Private School: प्राइवेट स्कूल बने लूट के अड्डे, किताबों के नाम पर पैंरंट्स की जेब कर रहे खाली; आखिर कब रुकेगी उनकी मनमानी

Private School: प्राइवेट स्कूल बने लूट के अड्डे, किताबों के नाम पर पैंरंट्स की जेब कर रहे खाली; आखिर कब रुकेगी उनकी मनमानी

Zee News report on Private School Arbitrariness: स्कूल शिक्षा का मंदिर होता है लेकिन हमारे देश में प्राइवेट स्कूलों ने शिक्षा को शुद्ध व्यापार बना दिया है. प्राइवेट स्कूल अब मुनाफाखोरी के अड्डे बन चुके हैं. जिसमें सब्जीमंडी की तरह हर चीज बिकाऊ है और प्राइवेट स्कूलों का एक ही मंत्र है- जितना लूट सको, लूट लो. जहां पर अभिभावकों को ऊंचे दामों पर किताबें खरीदने के लिए मजबूर किया जाता है. जो माता-पिता स्कूलों के अंदर खुलीं दुकानों से या फिर बाहर स्कूल के सौजन्य से खुली दुकान से किताबें खरीदने से इंकार करते हैं उन्हें अपने बच्चे का नाम स्कूल से कटवा लेने के लिए कह दिया जाता है. यानी माता-पिता को सिर्फ अपने बच्चे को प्राइवेट स्कूल में एडमिट करवाने का अधिकार होता है. बाकी के सारे अधिकार प्राइवेट स्कूल वालों के पास होते हैं. जो अभिभावकों को ATM मशीन समझते हैं जिनकी जेब से वो जितना चाहे, उतना पैसा निकालना अपना अधिकार समझते हैं.


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खास दुकानों से किताबें खरीदने का दबाव

हमारी इस बात से हर वो माता-पिता इत्तेफाक रखते होंगे, जिन्होंने अभी स्कूलों (Zee News Report on Private School) में नए सेशन की शुरुआत होने के बाद अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों की किताबों का सेट दिलवाया है. किताबों के नाम पर प्राइवेट स्कूलों की लूट को नोएडा में रहने वाले मनीष कुमार से बेहतर कौन जानेगा जिनकी बेटी केंद्रीय विद्यालय में पढ़ती है और बेटा नोएडा के एक बड़े प्राइवेट स्कूल में. 

अभिभावक मनीष कुमार ने बताया, ‘मेरी बेटी केंद्रीय विद्यालय में सातवीं क्लास में पढ़ती है और बेटा प्राइवेट स्कूल में थर्ड क्लास में. केंद्रीय विद्यालय में एनसीईआरटी या कहीं से भी किताबें ले सकते हैं लेकिन प्राइवेट स्कूल में रोक है. प्राइवेट स्कूल में खास दुकान से किताबें लेने को मजबूर किया जा रहा है, जहां पर करीब 7 हजार रुपये की किताबें आई हैं. जबकि एनसीईआरटी में यही किताबें 1200 की हैं.’ 

किताबें बेचना बन गया है मेन बिजनेस

पैरंट्स के मुताबिक ये प्राइवेट स्कूलों का बिजनेस मॉडल (Zee News Report on Private School) है. जिसमें शिक्षा देना साइड बिजनेस है और स्कूलों में किताबें बेचना मेन बिजनेस है. जिसमें नो डिस्काउंट, नो बारगेन का बोर्ड लटका होता है. अभिभावक मनीष कुमार कहते हैं कि इन प्राइवेट स्कूलों में हर किताब पर एमआरपी जानबूझकर बहुत बढ़ी दी जाती है और उस पर कोई छूट बी नहीं दी जाती. जबकि बाहर से ऐसी ही किताबें लें उस पर 20 प्रतिशत तक डिस्काउंट आसानी से मिल जाता है. वे कहते हैं कि सरकार स्कूली छात्रों को किताब- कॉपियों पर सब्सिडी देती है. लेकिन प्राइवेट स्कूलों ने इस अधिकार पर भी डाका डाल दिया है. बाजार से कॉपी और रजिस्टर तक नहीं ले सकते. 

बच्चों के मां-बाप का कहना है कि प्राइवेट स्कूल वाले बाहर से रजिस्टर तक खरीदने को मना करते हैं. पुस्तक विक्रेता बन चुके स्कूल हर साल किताबों की सेल लगाते हैं और 15 दिन में ही लाखों रुपये की कमाई कर लेते हैं. अगले साल भी किताबों की दुकान लगाई जा सके, इसका भी इंतजाम कर लेते हैं. 

प्राइवेट स्कूलों के आगे नहीं टिकते सरकारी नियम

नियम के मुताबिक प्राइवेट स्कूल (Zee News Report on Private School) एनसीईआरटी के अलावा भी किताबें कोर्स में शामिल कर सकते हैं और उन्हें स्कूलों में बेच भी सकते हैं. लेकिन अभिभावकों को किताबें खरीदने के लिए मजबूर नहीं कर सकते. हालांकि सरकार के नियमों में इतना दम नहीं है कि वो प्राइवेट स्कूलों की मनमानी के आगे टिक पाएं. 

