांता लिमिटेड की विदेशी एसेट्स के अधिग्रहण प्रस्ताव पर सरकार के साथ मतभेद दूर करने के लिए खान मंत्रालय से संपर्क साधने की तैयारी में है। वेदांता लिमिटेड की विदेशी एसेट्स के अधिग्रहण को लेकर सरकार की तरफ से कुछ चिंताएं जाहिर की गई हैं।

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क्या है मामला?

अनिल अग्रवाल की अगुवाई वाली वेदांता ने पिछले महीने कहा था कि वह अपनी वैश्विक जिंक एसेट्स 298.1 करोड़ डॉलर के नकद सौदे में हिंदुस्तान जिंक को बेचने जा रही है। हालांकि, इस प्रस्ताव का विरोध कर रहे शेयरधारकों का कहना है कि जब दोनों कंपनियों का स्वामित्व वेदांता के ही पास है तो विदेशी एसेट्स की बिक्री की कोई जरूरत नहीं है। बता दें कि वेदांता के पास हिंदुस्तान जिंक की 64.92 प्रतिशत हिस्सेदारी है। लगभग दो दशक पहले निजीकरण के बाद भी इस कंपनी में सरकार की हिस्सेदारी 29.54 प्रतिशत पर बनी हुई है।

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