Maharashtra: क्या उद्धव बगावत के बारे में पहले से जानते हुए भी मौन रहे, आखिर शिवसेना प्रमुख पर क्यों उठ रहे सवाल?

Maharashtra: क्या उद्धव बगावत के बारे में पहले से जानते हुए भी मौन रहे, आखिर शिवसेना प्रमुख पर क्यों उठ रहे सवाल?

महाराष्ट्र में सियासी घमासान जारी है। शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे 46 विधायकों के साथ असम में डेरा डाले हुए हैं। इनमें 38 शिवसेना जबकि बाकी निर्दलीय विधायक बताए जा रहे हैं। इस बीच शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे पर ही सवाल उठने शुरू हो गए हैं। सियासी गलियारे में चर्चा है कि उद्धव को इस बगावत के बारे में पहले से ही मालूम था। 

राजनीति के जानकारों का कहना है कि ऐसा बिल्कुल संभव नहीं है कि उद्धव ठाकरे को भनक न लगे और उनकी नाक के नीचे से पार्टी के 38 विधायक बगावत पर उतर आएं। आइए समझते हैं पूरी कहानी… 

 

क्यों कहा जा रहा कि उद्धव को सब पता था?

ये समझने के लिए हमने महाराष्ट्र की राजनीति पर अच्छी पकड़ रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप रायमुलकर से बात की। उन्होंने कहा, ‘शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के बेमेल गठबंधन के बाद से ही इसपर सवाल खड़े होने लगे थे। समय के साथ शिवसेना के विधायकों और नेताओं की नाराजगी भी बढ़ने लगी। एक के बाद एक कई नेताओं ने इसकी शिकायत शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से की भी, लेकिन इसका कोई हल नहीं निकल पा रहा था। उद्धव खुद नहीं समझ पा रहे थे कि कैसे इस गठबंधन को तोड़ा जाए। ऐसे में विधायकों ने खुद इसका तरीका निकाल दिया। राज्यसभा और फिर विधानपरिषद चुनाव के नतीजे इसी ओर इशारा कर रहे हैं। दोनों चुनाव में शिवसेना को नहीं, बल्कि कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ा। मतलब साफ है कि बागी विधायक शिवसेना को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते थे।’

रायमुलकर आगे कहते हैं, ये सही है कि राजनीति में कभी भी कुछ भी हो सकता है, लेकिन यह भी सही है कि किसी भी निर्णय की पहले भूमिका तैयार होती है। ऐसे में एकसाथ 37-38 विधायक कोई प्लान बनाएं और पार्टी प्रमुख या किसी बड़े नेता को न मालूम चले ऐसा हो ही नहीं सकता। उद्धव मुख्यमंत्री हैं। उन्हें खुफिया इनपुट्स भी मिलते हैं। यहां तक ही राज्य की सरकारी एजेंसियां हर चीज पर नजर रखती हैं। ऐसे में एमएलसी चुनाव के बाद अचानक विधायकों का बागी होना इस ओर इशारा करता है कि उद्धव को सब पहले से ही मालूम था। या ऐसा भी हो सकता है कि उद्धव ने ही इसकी पूरी स्क्रिप्ट लिखी हो। 

 

एनसीपी की भूमिका पर भी उठ रहे सवाल

वरिष्ठ पत्रकार केशव पेलकर कहते हैं, ‘जिस तरह से चार दिन से ये विवाद चल रहा है, उसे देखकर एनसीपी की भूमिका पर भी सवाल उठता है। एनसीपी भी सरकार को बचाने में उतनी दिलचस्पी नहीं दिखा रही है, जितनी दिखाई चाहिए।’

केशव आगे कहते हैं, ‘महाविकास अघाड़ी पार्टी बनने से सबसे ज्यादा फायदा एनसीपी को ही हुआ है। कई अच्छे मंत्रालय एनसीपी कोटे के मंत्रियों के पास ही हैं। ऐसे में संभव है कि एनसीपी चाहती है कि ये सरकार गिर जाए। क्योंकि गठबंधन के बाद सबसे ज्यादा नुकसान शिवसेना को हुआ है। शिवसेना ने इस गठबंधन के लिए अपने कई मूल सिद्धांतों के साथ समझौता किया है। वहीं, कांग्रेस की स्थिति हर राज्य की तरह महाराष्ट्र में भी खराब हो रही है। ऐसे में एनसीपी अब सीधी लड़ाई एनसीपी बनाम भाजपा करने की कोशिश में है।’

 

अब तक क्या-क्या हुआ? 

सोमवार 20 जून से शिवसेना में बगावत खुलकर सामने आई। उस दिन एमएलसी की 10 सीटों पर चुनाव हुए। इसके लिए 11 उम्मीदवार मैदान में थे। महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) यानी शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के गठबंधन ने छह उम्मीदवार उतारे थे तो भाजपा ने पांच।  

शिवसेना गठबंधन के पास सभी छह उम्मीदवारों को जिताने के लिए पर्याप्त संख्या बल था, लेकिन वह एक सीट हार गई। इन पांच में कांग्रेस को केवल एक सीट मिली और एनसीपी-शिवसेना के खाते में दो-दो सीटें आईं।  यानी, एमएलसी चुनाव में बड़े पैमाने पर क्रॉस वोटिंग हुई है। इसके साथ ही निर्दलीयों ने भी भाजपा को समर्थन दिया।

कहा जा रहा है उद्धव ठाकरे से नाखुश विधायकों ने महाराष्ट्र के कैबिनेट मंत्री एकनाथ शिंदे का साथ दिया और शिवसेना गठबंधन को झटका दे दिया। पहले ये सभी गुजरात पहुंचे और बाद में असम।  इन विधायकों को मनाने के लिए 22 जून को शिवसेना प्रमुख के कहने पर तीन नेताओं का प्रतिनिधिमंडल बागी विधायकों से मिलने पहुंचा। हालांकि कुछ बात नहीं बनी। 

इसके बाद उद्धव ने फेसबुक लाइव पर जनता को संबोधित किया। इसमें उन्होंने कहा कि अगर शिंदे और नाराज विधायक सामने आकर कहें तो वह इस्तीफा देने के लिए तैयार हैं। उधर, बागी विधायकों ने भी कहा है कि वह तभी वापस लौटेंगे जब कांग्रेस और एनसीपी से शिवसेना का गठबंधन टूटेगा। मतलब पिछले चार दिन से महाराष्ट्र की सियासत असमंजस में पड़ी हुई है।

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