न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: अभिषेक दीक्षित
Updated Mon, 01 Nov 2021 09:42 PM IST
सार
अपने आदेश में जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने कहा कि लैप्स हुई बीमा पॉलिसी को कई कंपनियां रीन्यू करती हैं। लेकिन पॉलिसी लैप्स होने और रीन्यू होने के बीच की अवधि में हादसा हो तो मृतक के परिजन को बीमा राशि नहीं दी जा सकती।
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अपने आदेश में जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने कहा कि लैप्स हुई बीमा पॉलिसी को कई कंपनियां रीन्यू करती हैं। लेकिन पॉलिसी लैप्स होने और रीन्यू होने के बीच की अवधि में हादसा हो तो मृतक के परिजन को बीमा राशि नहीं दी जा सकती। इसके लिए पॉलिसी का अस्तित्व में रहना और प्रीमियम चुकाया जाना अनिवार्य है। जिस पक्ष का बीमा हुआ है, उससे भी विश्वसनीय आचरण की अपेक्षा की जाती है। पॉलिसी बन जाने के बाद, बीमा नियम नहीं बदले जा सकते।
एक व्यक्ति ने एलआईसी से 3.75 लाख रुपए का जीवन बीमा करवाया था। यह रकम उसे पॉलिसी मैच्योर होने पर व इतनी ही राशि हादसे में मौत की सूरत में परिजनों को मिलनी थी। लेकिन उसने अक्तूबर 2011 में बीमा प्रीमियम का भुगतान नहीं किया, नतीजतन पॉलिसी लैप्स हो गई। इस बीच मार्च 2012 में एक हादसा हुआ, जिसमें उसकी मौत हो गई। उसकी पत्नी ने हादसे में पति के मरने का तथ्य छिपा पॉलिसी रीन्यू करवाई।
इस पर उसे 3.75 लाख रुपए तो दिए गए, लेकिन हादसे के अतिरिक्त दावे के 3.75 लाख रुपए पॉलिसी जारी न रहने से नहीं मिले। उसने जिला उपभोक्ता फोरम में अपील की जो स्वीकार हुई, लेकिन राज्य आयोग ने दावा नकार दिया। इस पर महिला ने राष्ट्रीय आयोग में अपील की, जो स्वीकार ली गई। एलआईसी ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, जिसने राष्ट्रीय आयोग का निर्णय पलट दिया।
विस्तार
अपने आदेश में जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने कहा कि लैप्स हुई बीमा पॉलिसी को कई कंपनियां रीन्यू करती हैं। लेकिन पॉलिसी लैप्स होने और रीन्यू होने के बीच की अवधि में हादसा हो तो मृतक के परिजन को बीमा राशि नहीं दी जा सकती। इसके लिए पॉलिसी का अस्तित्व में रहना और प्रीमियम चुकाया जाना अनिवार्य है। जिस पक्ष का बीमा हुआ है, उससे भी विश्वसनीय आचरण की अपेक्षा की जाती है। पॉलिसी बन जाने के बाद, बीमा नियम नहीं बदले जा सकते।
एक व्यक्ति ने एलआईसी से 3.75 लाख रुपए का जीवन बीमा करवाया था। यह रकम उसे पॉलिसी मैच्योर होने पर व इतनी ही राशि हादसे में मौत की सूरत में परिजनों को मिलनी थी। लेकिन उसने अक्तूबर 2011 में बीमा प्रीमियम का भुगतान नहीं किया, नतीजतन पॉलिसी लैप्स हो गई। इस बीच मार्च 2012 में एक हादसा हुआ, जिसमें उसकी मौत हो गई। उसकी पत्नी ने हादसे में पति के मरने का तथ्य छिपा पॉलिसी रीन्यू करवाई।
इस पर उसे 3.75 लाख रुपए तो दिए गए, लेकिन हादसे के अतिरिक्त दावे के 3.75 लाख रुपए पॉलिसी जारी न रहने से नहीं मिले। उसने जिला उपभोक्ता फोरम में अपील की जो स्वीकार हुई, लेकिन राज्य आयोग ने दावा नकार दिया। इस पर महिला ने राष्ट्रीय आयोग में अपील की, जो स्वीकार ली गई। एलआईसी ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, जिसने राष्ट्रीय आयोग का निर्णय पलट दिया।
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