शिमला6 घंटे पहले
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रेमन मैग्सेसे पुरस्कार को एशिया के नोबेल पुरस्कार के रूप में भी जाना जाता है।
तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा को बुधवार को रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनको यह पुरस्कार तिब्बती समुदाय के लिए संघर्ष करने और तिब्बती संस्कृति को प्रेरणा दिलाने के लिए दिया गया। उन्हें इस अवॉर्ड के लिए 1959 में चुना गया था, लेकिन तब चीन की वजह से वह तिब्बत से भागकर भारत आ गए थे, इस वजह से पुरस्कार लेने नहीं जा सके थे।
अब 64 साल के बाद रेमन मैग्सेसे की टीम दलाई लामा को हिमाचल स्थित उनके घर पर यह पुरस्कार देने पहुंची। दलाई लामा को दिया जाने वाला यह पहला इंटरनेशनल अवॉर्ड था।
रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड फाउंडेशन की अध्यक्ष सुसाना बी अफान और फाउंडेशन की ट्रस्टी एमिली ए अब्रेरा ने दलाई लामा को इस पुरस्कार से सम्मानित किया।
चीन की वजह से तिब्बत छोड़कर भागे थे दलाई लामा
1959 में जब दलाई लामा को रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड देने की घोषणा हुई थी, तब तिब्बत में बौद्ध धर्म को मानने वाले अनुयायियों को चीन प्रताड़ित कर रहा था। चीनी हमलों से परेशान होकर दलाई लामा 1959 में तिब्बत से भागकर भारत आ गए थे। इस वजह से वह अवॉर्ड लेने नहीं जा सके थे। उनके बड़े भाई ग्यालो थोंडेन ने प्रोग्राम में जाकर पुरस्कार ग्रहण किया था।
फिलीपींस के राष्ट्रपति की याद में दिया जाता है यह अवॉर्ड
रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड फिलीपींस के 7वें राष्ट्रपति रेमन मैग्सेसे की याद में दिया जाता है। इसकी स्थापना 1957 में की गई थी। सामाजिक सुधार के क्षेत्र में जो भी अच्छा काम करता है, उसे इस पुरस्कार से नवाजा जाता है। इसे एशिया का नोबेल पुरस्कार भी कहा जाता है। इस पुरस्कार की स्थापना के पीछे फिलीपींस सरकार के साथ-साथ रॉकफेलर सोसाइटी का भी योगदान है। यह सोसाइटी अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में स्थित है।
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2. तिब्बत का तीसरा धर्मगुरु होगा 8 साल का मंगोलियाई बच्चा
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