DNA Analysis: क्या सेना में जाति और धर्म देखकर हो रही जवानों की भर्ती? जानें क्या है पूरे विवाद का सच

DNA Analysis: क्या सेना में जाति और धर्म देखकर हो रही जवानों की भर्ती? जानें क्या है पूरे विवाद का सच

Agnipath Scheme Controversy in Indian Army: सेना में भर्ती के लिए सरकार अग्निपथ स्कीम लेकर आई थी. अब उस पर एक नया विवाद खड़ा हो गया है. विपक्ष ने आरोप लगाया है कि सेना में भर्ती के लिए पहली बार उम्मीदवारों से उनका धर्म और उनकी जाति पूछी जा रही है. ये पूरा विवाद आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह के उस ट्वीट से शुरू हुआ, जिसमें उन्होंने लिखा, ‘क्या मोदी जी दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों को सेना भर्ती के काबिल नही मानते? भारत के इतिहास में पहली बार सेना भर्ती में जाति पूछी जा रही है. मोदी जी आपको अग्निवीर बनाना है या जातिवीर?’

इस ट्वीट के साथ उन्होंने एक जरूरी Document भी शेयर किया है, जो सेना में भर्ती के लिए आवेदन करने वाले उम्मीदवारों की सुविधा के लिए जारी होता है. दरअसल इसमें बताया जाता है कि उम्मीदवारों को कौन से प्रमाणपत्र जमा कराने हैं. 

इन 2 कॉलम पर हो रहा विवाद

असल में आवेदन फार्म के पेज नंबर 7 पर E और F नाम का जो कॉलम है, उस पर विवाद (Agnipath Scheme Controversy) हो रहा है. इसमें E कॉलम के सामने Caste Certificate लिखा है और बताया गया है कि अभ्यार्थियों को सेना में भर्ती के लिए अपना जाति प्रमाण पत्र देना है. जबकि F कॉलम के सामने ये लिखा है कि अगर जाति प्रमाण पत्र में अभ्यार्थी का धर्म नहीं लिखा है तो उसे अलग से Religion Certificate जमा करना है.

ये पूरा Document 24 पन्नों का है. अब बड़ा सवाल ये है कि क्या सेना में पहली बार भर्ती प्रक्रिया के लिए अभ्यार्थियों की जाति और उनका धर्म पूछा जा रहा है, जैसा कि विपक्ष आरोप लगा रहा है. तो आज हमने इसकी गहन पड़ताल की और इस दौरान हमें ये पता चला कि सेना में भर्ती के लिए अभ्यार्थियों की जाति और उनका धर्म पहले भी पूछा जाता था. ये व्यवस्था कई दशकों से चली आ रही है. यानी ये बात सरासर झूठ है कि सेना में भर्ती के लिए पहली बार अभ्यार्थियों की जाति और धर्म पूछा जा रहा है.

पहले भी देनी पड़ती रही है पूरी डिटेल

इसे आप इस Document से भी समझ सकते हैं. वर्ष 2018 में जब सेना में भर्तियां निकाली गई थीं, उस समय भी अभ्यार्थियों की सुविधा के लिए इस तरह का दस्तावेज जारी हुआ था, जिसमें ये बताया गया था कि उन्हें भर्ती प्रक्रिया के दौरान कौन से दस्तावेज जमा कराने होंगे. तब भी भर्ती के लिए आवेदन देने वाले युवाओं से उनका जाति प्रमाण पत्र और धर्म प्रमाण पत्र मांगा गया था. 

ये बात तो तय है कि सेना में भर्ती के लिए अभ्यार्थियों से उनका जाति और धर्म प्रमाण पत्र मांगा जाता रहा है. लेकिन सरकार का आरोप है कि विपक्ष ने इसे लेकर भ्रम की स्थिति पैदा की और इस पर लोगों को गुमराह भी किया.

सुप्रीम कोर्ट में सेना दे चुकी है स्पष्टीकरण

हालांकि ये पहली बार नहीं है, जब इस मुद्दे पर सेना को बदनाम करने की कोशिश हुई. वर्ष 2013 में भी ऐसा ही हुआ था और तब सेना ने अपने एक हलफनामे में इस पर पूरा स्पष्टीकरण दिया था. तब सेना ने सुप्रीम कोर्ट में बताया था कि वो जाति, धर्म और क्षेत्र देख कर लोगों की भर्ती नहीं करती है. लेकिन एक रेजिमेंट में एक क्षेत्र से आने वाले लोगों के समूह को प्रशासनिक सेवा और सुविधाएं देने के लिए ऐसा किया जाता है. जाति-धर्म की चयन प्रक्रिया में कोई भूमिका नहीं होती. 

सेना ने तब ये भी बताया था कि अभ्यार्थियों से धर्म प्रमाणपत्र इसलिए मांगा जाता है ताकि दुर्भाग्यवश अगर किसी घटना में कोई जवान शहीद हो जाता है तो उस सैनिक का अंतिम संस्कार करने के लिए धर्म का पता होना आवश्यक होता है. यानी इससे उनका अंतिम संस्कार उसी धर्म के मुताबिक किया जाता है. इसके अलावा जाति और धर्म की भर्ती प्रक्रिया में कोई भूमिका नहीं होती.

युवाओं में भ्रम फैला रहा है विपक्ष

लेकिन दुख की बात ये है कि विपक्ष ने इसे अग्निपथ स्कीम (Agnipath Scheme Controversy)से जोड़ दिया. ये भ्रम की स्थिति पैदा की जा रही है कि सरकार इस बार अभ्यार्थियों की जाति और धर्म इसलिए पूछ रही है ताकि जब चार साल बाद इनमें से 75 प्रतिशत जवानों को रिटायर किया जाएगा तो ये पूरी प्रक्रिया धर्म और जाति के आधार पर तय होगी. यानी धर्म और जाति देख कर 75 प्रतिशत जवानों को रिटायर किया जाएगा, जो कि पूरी तरह झूठ है.

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