अनुज शर्मा, अमृतसरएक घंटा पहले
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75 साल पहले आजादी के साथ ही देश के नक्शे पर खिंची गई एक अनदेखी लकीर ने अपने ही देश के लोगों को परदेसी कर दिया। इस लकीर को रेडक्लिफ लाइन के नाम से भी जाना जाता है। 15 अगस्त की रात जहां पूरा देश आजादी का जश्न मना रहा था, तब पंजाब व बंगाल 2 राज्य थे, जहां हिंदू-सिख और मुसलमान एक दूसरे के खून के प्यासे हो चुके थे। इसके पीछे का बड़ा कारण था सिरिल रेडक्लिफ बाउंडरी कमिशन रिपोर्ट।
अमृतसर का टाउन हॉल, जहां कभी नगर निगम कार्यालय और अमृतसर पुलिस के ऑफिस हुआ करते थे। आज यहां 15 अगस्त को अपने ही देश में परदेसी हो गए लाखों लोगों का दर्द बयान करने वाला पार्टीशन म्यूजियम भी है। देखने में यह इतना छोटा लगेगा कि आप तस्वीरें देख चंद मिनटों में इस म्यूजियम को घूम लेंगे। लेकिन इनकी दीवारों पर डिस्प्ले की गई जानकारियों में अगर आप खो जाएं तो एक दिन में इस म्यूजियम को समझना ना-मुमकिन है। आइए, इसी म्यूजियम की इस दीवार पर लगे कुछ ऐसी जानकारी की बात करते हैं, जिस पर शायद ही किसी का ध्यान जाता होगा।
सिरिल रेडक्लिफ बाउंडरी कमिशन रिपोर्ट
सिरिल रेडक्लिफ बाउंडरी कमिशन रिपोर्ट एक ऐसा दस्तावेज था, जिस पर आजादी के समय पंजाब और बंगला देश के लोगों व नेताओं की नजर थी। इस रिपोर्ट में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे की विस्तृत जानकारी थी। इसमें बताया गया था कि बंटवारे की लाइन कहां-कहां से गुजरेगी। अंग्रेजी हकूमत को भी पता था कि अगर यह रिपोर्ट 15 अगस्त से पहले सार्वजनिक हो गई तो दो देशों के बंटवारे के समय बहने वाले खून का इलजाम उन पर आ जाएगा।
12/13 अगस्त 1947 को बन कर तैयार हो चुकी रिपोर्ट को अंग्रेजों ने 17 अगस्त को जनतक करने का फैसला लिया। अगर यह पहले जनतक हो जाती तो शायद इतना खून-खराबा ना होता, जो आज तक हम इतिहास के पन्नों पर पढ़ते आए हैं।
आजादी के दिन भी नहीं पता था कहां जाएं हिंदू-सिख व मुस्लमान
15 अगस्त 1947 को भारत-पाकिस्तान जहां आजादी का जश्न मना रहा था। भारत-पाकिस्तान बॉर्डर के गांवों के लोग चिंता में थे। उन्हें पता ही नहीं था कि वह अब पाकिस्तान में हैं या भारत में। इतना ही नहीं, लोग लाहौर से भी भारत के बने कैंपों में पलायन नहीं कर रहे थे। शुरुआत में समझा जा रहा था कि लाहौर भारत का होगा। यही हालात गुरदासपुर का था। मुस्लमान यह समझते थे कि गुरदासपुर पाकिस्तान के नक्शे में नजर आएगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
17 अगस्त की सुबह की गई थी रिपोर्ट
पार्टीशन म्यूजियम की दीवारों पर लगे दस्तावेजों के अनुसार अंग्रेजों ने 12/13 अगस्त को बनकर तैयार हो चुकी रिपोर्ट को 14 अगस्त को अंदरुनी तौर पर टेलीग्राम कर दिया था। 16 अगस्त को भारतीय नेताओं के साथ बैठक संभव हो पाई। जिसके बाद इस रिपोर्ट को 17 अगस्त 1947 को जनतक किया, ताकि इस रिपोर्ट के बाद खून खराबा दोनों देशों की नई सरकारों के नाम हो जाए। हुआ भी ऐसा ही, बंटवारे की लकीर खींचने के साथ ही दोनों देशों की आवाम इस कदर एक-दूसरे के खून की प्यासी हुई कि पलायन कर रहे लोगों को का कत्लेआम किया जाने लगा।
अपनों से बिछड़े लोग
पार्टीशन म्यूजियम की दीवारों पर दर्ज दस्तावेजों में कुछ ऐसे खत भी लगे हैं, जो बंटवारे के समय को बयान करते है। लाहौर में रहने वाले मेजर जगत सिंह के परिवार ने 17 अगस्त तक पलायन ही नहीं किया। उनका मानना था कि लाहौर भारत का होगा। 17 अगस्त के बाद मेजर जगत सिंह ने नदी पार ही की थी और उन्होंने पीछे मुड़ कर देखा तो हमलावर उनके पिता को काट रहे थे।
बंटवारे का दर्द सितंबर तक बढ़ता चला गया। पाक आर्मी के कैप्टन एनएस खान ने सितंबर के शुरुआती दिनों में एक खत में लिखा कि उनकी जमीन गुरदासपुर में थी। जिसे बचाते हुए उनके भाई की मौत हो गई। उनकी भतीजी लापता है। उन्होंने भारत में आर्मी के एक अधिकारी को खत लिख उनकी भतीजी को ढूंढने के लिए मदद मांगी थी।
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