'हिंदी हैं हम' शब्द श्रृंखला में आज का शब्द है दयादृष्टि जिसका अर्थ है- दया की दृष्टि या मेहरबानी की नज़र। प्रस्तुत है महावीर प्रसाद ‘मधुप’की कविता- एक निराश्रित प्राणीदीनबन्धु, हे दयासिन्धु! हे दुखहर्ता! सुखदाता।
पीड़ित जन के सबल सहायक प्राणि मात्र के त्राता॥आश्रयहीन, न जिसका जग में कोई अपना होता।
शरण तुम्हारी पाकर जन वह निर्भय सुख से सोता॥मैं भी तो उनमें से ही हूँ एक निराश्रित प्राणी।
शक्ति नहीं, निज दुख रोते भी कंपित होती वाणी॥पर तुमसे है छिपा न कुछ भी, हो तुम अन्तर्यामी।
प्रकट करूं फिर शब्दों में क्या दुख अपना मैं स्वामी॥जाने कितनी बार दुखों से तुमने मुझे उबारा।
डूबा जब-जब शोक-सिन्धु में तब-तब दिया सहारा॥एक साथ आकर अब तो दारुण दुःखों ने घेरा।
देख चुका सर्वत्र जगत् में हितू न कोई मेरा॥तुम्हीं कहो फिर जाकर किसके सन्मुख हाथ पसारूँ।
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अपने हुए पराये, फिर अपना कह किसे पुकारूँ॥
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