प्राइवेट स्कूलों की मनमानी की पोल खोलते हुए एक पैरंट रोहित चौधरी कहते हैं कि उनका बेटा एक महंगे प्राइवेट स्कूल में पढ़ रहा है. वहां पर नौवीं तक प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबें अनिवार्य की हुई हैं. उन महंगी किताबों का आलम ये है कि एनसीआरटी की वही किताबें 80 रुपये की और प्राइवेट पब्लिशर की 550 रुपये की आ रही है. बताइए कितना बड़ा अंतर है दोनों के दाम में. विरोध करने पर बच्चे का नाम स्कूल से काटने की धमकी देते हैं. 

जान लीजिए स्कूलों की मनमानी

ज़ी न्यूज के पास नोएडा और गाज़ियाबाद के कई प्राइवेट स्कूलों (Zee News Report on Private School) की उन किताबों की लिस्ट है जिसे स्कूलों ने अभिभावकों को खरीदने के लिए दिया था. ये नोएडा में स्थित ASTER PUBLIC स्कूल की 7वीं क्लास और 8वीं क्लास की किताबों वाली पर्ची है. इसमें 7वीं और 8वीं क्लास में पढ़ने वाले बच्चे के अभिभावकों से 10 विषयों की 16 किताबे खरीदने के लिए कहा गया है. लेकिन स्कूल द्वारा दी गयी 16 किताबों की सूची में सिर्फ 1 किताब ही NCERT की है. बाकी सब महंगे प्राइवेट प्रकाशकों की हैं और NCERT के मुकाबले 7 से 8 गुना तक महंगी हैं. सोशल मीडिया पर कई लोगों ने ये शिकायत भी की है कि यह स्कूल अपने Premises में ही मनमाने रेट पर किताबें बेच रहा है और अभिभावकों को खरीदने के लिए मजबूर कर रहा है. 

गाजियाबाद की Childrens Academy की 7वीं क्लास की किताबों वाली पर्ची का हाल भी जान लीजिए. जिसमें अभिभावकों से 8 विषयों की कुल 15 किताबें खरीदने के लिए कहा गया है. इन 15 किताबो में 4 किताबे NCERT की हैं और बाकी की 11 किताबें महंगे प्रकाशक की. MATH और SOCIAL SCIENCE की तो अभिभावकों की NCERT और महंगे प्रकाशक दोनो की किताबें ख़रीदने के लिए कहा जा रहा है. यहां अभी NCERT और बाकी की किताबो में अंतर साफ दिख रहा है. जहां MATH की NCERT की किताब की कीमत 65 रुपये है तो MATHS की ही प्राइवेट प्रकाशक की किताब की कीमत 440 रुपये है. यानी NCERT की किताब से 7 गुना ज्यादा महंगी. कुछ स्कूल तो ऐसे हैं कि जहां एक भी किताब NCERT की नहीं चलती और अभिभावकों से सिर्फ प्राइवेट प्रकाशक की किताबें खरीदवाई जा रही हैं. 

8-9 गुना महंगी किताबें बेच रहे स्कूल

नोएडा के Salvation Tree स्कूल की 5वीं Class की किताबों की लिस्ट पैरंट्स (Zee News Report on Private School) की कमर तोड़ रही है. इस लिस्ट में अभिभावकों से कुल 13 किताबें खरीदने के लिए कहा जा रहा है. स्कूल की ओर से दी गई सूची में एक भी किताब NCERT की नहीं है. यहां इन 13 किताबों की कुल कीमत 5 हजार 832 रुपये थी, जबकि अगर स्कूल ने अभिभावकों से महंगे प्राइवेट प्रकाशक की जगह NCERT की किताबें खरीदने के लिए कहा होता तो वो किताबे लगभग 700 से 900 रुपये तक आ जाती. यानी स्कूल जानबूझकर कर अभिभावकों से 8-9 गुना महंगी किताबें खरीदवा रहा है. 

Salvation Tree के अलावा गाज़ियाबाद का ही Spring Field School पांचवीं क्लास के बच्चों के अभिभावकों से कुल 13 किताबें खरीदवा रहा है. इन 13 किताबो में एक भी किताब NCERT की नहीं है. 

क्या कभी लग पाएगी स्कूलों पर लगाम?

प्राइवेट स्कूलों (Zee News Report on Private School) का यह धंधा सिर्फ दिल्ली-एनसीआर में नहीं बल्कि पूरे भारत में चल रहा है. जिसके खिलाफ हर साल अभिभावक प्रदर्शन भी करते हैं लेकिन उनकी ना तो स्कूल सुनते हैं और ना सरकारें. स्कूली छात्रों के अभिभावको की Association बीते कई वर्षों से इस मुद्दे को सरकारो के पास उठा रही है, प्रदर्शन कर रही है. लेकिन मुद्दे का हल उन्हें आज तक नहीं मिल पाया है. 

 

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