Prayagraj : इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शोध में दवा- गंगा में मिले बैक्टीरिया पर एंटीबायोटिक बेअसर

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गंगा में कुछ ऐसे बैक्टीरिया मिले हैं, जिन पर एंटीबायोटिक का असर भी नहीं पड़ रहा। इलाहाबाद विश्वविद्यालय (इविवि) के पर्यावरण विज्ञान केंद्र के एक शोध में यह दावा गया है। यह शोध एल्सवियर नीदरलैंड के अंतरराष्ट्रीय जर्नल जीन रिपोर्ट्स में प्रकाशित किया गया है।

शोध रिपोर्ट के अनुसार सीवेज के जरिये नदियों में पहुंच रही मानव एवं मवेशियों में पाई जानी वाली एंटीबायोटिक के कारण रोग जनित बैक्टीरिया में एंटीबायोटिक से लड़ने के लिए प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गई है। बैक्टीरिया के डीएनए में एंटीबायोटिक को तोड़ने वाले जींस पाए गए हैं। शोध का नेतृत्व करने वाले पर्यावरण विज्ञान केंद्र के डॉ. सुरनजीत प्रसाद के अनुसार यह संकेत खतरनाक है, क्योंकि दुनिया में हर साल तकरीबन 12 लाख मौतें एंटीबायोटिक रजिस्टेंट बैक्टीरियल इंफेक्शन से होती हैं।

डॉ. प्रसाद के अनुसार शोध के दौरान ऐसे स्थानों से नमूने लिए गए, जहां नाले या सीवेज गंगा में मिलते हैं। इनमें एक स्थान रसूलाबाद घाट भी है। नाले या सीवेज से गिरने वाली गंदगी के साथ आसपास गंगाजल के नमूने भी लिए गए। दोनों में एक समान बैक्टीरिया पाए गए, जिनमें एंटीबायोटिक से लड़ने प्रतिरोधक क्षमता पाई गई। अगर ये बैक्टीरिया गंगाजल के माध्यम से किसी व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं तो उन पर एंटीबायोटिक का कोई असर नहीं पड़ेगा और यह काफी खतरनाक हो सकता है।

दवाएं फेंके जाने से भी मजबूत हुए बैक्टीरिया
डॉ. सुरजीत प्रसाद का कहना है कि एक्सपायरी डेट पूरी कर चुकीं एंटीबायोटिक दवाओं को निस्तारित किए जाने के नाम पर अक्सर इधर-उधर फेंक दिया जाता है। दवाएं नदियों में फेंक दी जाती हैं। नदियों में मौजूद बैक्टीरिया लगातार एंटीबायोटिक के संपर्क में रहते हैं और धीरे-धीरे उनके जींस में एंटीबायोटिक से लड़ने के लिए प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है। 

पैथोजेनिक बैक्टीरिया देते हैं बीमारी
बैक्टीरिया दो प्रकार के होते हैं। पहला नॉन पैथोजेनिक और दूसरा पैथोजनिक। नॉन पैथोजेनिक बैक्टीरिया से बीमारी नहीं होती, जबकि पैथोजेनिक बैक्टीरिया बीमारी देते हैं। कई बैक्टीरिया तो मानव शरीर के इम्यून सिस्टम से हार जाते हैं और एंटीबायोटिक की जरूरत नहीं पड़ती। कई बैक्टीरिया मजबूत होते हें और बीमारी का कारण बनते हैं। पैथोजेनिक बैक्टीरिया में एंटीबायोटिक से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न होने के बाद अगर कोई व्यक्ति ऐसे बैक्टीरिया के संपर्क में आता है तो वह बहुत जल्द बीमार होता है और उस पर एंटीबायोटिक असर नहीं करती। 

शोध में इन पैथोजेनिक बैक्टीरिया में मिली एंटीबायोटिक से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता

  • क्लैबसिएला निमोनी बैक्टीरिया से निमोनिया होता है। इस पर एंपिसिलीन एंटीबायोटिक बेअसर पाई गई।
  • स्यूडोमोनास एयरुजिनोसा बैक्टीरिया पर भी एंपिसिलीन एंटीबायोटिक का असर नहीं पड़ा। इससे खून में इंफेक्शन, मेनेंजाइटिस, फेफड़े की बीमारी होती है।
  • एयरोमोनास हाइड्रोफिला बैक्टीरिया पर भी एंपिसिलीन एंटीबायोटिक का असर नहीं दिखा। इससे यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन, डायरिया, सेप्टिक अर्थराइटिस, हड्डी संबंधी बीमारी होती है।
  • स्ट्रेप्टोकॉकस निमोनी बैक्टीरिया से निमोनिया होता है। इस बैक्टीरिया पर एरेथ्रोमाइसिन एंटीबायोटिक बेअसर मिली।
  • एंटेरोकॉकस फैकालिस बैक्टीरिया पर भी एरेथ्रोमाइसिन एंटीबायोटिक का असर नहीं दिखा। इससे पेट में अल्सर या पेट संबंधी अन्य गंभीर बीमारियां होती हैं।

