जब एयरपोर्ट से ही पूर्व PM ने दिया था CM को हटाने का आदेश, जानें- कर्नाटक में BJP की एंट्री की इनसाइड स्टोरी

जब एयरपोर्ट से ही पूर्व PM ने दिया था CM को हटाने का आदेश, जानें- कर्नाटक में BJP की एंट्री की इनसाइड स्टोरी

बात 1990 की है। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष थे। कर्नाटक में वीरेंद्र पाटिल मुख्यमंत्री थे। 3 अक्टूबर, 1990 को कर्नाटक के दावणगेरे में हिन्दुओं की एक शोभायात्रा निकाले जाने के बाद इलाके में दंगे भड़क उठे थे। आरोप था कि शोबायात्रा के दौरान एक मुस्लिम लड़की को हिन्दू लड़के ने छेड़ दिया है। इसके बाद दोनों समुदायों के बीच तलवारें खिंच गई थीं।

डैमेज कंट्रोल करने पहुंचे राजीव ने कर लिया था बड़ा नुकसान:

जिस वक्त ये दंगे हुए थे, उससे कुछ दिनों पहले ही मुख्यमंत्री वीरेंद्र पाटिल को हार्ट अटैक आया था। इससे वह अस्वस्थ चल रहे थे और बिस्तर पर थे। राजीव गांधी इस घटना के बाद डैमेज कंट्रोल करने बेंगलुरु पहुंचे थे। कहा जाता है कि एयरपोर्ट से ही राजीव गांधी ने सीएम पाटिल को हटाने का ऐलान कर दिया था।

हालांकि, सीएम को हटाने के पीछे कांग्रेस तर्क देती रही है कि उनके खराब स्वास्थ्य की वजह से उन्हें आराम देने के लिए ही पद से हटाया गया था, जबकि कुछ लोगों का कहना है कि बीमार होने के बावजूद राजीव गांधी ने उनसे मिलना मुनासिब नहीं समझा था और एयरपोर्ट से ही पाटिल को हटाने का फैसला कर लिया था।

लिंगायत समुदाय से थे पाटिल:

वीरेंद्र पाटिल लिंगायत समुदाय के बड़े नेता थे। इस समुदाय की करीब 17 फीसदी आबादी कर्नाटक में है। विपक्षी दलों ने पाटिल की बर्खास्तगी को समुदाय के अपमान के रूप में प्रचारित किया। इसका खामियाजा कांग्रेस को 1994 के विधानसभा चुनावों में भुगतना पड़ा।

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पांच साल पहले यानी 1989 में वीरेंद्र पाटिल की अगुवाई में कांग्रेस ने 178 सीटें जीती थीं लेकिन उनके पद से हटते ही कांग्रेस 1994 में महज 34 सीटें ही जीत सकी, जबकि बीजेपी की ताकत चार से 40 सीट तक पहुंच गई। लिंगायतों ने तब बीजेपी का साथ दिया था और तभी से लिंगायतों के बीच बीजेपी कुंडली जमाए बैठी है। इससे पहले तक लिंगायत कांग्रेस का वोट बैंक हुआ करता था।

दो बार अप्रत्याशित तरीके से हटाए गए थे पाटिल:

पांच साल पहले यानी 1989 में जब राजीव गांधी और कांग्रेस ने केंद्र में सत्ता खो दी थी, तब वीरेंद्र पाटिल ने कर्नाटक में जनता दल के रामकृष्ण हेगड़े और जनता पार्टी के एच डी देवेगौड़ा दोनों को हराकर पार्टी को प्रभावशाली जीत दिलाई थी। उस वर्ष बाद में प्रधानमंत्री बनने वाले देवगौड़ा अपनी विधानसभा सीट भी बचा पाए थे। बावजूद इसके एक अच्छे प्रशासक के रूप में मशहूर रहे पाटिल को दो बार अप्रत्याशित परिस्थितियों में मुख्यमंत्री पद से हाथ धोना पड़ा था। 1990 से पहले 1971 में भी उन्हें इसी तरह से पद से हटना पड़ा था। दोनों बार उन्हें हटाकर राष्ट्रपति शासन लगाया गया था।

बीजेपी का बढ़ता गया कुनबा और कद:

इस घटना के बाद कर्नाटक में धीरे-धीरे कांग्रेस का प्रभाव घटता चला गया और जनता परिवार का दबदबा बढ़ता चला गया। 1994 में चार से चालीस सीट पर पहुंचने वाली बीजेपी 1999 के विधानसभा चुनावों में 44, 2004 में 79 जबकि 2008 में 110 सीटों पर पहुंच गई  और पहली बार अपने बल-बूते सरकार बनी। हालांकि, इससे पहले सात दिनों के लिए बीएस येदियुरप्पा नवंबर 2007 में मुख्यमंत्री बन चुके थे लेकिन जेडीएस के साथ गठबंधन टूटने से उनकी सरकार चली गई थी।

2013 में फिर आई कांग्रेस:

2013 में कांग्रेस ने फिर जोर लगाया और 122 सीटें जीतीं। बीजेपी को 70 सीटों का नुकसान हुआ। उसे सिर्फ 40 सीटें मिलीं।  सिद्धारमैया राज्य के मुख्यमंत्री बने लेकिन पांच साल बाद 2018 में बीजेपी ने फिर 64 सीटें ज्यादा जीतकर कुल 104 सीटों पर कब्जा कर लिया। हालांकि, 222 सदस्यों वाली कर्नाटक असेंबली में किसी भी एक दल को बहुमत नहीं मिलने पर 80 विधायकों वाली कांग्रेस ने 37 विधायकों वाली जेडीएस के नेता एचडी कुमारस्वामी को गठबंधन कर मुख्यमंत्री बनवा दिया।

बाद में बीजेपी ने 14 महीने पुरानी सरकार को सियासी खेल में गिरा दिया और येदियुरप्पा चौथी बार राज्य के मुख्यमंत्री बनाए गए। भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच जुलाई 2021 में उनकी जगह बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया गया।

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