पीटीआई, नई दिल्ली
Published by: Amit Mandal
Updated Thu, 09 Dec 2021 11:02 PM IST
सार
देश के न्यायिक इतिहास में पहली बार न्यायमूर्ति गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने पूर्व न्यायाधीश काटजू के खिलाफ स्वत: अवमानना नोटिस जारी किया था।
पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई और एसए बोबडे
– फोटो : पीटीआई
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देश के न्यायिक इतिहास में पहली बार न्यायमूर्ति गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने पूर्व न्यायाधीश काटजू के खिलाफ स्वत: अवमानना नोटिस जारी किया था, जिसे बाद में उनकी लिखित माफी के बाद बंद कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने एक ब्लॉग पोस्ट करते हुए कहा था कि निर्णय कानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण था (वह ऐसा कहने के हकदार हैं)।
लेकिन उन्होंने और भी कहा था कि सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का बौद्धिक स्तर जस्टिस नरीमन और जे चेलमेश्वर को छोड़कर बाकियों में बेहद कम था। काटजू ने अपने ब्लॉग में जिस भाषा का इस्तेमाल किया है वह बेहद अशोभनीय था। इसमें जजों का व्यक्तिगत रूप से नाम लिया गया था और और अपमानजनक बयान दिए गए थे। इस मामले के बारे में 46वें सीजेआई ने अपनी आत्मकथा, जस्टिस फॉर द जज’ में लिखा है।
पदोन्नति विशुद्ध रूप से न्यायाधीशों की अखिल भारतीय वरिष्ठता के आधार न करें
रंजन गोगोई ने कहा है कि यदि पदोन्नति विशुद्ध रूप से न्यायाधीशों की अखिल भारतीय वरिष्ठता के आधार पर की जाएगी तो सुप्रीम कोर्ट एक या दो उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों से भर जाएगा। उन्होंने इस आधार पर कॉलेजियम की सिफारिश पर सरकार की सामान्य आपत्ति पर सवाल उठाते हुए यह टिप्पणी की। एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर से कनिष्ठ रहे न्यायमूर्ति गोगोई ने अपनी आत्मकथा जस्टिस फॉर द जज’ में लिखा है कि उन्होंने एक जूनियर के रूप में न्यायमूर्ति लोकुर के साथ शीर्ष अदालत में एक बेंच की अध्यक्षता की।
उन्होंने कहा, यह थोड़ा हैरतभरा लग सकता है कि मैं न्यायमूर्ति लोकुर के समक्ष एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश और एक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में उनसे कनिष्ठ होने के बावजूद सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश बन गया। लेकिन इस तरह के घटनाक्रम निश्चित रूप से होते हैं। संघीय अदालत होने के नाते सभी राज्यों को उपयुक्तता के तहत सर्वोच्च न्यायालय में प्रतिनिधित्व दिया जाना है।
विस्तार
देश के न्यायिक इतिहास में पहली बार न्यायमूर्ति गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने पूर्व न्यायाधीश काटजू के खिलाफ स्वत: अवमानना नोटिस जारी किया था, जिसे बाद में उनकी लिखित माफी के बाद बंद कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने एक ब्लॉग पोस्ट करते हुए कहा था कि निर्णय कानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण था (वह ऐसा कहने के हकदार हैं)।
लेकिन उन्होंने और भी कहा था कि सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का बौद्धिक स्तर जस्टिस नरीमन और जे चेलमेश्वर को छोड़कर बाकियों में बेहद कम था। काटजू ने अपने ब्लॉग में जिस भाषा का इस्तेमाल किया है वह बेहद अशोभनीय था। इसमें जजों का व्यक्तिगत रूप से नाम लिया गया था और और अपमानजनक बयान दिए गए थे। इस मामले के बारे में 46वें सीजेआई ने अपनी आत्मकथा, जस्टिस फॉर द जज’ में लिखा है।
पदोन्नति विशुद्ध रूप से न्यायाधीशों की अखिल भारतीय वरिष्ठता के आधार न करें
रंजन गोगोई ने कहा है कि यदि पदोन्नति विशुद्ध रूप से न्यायाधीशों की अखिल भारतीय वरिष्ठता के आधार पर की जाएगी तो सुप्रीम कोर्ट एक या दो उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों से भर जाएगा। उन्होंने इस आधार पर कॉलेजियम की सिफारिश पर सरकार की सामान्य आपत्ति पर सवाल उठाते हुए यह टिप्पणी की। एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर से कनिष्ठ रहे न्यायमूर्ति गोगोई ने अपनी आत्मकथा जस्टिस फॉर द जज’ में लिखा है कि उन्होंने एक जूनियर के रूप में न्यायमूर्ति लोकुर के साथ शीर्ष अदालत में एक बेंच की अध्यक्षता की।
उन्होंने कहा, यह थोड़ा हैरतभरा लग सकता है कि मैं न्यायमूर्ति लोकुर के समक्ष एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश और एक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में उनसे कनिष्ठ होने के बावजूद सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश बन गया। लेकिन इस तरह के घटनाक्रम निश्चित रूप से होते हैं। संघीय अदालत होने के नाते सभी राज्यों को उपयुक्तता के तहत सर्वोच्च न्यायालय में प्रतिनिधित्व दिया जाना है।
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