अहमदाबाद से दिल्ली तक सांसों का सफर, उत्तर भारत में पहली बार मरीज के दोनों फेफड़ों का ट्रांसप्लांट

नई दिल्ली: डॉक्टर मरीज की आखिरी सांस तक उसे बचाने की पूरी कोशिश करते हैं और यही वजह है कि उन्हें भगवान का दर्जा दिया जाता है. हम आज आपको सांसों के ऐसे सफर के बार में बताएंगे जिसमें डॉक्टरों और प्रशासन ने मिलकर एक शख्स को जीवनदान देने का काम किया है. 

मरीज के दोनों फेफड़ों का ट्रांसप्लांट

दिल्ली के अस्पताल में पल-पल के लिए सांसों को मोहताज एक शख्स को जीवन देने के लिए अहमदाबाद से मदद मिली. उत्तर भारत में पहली बार किसी अस्पताल ने खास मशीनों की मदद से एक व्यक्ति में दोनों फेफड़ों का सफल ट्रांसप्लांट किया है.  

गुजरात के अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में 44 साल के एक व्यक्ति ने ब्रेन हैमरेज से दम तोड़ दिया. लेकिन वो दिल्ली में भर्ती किसी दूसरे बीमार को जिंदगी दे गया. इस काम को अंजाम देने में डॉक्टरों की मेहनत तो है ही लेकिन अहमदाबाद प्रशासन, सिविल अस्पताल के डॉक्टर, अहमदाबाद और दिल्ली एयरपोर्ट के बीच का तालमेल और एंबुलेंस के ड्राइवरों की तेजी और सूझबूझ बहुत काम आई. 

दिल्ली से अहमदाबाद तक ग्रीन कॉरीडोर

55 साल के ज्ञानचंद मेरठ के रहने वाले हैं. इन्हें COPD यानी सांस न आने की बीमारी थी. पिछले साल कोरोना की वजह से इनके दोनों फेफड़े बेकार हो गए. तब से ये हर वक्त ऑक्सीजन सपोर्ट या बाईपैप की मदद से ही सांस ले पा रहे थे. 22 दिसंबर को अंगदान की नेशनल रजिस्ट्री सिस्टम पर जैसे ही अहमदाबाद से एक व्यक्ति की असमय मौत की वजह से उसके फेफड़ों के दान होने का अलर्ट आया, दिल्ली से मैक्स अस्पताल के डॉक्टरों ने अहमदाबाद के सरकारी अस्पताल में संपर्क किया. 

lung transplant

बीती 22 दिसंबर को ही तीन घंटे में अहमदाबाद और दिल्ली में ग्रीन कॉरीडोर बनाकर ऑर्गन अस्पताल तक पहुंचाए गए. ऑपरेशन के बाद 10 दिन तक मरीज को ECMO यानी Extracorporeal Membrane Oxygenation की मदद पर रखा गया. ये मशीन Artificial Lungs की तरह काम करती है.  कई दिनों के फॉलोअप के बाद ज्ञानचंद अब एकदम ठीक हैं और खतरे से बाहर हैं. 

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मरीज की हालत के बारे में मैक्स अस्पताल दिल्ली के श्वास रोग विशेषज्ञ डॉ विवेक नांगिया ने बताया कि हमारे पास यह मरीज फेफड़ों से जुड़ी एक ऐसी बीमारी के बाद आया था जिसमें सांस लेने में काफी मुश्किल हो रही थी. एक साल तक मरीज को ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया लेकिन तब भी हालत में सुधार नहीं हो पा रहा था. डॉक्टर ने बताया कि इस बीमारी में कोई अन्य इलाज मुमकिन नहीं था. सभी कोशिशों के बाद हमने फिर दोनों फेफड़ों का ट्रांसप्लांट करने का फैसला किया.

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