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कोलकाता25 मिनट पहले
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पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के बोगटुई गांव में सोमवार की रात दो गुटों के बीच लड़ाई में 12 लोगों को जिंदा जला दिया गया। घटना के बाद ममता बनर्जी की सरकार पर सवाल खड़े हो रहे हैं। हालांकि, बीरभूम में राजनीतिक हिंसा का इतिहास दशकों पुराना है। जिले के नानूर में साल 2000 में 11 किसानों को घर बंद कर जिंदा जला दिया गया था। इस हिंसा के बाद बीरभूम पूरे देश में सुर्खियां बटोरा था।
बीरभूम में पिछले 21 सालों में 8 बड़ी राजनीतिक हिंसा हो चुकी है, जिसमें 40 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। आइए आज आपको बताते हैं बीरभूम का रक्तरंजित इतिहास के बारे में…
नानूर का नरसंहार : 11 मजदूरों को जिंदा जला दिया गया था
तारीख थी 27 जुलाई और साल था 2000। राज्य में सरकार थी वाम मोर्चे की और केंद्र में अटल बिहारी वाजपेई प्रधानमंत्री थे। एक विवादित जमीन पर खेती करने की वजह से CPIM कार्यकर्ताओं ने 11 मजदूरों को जिंदा जला दिया था। घटना पर केंद्र ने राज्य सरकार से रिपोर्ट तलब की थी। इस मामले में जांच के बाद 82 CPIM कार्यकर्ताओं को आरोपित बनाया गया था, जिसमें 44 दोषी करार दिए गए थे।
2010 में बीरभूम की एक अदालत ने इस मामले में 44 CPIM कार्यकर्ताओं को दोषी माना।
पूर्व विधायक को घर से खिंचकर सड़क पर मार डाला
2009 के आम चुनाव में सत्ताधारी CPIM की राज्य में करारी हार हुई, जिसके बाद तृणमूल कांग्रेस पूरे मुखर होने लगी। 30 जून 2010 को नानूर इलाके में CPIM कार्यकर्ताओं ने तृणमूल के एक कार्यकर्ता की गोली मारकर हत्या कर दी, जिसके बाद 200 से अधिक तृणमूल कार्यकर्ताओं ने बंगाल के कद्दावर नेता और पूर्व विधायक आनंद दास को घर के पास प्रदर्शन करने लगे। इसी दौरान उनकी मौत हो गई। CPIM ने आरोप लगाया कि तृणमूल कार्यकर्ताओं ने उन्हें घसीटकर मार डाला। घटना के बाद एक महीने तक इलाके में तनाव बना रहा।
इस घटना के बाद तत्कालीन CPIM के स्टेट सेक्रेटरी विमान वोस ने बयान देते हुए कहा था कि बीरभूम में अब कानून का राज खत्म हो गया है।
मोहम्मदपुर बाजार: आदिवासी और मुस्लिम के बीच झड़प में 4 की मौत, 100 घर जले
बीरभूम के सुरी क्षेत्र का इलाका है, मोहम्मदपुर। यहां पर आदिवासी और मुस्लिम की तादाद सबसे अधिक है। 22 अप्रैल 2010 को यहां पर रेत उत्खनन को लेकर आदिवासी और मुस्लिम माफियाओं के बीच लड़ाई हो गई, जिसमें 4 लोगों की मौके पर ही मार डाला गया। वहीं 100 से ज्यादा घर फूंक दिए गए। घटना के बाद तत्कालीन केंद्र सरकार ने राज्य से रिपोर्ट तलब की थी।
पंचायत चुनाव के दौरान हिंसा में 4 CPIM कार्यकर्ताओं की मौत
