जलवायु परिवर्तन पर COP-26 क्या है? जहां पूरी दुनिया ने सुना PM मोदी का ‘पंचामृत’ मंत्र

पॉडकास्ट सुनें: 


नई दिल्ली: अब आपको आज की सबसे पावरफुल तस्वीर दिखाते हैं, जो Scotland के Glasgow से आई हैं. वहां इस समय जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर COP-26 का सम्मेलन चल रहा है. इस तस्वीर में आप प्रधानमंत्री मोदी को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बॉरिस जॉनसन और संयुक्त राष्ट्र के महासचिव के साथ देख सकते हैं.

गर्मजोशी से मिले पीएम मोदी और जॉनसन

इस मुलाकात के दौरान प्रधानमंत्री मोदी, बॉरिस जॉनसन के कंधे पर हाथ रख कर बात करते हुए नजर आए. ब्रिटेन वही देश है, जिसने भारत पर 190 वर्षों तक शासन किया. लेकिन आज ये तस्वीर देख कर आपको अपने देश पर काफी गर्व होगा.

प्रधानमंत्री मोदी ने आज ही बॉरिस जॉनसन से अलग से भी एक मुलाकात की, जिसमें दोनों नेता Thumbs Up करते हुए दिखाई दिए. हम आपको बताएंगे कि COP-26 आखिर है क्या?

आखिर COP का मतलब क्या है?

COP का मतलब है Confrence of the Parties, जिसमें संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश जलवायु प्रणाली पर होने वाले खतरों से निपटने के लिए वार्षिक सम्मेलन करते हैं. यानी ये एक तरह का वैश्विक सम्मेलन है. और इसे 26 इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि इस बार Glasgow में 26वां समिट चल रहा है. संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 1995 में जब इसकी स्थापना की थी तो इसका मुख्य उद्देश्य था Zero Carbon Emissions यानी जीरो कार्बन उत्सर्जन.

काबर्न उत्सर्जन का अर्थ Carbon Dioxide या उन Green House गैसों से है, जो पृथ्वी के वातावरण में मौजूद रहती हैं. इन्हीं गैसों की वजह से पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ रहा है. अगर आप अब भी नहीं समझे तो सरल भाषा में आपको बताते हैं.

अगर रेगिस्तानी इलाकों में आ जाए बाढ़? 

कल्पना कीजिए अगर नवंबर से फरवरी महीने के बीच देश में भीषण गर्मी पड़े. मार्च से जुलाई महीने के बीच ठंड का मौसम हो और सितंबर और अक्टूबर के महीने में जबरदस्त बारिश हो तो क्या होगा? सोच कर देखिए, केरल जैसे राज्य में जहां औसतन हर दो साल में बाढ़ आती है, वहां सूखा पड़ जाए और राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में हर तीसरे महीने बाढ़ लगे तो क्या होगा? और ये भी सोच कर देखिए कि अगर ऊंचे पहाड़ी इलाको में साल भर बर्फबारी ही ना हो और दिल्ली जैसे शहरों में साल के तीन चार महीने बर्फ पड़ने लगे तो आपका जीवन कैसा होगा?

आप शायद आज इसकी कल्पना भी नहीं कर पा रहे होंगे. लेकिन पृथ्वी का औसत तापमान ऐसे ही बढ़ता रहा तो ये कल्पना एक दिन सच साबित हो सकती है. यानी ऐसा हो सकता है कि जो इलाके आज सूखे हैं, वहां बाढ़ जैसे हालात हों और जहां बाढ़ आती है, वहां सूखा पड़ जाए. COP इन्हीं खतरों से निपटने के लिए हर साल सम्मेलन करता है. लेकिन सोचने वाली बात ये है कि इससे दुनिया को अब तक हासिल क्या हुआ?

जलवायु के मुद्दे पर नहीं होती बात

वर्ष 1995 में जब इसकी शुरुआत हुई थी, तब पूरी दुनिया में सालाना कार्बन उत्सर्जन 2 हजार 350 करोड़ मैट्रिक टन था, जो 2021 में सालाना 4 हजार करोड़ मैट्रिक टन पहुंच गया है. यानी जलवायु परिवर्तन को लेकर सम्मेलन तो हर साल होते रहे. लेकिन कार्बन उत्सर्जन में कोई कमी नहीं आई. ऐसा लगता है कि दुनिया को इससे कोई फर्क भी नहीं पड़ता.

भारत में जो लोग गांव में रहते हैं और इस समय हमारी ये खबर देख रहे होंगे, वो भी ऐसा ही सोच रहे होंगे कि उनके गांवों में तो हवा भी साफ है और कोई प्रदूषण भी नहीं है. इसलिए उनका इससे क्या लेना देना. दरअसल, लोग जलवायु परिवर्तन को शहरों की समस्या मानते हैं और शहर के लोग अपनी जिन्दगी में इतने व्यस्त हैं कि उनके पास इस मुद्दे के लिए समय ही नहीं है. जबकि सच काफी डराने वाला है.

Source link