बिहार में सियासी उलटफेर: राजनीति के अजूबों और सत्ता के लिए बेमेल गठबंधनों से इतिहास भरा पड़ा है

बिहार में सियासी उलटफेर: राजनीति के अजूबों और सत्ता के लिए बेमेल गठबंधनों से इतिहास भरा पड़ा है

  • Hindi News
  • National
  • History Is Full Of Wonders Of Politics And Mismatched Alliances For Power

एक घंटा पहले

  • कॉपी लिंक

राजनीति में कई उदाहरण हैं जो अपने आप में अजूबे हैं। पहला- वीसी शुक्ल। 1966 के बाद एक-दो सरकारें छोड़ दें, तो वीसी शुक्ल नरसिंह राव के प्रधानमंत्रित्वकाल तक हर दल की सरकार में मंत्री रहे। इसके उलट दूसरे थे चंद्रशेखर। उनसे कई बार मंत्री बनने का आग्रह किया गया, लेकिन उन्होंने हर बार एक ही बात कही- बनूंगा तो प्रधानमंत्री, वर्ना नहीं। आखिर वे प्रधानमंत्री ही बने।

नीतीश कुमार पहले वाले यानी वीसी शुक्ल के उदाहरण से मेल खाते हैं। सरकारें बदलती रहती हैं, लेकिन वे बिहार के मुख्यमंत्री बने रहते हैं। राजद के साथ सरकार बनाते हैं। बीच में झगड़े होते हैं। वे भाजपा से मिलकर सरकार बना लेते हैं। फिर भाजपा से नहीं बनती तो राजद के साथ सत्ता संभाल लेते हैं। भाजपा और राजद दोनों ही सब कुछ जानते हुए बार-बार उनका साथ देते रहते हैं। क्यों? सब जानते हैं। सत्ता। सत्ता का मोह सब कुछ कराता है।

जहां तक दलों के स्वभाव और तासीर का सवाल है, नीतीश के लिए भाजपा से गठबंधन भी बेमेल था और राजद से गठबंधन भी बेमेल ही है।

जहां तक दलों के स्वभाव और तासीर का सवाल है, नीतीश के लिए भाजपा से गठबंधन भी बेमेल था और राजद से गठबंधन भी बेमेल ही है।

हो सकता है नीतीश कुमार ही सही हों और वर्तमान राजनीति का तकाजा ही यही हो कि कुर्सी बचाने के लिए विचारों का मेल खाना जरूरी नहीं है। बेमेल गठबंधनों से भी सरकारें चलाई जा सकती हैं। जैसे नीतीश चला रहे हैं। जहां तक दलों के स्वभाव और तासीर का सवाल है नीतीश के लिए भाजपा से गठबंधन भी बेमेल था और राजद से गठबंधन भी बेमेल ही है। ठीक है लालू यादव और नीतीश दोनों मूल रूप से समाजवादी हैं लेकिन आपसी टकराव इतना ज्यादा है कि इनका समाजवाद ज्यादा दिन तक साथ-साथ नहीं चल पाता।

भाजपा कह रही है कि गठबंधन तोड़कर नीतीश ने बिहार की जनता और भाजपा के साथ धोखा किया है। सही है लेकिन यह सब आज कौन नहीं कर रहा है? सत्ता पाने के लिए बेमेल गठबंधनों और जनादेश की अनदेखी करने के उदाहरणों से इतिहास भरा पड़ा है। मध्य प्रदेश में क्या हुआ था, याद दिलाने की जरूरत नहीं है। खैर, सरकारें कोई भी बनाए और किसी के साथ भी बनाए, लेकिन उस राज्य के विकास, वहां के लोगों की खुशहाली के बारे में कोई नहीं सोचता।

भाजपा कह रही है कि गठबंधन तोड़कर नीतीश ने बिहार की जनता और भाजपा के साथ धोखा किया है। सही है, लेकिन यह सब आज कौन नहीं कर रहा है?

भाजपा कह रही है कि गठबंधन तोड़कर नीतीश ने बिहार की जनता और भाजपा के साथ धोखा किया है। सही है, लेकिन यह सब आज कौन नहीं कर रहा है?

नीतीश कुमार को ही ले लीजिए, 17 साल बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके हैं लेकिन राज्य का कितना भला किया? दो बार भाजपा भी उनके साथ सरकार में रही, बिहार को उसने कितना आगे बढ़ाया? बाकी राज्यों की तुलना में बहुत कम। … और जिस लालू सरकार के जंगलराज को कोस-कोसकर नीतीश चुनाव जीतते रहे, उन्हीं लालू की पार्टी से अब समझौता कर लिया, तो अब अगले चुनाव में क्या कहकर जीतेंगे? अब तो भाजपा भी सत्ता में नहीं है, इसलिए उसे तो दोष देने से रहे।

राजद आपके साथ है, इसलिए उसके खिलाफ भी बोल नहीं सकते। विकास की आंधी अगर आ गई हो तो उसके बल पर भी चुनाव जीता जा सकता है लेकिन ऐसा भी तो कुछ दिखाई नहीं देता! हालांकि चुनावों को अभी तीन साल बाकी हैं। नीतीश तब तक तो मुख्यमंत्री रह ही सकते हैं। क्योंकि संख्या बल उनके साथ है।

…और जैसी कि संभावना है कि चुनाव के ऐन पहले तेजस्वी कुछ बहाने करके नीतीश और उनकी सरकार से पिण्ड छुड़ा लेंगे, तो भाजपा सामने खड़ी ही है समर्थन देने को। भविष्य बताएगा कि दो बार के धोखे के बावजूद भाजपा फिर से नीतीश का साथ देगी या नहीं!

खबरें और भी हैं…

Source link