पश्चिम बंगाल में सरकार बदल चुकी थी। ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस की सरकार सत्ता में थी। राज्य में पंचायत चुनाव चल रहा था। इसी दौरान मोहम्मदपुर बाजार इलाके में तृणमलू और CPIM कार्यकर्ताओं के बीच हिंसक झड़प हुई। घटना में CPIM कार्यकर्ताओं की मौके पर ही मौत हो गई।
CPIM के गढ़ बीरभूम में 2011 के चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने बड़ी सेंध लगाई। इसके बाद यहां से वाम मोर्चा और तृणमूल कार्यकर्ताओं के बीच लगातार हिंसक झड़प की खबरें आती रही।
माकड़ा गांव में भाजपा और तृणमूल कार्यकर्ताओं के बीच झड़प, 4 की मौत
2014 के बाद बंगाल का राजनीतिक परिदृश्य अब पूरी तरह बदल चुका था। CPIM का गढ़ रहे बीरभूम में अब तृणमूल और भाजपा के बीच संघर्ष शुरु हो गया। 27 अक्टूबर 2014 माकड़ा गांव पर सियासी कब्जे के चक्कर में भाजपा और तृणमूल कार्यकर्ताओं के बीच हिंसक झड़पें हुई। इसमें भाजपा के 3 और तृणमूल के 1 कार्यकर्ता की मौत हो गई।
दरबारपुर गांव की हिंसा: स्कूलों पर क्रूड बम चला, 7 की गई थी जान
बीरभूम में सत्ता के साथ-साथ ही तस्करी का केंद्र भी बदलता रहता है। यहां CPIM और तृणमूल कार्यकर्ताओं के बीच रेत खनन के ठेके पट्टे को लेकर विवाद हो गया। तनाव इतना बढ़ा कि दोनों ओर से बमबाजी शुरू हो गई। यहां तक की स्कूल और कॉलेजों पर भी दोनों गुट ने बम फेंकना शुरू कर दिया। इस हिंसक झड़प में 7 लोगों की मौत हो गई।
पोस्ट पोल हिंसा को लेकर भी सुर्खियों में था बीरभूम
2021 में विधानसभा चुनाव के बाद पूरे बंगाल में पोस्ट पोल हिंसा शुरू हुआ। इसमें बीरभूम सबसे अधिक सुर्खियों में था। राजनीतिक हिंसा में यहां एक व्यक्ति की हत्या कर दी गई थी। वहीं डर से हजारों परिवार ने पलायन शुरू कर दिया था। CBI ने जांच के दौरान बीरभूम से कई आरोपियों को गिरफ्तार भी कर चुकी है।
जाति समीकरण से समझिए बीरभूम का गणित
2011 के जनगणना के मुताबिक बीरभूम की कुल संख्या 3,502,404 है, जिसमें 1,790,920 पुरूष और 1,711,484 महिलाएं शामिल हैं। बीरभूम में 62% हिंदू (जिसमें करीब 35% एससी-एसटी) और 37% मुस्लिम आबादी है।
सत्ता बदली, मगर नहीं रूका राजनीतिक हिंसा का खेल
बंगाल में राजनतिकि हिंसा की शुरुआत 1970 में कांग्रेस और माकपा के बीच सत्ता संघर्ष के बाद शुरू हुई। नब्बे के दशक में यह और भी अधिक तेजी से बढ़ा, जो अब तक निरंतर जारी है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) ने 2018 की अपनी रिपोर्ट में कहा था कि 2018 में बंगाल में 12 हत्या हुईं है।
उसी रिपोर्ट में कहा गया था कि वर्ष 1999 से 2016 के बीच पश्चिम बंगाल में हर साल औसतन 20 राजनीतिक हत्याएं हुई हैं। इनमें सबसे ज्यादा 50 हत्याएं 2009 में हुईं। वहीं ममता सरकार ने 2019 से NCRB को राजनीतिक हत्या का आंकड़ा देना बंद कर दिया। पिछले 50 साल में बंगाल में कांग्रेस, CPIM और तृणमूल पार्टी सत्ता में आई, लेकिन राजनीतिक हिंसा का खेल बंद नहीं हुआ।
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