Ranjan Gogoi Book: पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई बोले, जस्टिस काटजू अगर खेद जताते तो अभूतपूर्व फैसला नहीं लेना पड़ता 

पीटीआई, नई दिल्ली
Published by: Amit Mandal
Updated Thu, 09 Dec 2021 11:02 PM IST

सार

देश के न्यायिक इतिहास में पहली बार न्यायमूर्ति गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने पूर्व न्यायाधीश काटजू के खिलाफ स्वत: अवमानना नोटिस जारी किया था।

पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई और एसए बोबडे
– फोटो : पीटीआई

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भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) और राज्यसभा सांसद रंजन गोगोई ने अवमाननापूर्ण ब्लॉग के लिए शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने को लेकर अपनी आत्मकथा में विचार रखे हैं। पूर्व सीजेआई ने अपने अभूतपूर्व आदेश को लेकर कहा कि अगर काटजू ने थोड़ा खेद व्यक्त किया होता तो हम इस मामले को आगे नहीं बढ़ाते। जस्टिस काटजू 2006 और 2011 के बीच सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे। उन्होंने अपने ब्लॉग में एक दुष्कर्म और हत्या के मामले में एक फैसले की आलोचना की थी और न्यायाधीशों पर टिप्पणी की थी जो प्रथम दृष्टया अवमाननापूर्ण पाए गए थे।

देश के न्यायिक इतिहास में पहली बार न्यायमूर्ति गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने पूर्व न्यायाधीश काटजू के खिलाफ स्वत: अवमानना नोटिस जारी किया था, जिसे बाद में उनकी लिखित माफी के बाद बंद कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने एक ब्लॉग पोस्ट करते हुए कहा था कि निर्णय कानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण था (वह ऐसा कहने के हकदार हैं)। 

लेकिन उन्होंने और भी कहा था कि सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का बौद्धिक स्तर जस्टिस नरीमन और जे चेलमेश्वर को छोड़कर बाकियों में बेहद कम था। काटजू ने अपने ब्लॉग में जिस भाषा का इस्तेमाल किया है वह बेहद अशोभनीय था। इसमें जजों का व्यक्तिगत रूप से नाम लिया गया था और और अपमानजनक बयान दिए गए थे। इस मामले के बारे में 46वें सीजेआई ने अपनी आत्मकथा, जस्टिस फॉर द जज’ में लिखा है।

पदोन्नति विशुद्ध रूप से न्यायाधीशों की अखिल भारतीय वरिष्ठता के आधार न करें
रंजन गोगोई ने कहा है कि यदि पदोन्नति विशुद्ध रूप से न्यायाधीशों की अखिल भारतीय वरिष्ठता के आधार पर की जाएगी तो सुप्रीम कोर्ट एक या दो उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों से भर जाएगा। उन्होंने इस आधार पर कॉलेजियम की सिफारिश पर सरकार की सामान्य आपत्ति पर सवाल उठाते हुए यह टिप्पणी की। एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर से कनिष्ठ रहे न्यायमूर्ति गोगोई ने अपनी आत्मकथा जस्टिस फॉर द जज’ में लिखा है कि उन्होंने एक जूनियर के रूप में न्यायमूर्ति लोकुर के साथ शीर्ष अदालत में एक बेंच की अध्यक्षता की।

उन्होंने कहा, यह थोड़ा हैरतभरा लग सकता है कि मैं न्यायमूर्ति लोकुर के समक्ष एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश और एक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में उनसे कनिष्ठ होने के बावजूद सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश बन गया। लेकिन इस तरह के घटनाक्रम निश्चित रूप से होते हैं। संघीय अदालत होने के नाते सभी राज्यों को उपयुक्तता के तहत सर्वोच्च न्यायालय में प्रतिनिधित्व दिया जाना है।

विस्तार

भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) और राज्यसभा सांसद रंजन गोगोई ने अवमाननापूर्ण ब्लॉग के लिए शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने को लेकर अपनी आत्मकथा में विचार रखे हैं। पूर्व सीजेआई ने अपने अभूतपूर्व आदेश को लेकर कहा कि अगर काटजू ने थोड़ा खेद व्यक्त किया होता तो हम इस मामले को आगे नहीं बढ़ाते। जस्टिस काटजू 2006 और 2011 के बीच सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे। उन्होंने अपने ब्लॉग में एक दुष्कर्म और हत्या के मामले में एक फैसले की आलोचना की थी और न्यायाधीशों पर टिप्पणी की थी जो प्रथम दृष्टया अवमाननापूर्ण पाए गए थे।

देश के न्यायिक इतिहास में पहली बार न्यायमूर्ति गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने पूर्व न्यायाधीश काटजू के खिलाफ स्वत: अवमानना नोटिस जारी किया था, जिसे बाद में उनकी लिखित माफी के बाद बंद कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने एक ब्लॉग पोस्ट करते हुए कहा था कि निर्णय कानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण था (वह ऐसा कहने के हकदार हैं)। 

लेकिन उन्होंने और भी कहा था कि सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का बौद्धिक स्तर जस्टिस नरीमन और जे चेलमेश्वर को छोड़कर बाकियों में बेहद कम था। काटजू ने अपने ब्लॉग में जिस भाषा का इस्तेमाल किया है वह बेहद अशोभनीय था। इसमें जजों का व्यक्तिगत रूप से नाम लिया गया था और और अपमानजनक बयान दिए गए थे। इस मामले के बारे में 46वें सीजेआई ने अपनी आत्मकथा, जस्टिस फॉर द जज’ में लिखा है।

पदोन्नति विशुद्ध रूप से न्यायाधीशों की अखिल भारतीय वरिष्ठता के आधार न करें

रंजन गोगोई ने कहा है कि यदि पदोन्नति विशुद्ध रूप से न्यायाधीशों की अखिल भारतीय वरिष्ठता के आधार पर की जाएगी तो सुप्रीम कोर्ट एक या दो उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों से भर जाएगा। उन्होंने इस आधार पर कॉलेजियम की सिफारिश पर सरकार की सामान्य आपत्ति पर सवाल उठाते हुए यह टिप्पणी की। एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर से कनिष्ठ रहे न्यायमूर्ति गोगोई ने अपनी आत्मकथा जस्टिस फॉर द जज’ में लिखा है कि उन्होंने एक जूनियर के रूप में न्यायमूर्ति लोकुर के साथ शीर्ष अदालत में एक बेंच की अध्यक्षता की।

उन्होंने कहा, यह थोड़ा हैरतभरा लग सकता है कि मैं न्यायमूर्ति लोकुर के समक्ष एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश और एक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में उनसे कनिष्ठ होने के बावजूद सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश बन गया। लेकिन इस तरह के घटनाक्रम निश्चित रूप से होते हैं। संघीय अदालत होने के नाते सभी राज्यों को उपयुक्तता के तहत सर्वोच्च न्यायालय में प्रतिनिधित्व दिया जाना है।

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