विस्तार

गंगा में कुछ ऐसे बैक्टीरिया मिले हैं, जिन पर एंटीबायोटिक का असर भी नहीं पड़ रहा। इलाहाबाद विश्वविद्यालय (इविवि) के पर्यावरण विज्ञान केंद्र के एक शोध में यह दावा गया है। यह शोध एल्सवियर नीदरलैंड के अंतरराष्ट्रीय जर्नल जीन रिपोर्ट्स में प्रकाशित किया गया है।

शोध रिपोर्ट के अनुसार सीवेज के जरिये नदियों में पहुंच रही मानव एवं मवेशियों में पाई जानी वाली एंटीबायोटिक के कारण रोग जनित बैक्टीरिया में एंटीबायोटिक से लड़ने के लिए प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गई है। बैक्टीरिया के डीएनए में एंटीबायोटिक को तोड़ने वाले जींस पाए गए हैं। शोध का नेतृत्व करने वाले पर्यावरण विज्ञान केंद्र के डॉ. सुरनजीत प्रसाद के अनुसार यह संकेत खतरनाक है, क्योंकि दुनिया में हर साल तकरीबन 12 लाख मौतें एंटीबायोटिक रजिस्टेंट बैक्टीरियल इंफेक्शन से होती हैं।

डॉ. प्रसाद के अनुसार शोध के दौरान ऐसे स्थानों से नमूने लिए गए, जहां नाले या सीवेज गंगा में मिलते हैं। इनमें एक स्थान रसूलाबाद घाट भी है। नाले या सीवेज से गिरने वाली गंदगी के साथ आसपास गंगाजल के नमूने भी लिए गए। दोनों में एक समान बैक्टीरिया पाए गए, जिनमें एंटीबायोटिक से लड़ने प्रतिरोधक क्षमता पाई गई। अगर ये बैक्टीरिया गंगाजल के माध्यम से किसी व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं तो उन पर एंटीबायोटिक का कोई असर नहीं पड़ेगा और यह काफी खतरनाक हो सकता है।

दवाएं फेंके जाने से भी मजबूत हुए बैक्टीरिया

डॉ. सुरजीत प्रसाद का कहना है कि एक्सपायरी डेट पूरी कर चुकीं एंटीबायोटिक दवाओं को निस्तारित किए जाने के नाम पर अक्सर इधर-उधर फेंक दिया जाता है। दवाएं नदियों में फेंक दी जाती हैं। नदियों में मौजूद बैक्टीरिया लगातार एंटीबायोटिक के संपर्क में रहते हैं और धीरे-धीरे उनके जींस में एंटीबायोटिक से लड़ने के लिए प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है। 

पैथोजेनिक बैक्टीरिया देते हैं बीमारी

बैक्टीरिया दो प्रकार के होते हैं। पहला नॉन पैथोजेनिक और दूसरा पैथोजनिक। नॉन पैथोजेनिक बैक्टीरिया से बीमारी नहीं होती, जबकि पैथोजेनिक बैक्टीरिया बीमारी देते हैं। कई बैक्टीरिया तो मानव शरीर के इम्यून सिस्टम से हार जाते हैं और एंटीबायोटिक की जरूरत नहीं पड़ती। कई बैक्टीरिया मजबूत होते हें और बीमारी का कारण बनते हैं। पैथोजेनिक बैक्टीरिया में एंटीबायोटिक से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न होने के बाद अगर कोई व्यक्ति ऐसे बैक्टीरिया के संपर्क में आता है तो वह बहुत जल्द बीमार होता है और उस पर एंटीबायोटिक असर नहीं करती। 

शोध में इन पैथोजेनिक बैक्टीरिया में मिली एंटीबायोटिक से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता

  • क्लैबसिएला निमोनी बैक्टीरिया से निमोनिया होता है। इस पर एंपिसिलीन एंटीबायोटिक बेअसर पाई गई।
  • स्यूडोमोनास एयरुजिनोसा बैक्टीरिया पर भी एंपिसिलीन एंटीबायोटिक का असर नहीं पड़ा। इससे खून में इंफेक्शन, मेनेंजाइटिस, फेफड़े की बीमारी होती है।
  • एयरोमोनास हाइड्रोफिला बैक्टीरिया पर भी एंपिसिलीन एंटीबायोटिक का असर नहीं दिखा। इससे यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन, डायरिया, सेप्टिक अर्थराइटिस, हड्डी संबंधी बीमारी होती है।
  • स्ट्रेप्टोकॉकस निमोनी बैक्टीरिया से निमोनिया होता है। इस बैक्टीरिया पर एरेथ्रोमाइसिन एंटीबायोटिक बेअसर मिली।
  • एंटेरोकॉकस फैकालिस बैक्टीरिया पर भी एरेथ्रोमाइसिन एंटीबायोटिक का असर नहीं दिखा। इससे पेट में अल्सर या पेट संबंधी अन्य गंभीर बीमारियां होती हैं।

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