DNA with Sudhir Chaudhary: ज्ञानवापी की सर्वे रिपोर्ट में मन्दिर की पुष्टि? मस्जिद के वुजूखाने में शिवलिंग के आकार का पत्थर मिला

DNA with Sudhir Chaudhary: ज्ञानवापी की सर्वे रिपोर्ट में मन्दिर की पुष्टि? मस्जिद के वुजूखाने में शिवलिंग के आकार का पत्थर मिला

DNA with Sudhir Chaudhary: वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद में हुए ताजा सर्वे की रिपोर्ट में इस बात के बहुत मजबूत साक्ष्य मिले हैं कि वहां एक जमाने में मन्दिर हुआ करता था. ये रिपोर्ट हमें मिल गई है और इसमें पांच बड़ी बातें बताई गई हैं.  

कहीं प्राचीन मन्दिर के साक्ष्य तो नहीं?

पहला- इस सर्वे के दौरान मस्जिद की दीवारों और अन्य पत्थरों पर ऐसी कलाकृतियां मिली हैं, जो प्राचीन मन्दिर की दीवारों पर अंकित थी. इनमें दीवारों पर त्रिशूल, डमरू, स्वास्तिक, पान के पत्ते, फूल, कमल, घंटी, कलश और हाथी की सूंड़ की टूटी हुई कलाकृतियां मिली हैं.

गुंबदों पर शिखर नुमा आकृतियां

दूसरा- मस्जिद परिसर में स्थित गुंबदों पर शिखर नुमा आकृतियां मिली हैं, जिसे शंकुकार स्ट्रक्चर का हिस्सा बताया जाता है. प्राचीन दस्तावेजों और लेखों में बताया गया है कि प्राचीन मंदिर के ऊपर जो शिखर था, वो इसी स्ट्रक्चर पर आधारित था.

वुजूखाने में जो शिवलिंग के आकार का पत्थर

तीसरा- मस्जिद के वुजूखाने में जो शिवलिंग के आकार का पत्थर मिला है, उसमें एक ही छेद है. ये छेद इस पत्थर के बीचों-बीच है, जिसकी गहराई 63 सेंटीमीटर बताई गई है. इस रिपोर्ट में ये भी लिखा है कि, इस पत्थर में जांच टीम को कोई दूसरा छेद नहीं मिला. इसलिए हो सकता है कि ये एक छेद भी बाद में किया गया हो.

पत्थर को फव्वारा बता रहा मुस्लिम पक्ष

चौथा- मुस्लिम पक्ष इस पत्थर को फव्वारा बता रहा है. लेकिन इस रिपोर्ट के मुताबिक़, इस पत्थर में ऐसा कोई भी पाइप नहीं लगा है, जिससे ये साबित होता हो कि ये पत्थर फव्वारे का हिस्सा है. यानी सम्भव है कि ये प्राचीन शिवलिंग ही हो

फव्वारे को लेकर अलग-अलग बयान

पांचवीं बात- मुस्लिम पक्ष अपने किसी भी दावे को लेकर स्पष्ट रूप से कोई जानकारी नहीं दे पाया. पहले उसने कहा कि ये फव्वारा पिछले 20 साल से बन्द है. लेकिन बाद में उसने अपना बयान बदल दिया और ये कहा कि ये फव्वारा 12 साल से बन्द है.

मन्दिर होने की पुष्टि हो गई तो..

अयोध्या की बाबरी मस्जिद के बाद अगर बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद में भी मन्दिर होने की पुष्टि हो गई तो हमारे देश की इतिहास की किताबों में बड़े बड़े बदलाव करने पड़ेंगे. साथ ही उन तमाम इतिहासकारों और नेताओं को माफी मांगनी पड़ेगी, जिन्होंने दशकों तक इस देश को इतिहास के नाम पर गलत जानकारियां दीं. ये वो खबर है, जो भारतीय समाज का उसकी असली पहचान से परिचय कराती है.

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